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23 Jun 2021 · 28 min read

स्वास्थ्य विषयक कुंडलियाँ

110 महामारी-स्वास्थ्य कुंडलियाँ
[5/5/2020, 9:15 AM] Ravi Prakash: कोरोना (कुंडलिया)
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कोरोना ने कर दिया ,सारा विश्व तबाह
पता नहीं यह कौन है ,क्या है इसकी चाह
क्या है इसकी चाह , सभी लाचार हुए हैं
सबकी बंद दुकान ,बंद घर द्वार हुए हैं
कहते रवि कविराय ,हाथ साबुन से धोना
दो गज दूरी मास्क , दूर होगा कोरोना
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[5/5/2020, 9:25 PM] Ravi Prakash: दो कुंडलियाँ
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( 1 )
होते कान अगर नहीं ,मास्क टिकाता कौन
दोनों हाथों से पकड़ ,फिरते होकर मौन
फिरते होकर मौन ,हाथ से लिखते कैसे
पहने – पहने मास्क ,भोज बस जैसे-तैसे
कहते रवि कविराय , रात दिन रहते रोते
कहते भगवन कान , काश अपने दो होते
( 2 )
खर्चा सबका कम हुआ ,नहीं सिनेमा हॉल
भूले शॉपिंग रेस्तराँ , भूले जाना मॉल
भूले जाना मॉल , दावतें शादी सादी
घर की सब्जी दाल ,लोग अब इसके आदी
कहते रवि कविराय ,अशुभ में शुभ का चर्चा
लाया रोग इनाम ,जिंदगी भर कम खर्चा
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451
[7/5/2020, 5:12 PM] Ravi Prakash: यादें (कुंडलिया)
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यादें कब दिल से गईं , जग से जाते लोग
अब भी आते याद हैं ,जिनके शुभ संयोग
जिनके शुभ संयोग ,विगत के दिन महकाते
जिनके मीठे बोल ,गीत कानों में गाते
कहते रवि कविराय ,काश प्रभु दिन लौटा दें
हम हों उनके साथ ,शेष अब जिनकी यादें
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 545 1
[8/5/2020, 9:49 AM] Ravi Prakash: तीन हास्य कुंडलियाँ
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( 1 )
सबसे ज्यादा गिर गए ,होंठ नाक के भाव
कौन अरे अब पूछता ,इनमें किसका चाव
इनमें किसका चाव ,आँख के नखरे भारी
कहती मैं पहचान ,आजकल मुख की सारी
कहते रवि कविराय ,मास्क का फैशन जब से
मूल्यवान हैं कान , काम के ज्यादा सबसे

( 2 )
पीने वाले पी रहे , योगदान आभार
इनके बल पर चल रही ,सभी जगह सरकार
सभी जगह सरकार , देश के नोट प्रदाता
इनकी बहकी चाल ,देखकर मन हर्षाता
कहते रवि कविराय ,नशे में जीने वाले
इनका कार्य महान , धन्य हैं पीने वाले
( 3 )
मरिएगा मत इन दिनों ,बुरा चल रहा दौर
सिर्फ देखेंगे आप ही , नहीं दिखेगा और
नहीं दिखेगा और , कौन अर्थी बँधवाए
कंधे पर ले कौन , प्रश्न मरघट पहुँचाए
कहते रवि कविराय ,शोक घर पर करिएगा
तीजा हुआ अतीत , सोचकर फिर मरिएगा
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 545 1
[12/5/2020, 10:58 AM] Ravi Prakash: नेताजी की मौज( कुंडलिया )
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पाते बढ़िया आजकल ,नेताजी का काम
घर बैठे वेतन मिले ,भत्तों का आराम
भत्तों का आराम ,मुफ्त की कोठी पाई
पुलिस ड्राइवर कार ,मौज की रोज उड़ाई
कहते रवि कविराय ,आमजन पूँजी खाते
घटते प्रतिदिन नोट ,जेब को हल्की पाते
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[12/5/2020, 11:38 PM] Ravi Prakash: बिना दवाई (कुंडलिया)
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बिना दवाई हो रहे ,लाखों जन अब ठीक
