2317.पूर्णिका
2317.पूर्णिका
🌹आदमी से आदमी का एतबार नहीं रहा🌹
2122 2122 2122 212
आदमी से आदमी का एतबार नहीं रहा ।
आज दुनिया में तनिक भी प्रेम प्यार नहीं रहा।।
उड़ रहे है सब हवा में देख लो तुम क्या कहे।
काटते है जिंदगी भी नेक सार नहीं रहा ।।
हार अपनी जीत अपनी बस कहानी है जहाँ ।
हम चलेंगे साथ लेकर यूं विचार नहीं रहा ।।
दर्द निवारक दर्द न जाने फूल काँटे गम खुशी ।
करम अपना धरम अपना शानदार नहीं रहा ।।
खून भी खेदू सस्ता है रोज बिकते हाट में ।
देखते है सब तमाशा यार यार नहीं रहा ।।
……….✍डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
22-5-2023सोमवार