2305.पूर्णिका
2305.पूर्णिका
संभल संभल कर चलना तुम
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संभल संभल कर चलना तुम ।
खुद अपने पथ पर चलना तुम ।।
मंजिल मंजिल पांव चुमेगी ।
इतिहास नया हर गढ़ना तुम ।।
दुनिया होगी आज मुठ्ठी में ।
सब खुशियाँ बांट मचलना तुम ।।
रात गई तो सब बात गई ।
यूं वक्त के साथ बदलना तुम ।।
जग सूरज से रौशन खेदू ।
माँ सा नेकी कर चलना तुम ।।
…………✍डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
14-5-2023रविवार