कोरोना है रोग की ,केवल एक प्रतीक
केवल एक प्रतीक ,बंद है क्लीनिक सारे
बाकी सारे लोग ,आज किस्मत के मारे
कहते रवि कविराय ,आस कुदरत से पाई
रखते जन परहेज ,लाभ है बिना दवाई
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 545 1
[13/5/2020, 3:42 PM] Ravi Prakash: मित्र है लोकल अपना (दो कुंडलियाँ)
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लोकल अपना मित्र है ,लोकल की जयकार
लोकल संकट के समय ,भारत का आधार
भारत का आधार , पड़ोसी धर्म निभाता
मुश्किल का जब दौर ,काम में यह ही आता
कहते रवि कविराय , देश का सुंदर सपना
महामंत्र यह आज , मित्र है लोकल अपना
(2)
आया याद समाज को ,बहुत दिनों के बाद
देखा परखा तो कहा , लोकल जिंदाबाद
लोकल जिंदाबाद , दूर के ढोल सुहाने
घर के यही करीब ,लोक का सुख-दुख जाने
कहते रवि कविराय , देखकर सब ने पाया
लोकल को दो प्रेम , काम में लोकल आया
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451
[14/5/2020, 11:12 AM] Ravi Prakash: जिनके बच्चे सात( कुंडलिया )
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छूटे सरकारी मिलें , जिनका बच्चा एक
सीमित घर परिवार हो ,नीति सिर्फ यह ठीक
नीति सिर्फ यह ठीक ,कई बच्चे अब भारी
रोके दृढ़ कानून , कहे यह भी बीमारी
कहते रवि कविराय ,सब्सिडी सब धन लूटे
जिनके बच्चे सात ,मिलें क्यों उनको छूटे
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451
[17/5/2020, 4:37 PM] Ravi Prakash: श्रमिक दुखी असहाय (दो कुंडलियाँ )
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(1)
रोजाना खोदा कुआँ , भरते पानी रोज
मजदूरों की त्रासदी ,करिए इन पर खोज
करिए इन पर खोज ,नहीं जुड़ पाया पैसा
असमंजस में आज ,ईश जाने कल कैसा
कहते रवि कविराय,श्रमिक सुख से अनजाना
सोता खाली हाथ ,जेब खस्ता . रोजाना
( 2 )
चाही बच्चों की खुशी ,निकले थे परदेस
घर पीछे ही रह गया ,मन में इसकी ठेस
मन में इसकी ठेस ,याद बस घर की आती
पैदल चलते रोज ,मौत साथी इतराती
रहते रवि कविराय ,मृत्यु के पथ का राही
श्रमिक दुखी असहाय,खुशी जिसने थी चाही
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_रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा_ रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[17/5/2020, 8:38 PM] Ravi Prakash: आया यह मनहूस (कुंडलिया)
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होते तीजे अब कहाँ , दसवें में दस लोग
सत्संगों के दिन गए ,भजनों के संयोग
भजनों के संयोग ,ब्याह की दुखी कहानी
दो गज रहते दूर ,मास्क की मेहरबानी
कहते रवि कविराय ,रोग कोरोना रोते
आया यह मनहूस ,ठीक से वरना होते
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999 7615 451
[18/5/2020, 3:47 PM] Ravi Prakash: चित्र पर आधारित कविता
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ढोते बोझा चल दिए (कुंडलिया)
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ढोते बोझा चल दिए ,घर की ओर मजूर
नहीं पता क्या दिक्कतें ,घर है कितनी दूर
घर है कितनी दूर ,जेब खाली कर जाते
ठगे – ठगे से बीच ,राह में आ पछताते
कहते रवि कविराय , अधर में लटके रोते
कोस रहे दुर्भाग्य , हाथ की रेखा ढोते
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[21/5/2020, 6:39 PM] Ravi Prakash: आमजन की लाचारी (दो कुंडलियाँ)
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( 1 )
पाते सत्तर फीसदी , वेतन नेता लोग
जीरो जनता का हुआ ,आमदनी का योग
आमदनी का योग , बंद बाजार कराया
कैसे खुले दुकान , लॉकडाउन जो आया
कहते रवि कविराय , नहीं नेता शर्माते
इनके जारी ठाठ , बैठ घर वेतन पाते
( 2 )
निर्धन जनता पिस रही ,घर बैठी निरूपाय
नेताओं का क्या गया ,सरकारी है आय
सरकारी है आय ,आमजन की लाचारी
झेले बंद दुकान , लॉकडाउन बेचारी
कहते रवि कविराय ,त्रस्त है अब हर जन जन
मध्यम कहे समाज ,किंतु भीतर से निर्धन
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99 97 61 545 1
[26/5/2020, 11:24 AM] Ravi Prakash: राज्य सरकारें (कुंडलिया)
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राजा और रियासतें , हुई राज्य सरकार
इनकी डफली है अलग ,इनका स्वेच्छाचार
इनका स्वेच्छाचार , देश खुद को बतलाएँ
हमसे छोटा केंद्र ,रौब कहकर दिखलाएँ
कहते रवि कविराय ,लोग कर लें अंदाजा
यही रहा यदि दौर , राज्य में होंगे राजा
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[26/5/2020, 12:38 PM] Ravi Prakash: चित्र पर आधारित कविता
गुलमोहर फूल (कुंडलिया)
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सजता श्रीहरि का मुकुट ,वह गुलमोहर फूल
जिसने देखा पेड़ यह , पाता कभी न भूल
पाता तभी न भूल ,लाल गाढ़ा चटकीला
जैसे स्वर्ग प्रदत , रूप इसका गर्वीला
कहते रवि कविराय , राह में डंका बजता
सड़क किनारे पार्क , देख लो कैसे सजता
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[26/5/2020, 1:48 PM] Ravi Prakash: यह विपक्ष के लोग (कुंडलिया)
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उनके मुख पर है खुशी ,उनका देखो खेल
जब वह बोले हो गए ,मोदी जी अब फेल
मोदी जी अब फेल , लॉकडाउन नाकारा
शहर गाँव बीमार ,श्रमिक किस्मत का मारा
कहते रवि कविराय ,यही पाया है सुनके
यह विपक्ष के लोग ,दर्द कब दिल में उनके
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 545 1
[27/5/2020, 10:33 AM] Ravi Prakash: बंद दुकानें खुल गईं (कुंडलिया )
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बंद दुकानें खुल गईं , लेकिन रखिए ध्यान
कोरोना का हो सका ,कब अब तक अवसान
कब अब तक अवसान ,रोग है दूना फैला
सारा भारत देश , पुणे मुंबइ है मैला
कहते रवि कविराय ,भीड़ हैं दुख की खानें
ग्राहक रखिए दूर , अर्ध हों बंद दुकानें
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रचयिता :रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99 97 61 5451
[28/5/2020, 11:25 AM] Ravi Prakash: आई वर्षा (कुंडलिया)
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आई वर्षा खिल उठा ,धरती का हर अंग
सुखद चली ठंडी हवा ,जेठ रह गया दंग
जेठ रह गया दंग ,अकड़ अब किसे दिखाए
गर्मी का सम्राट , राज अब कहाँ चलाए
कहते रवि कविराय ,ताप ने मुँह की खाई
सबके मन आह्लाद ,लोक – हित वर्षा आई
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रचयिता :रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
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[30/5/2020, 11:55 AM] Ravi Prakash: _चित्र पर आधारित कविता_
लड्डू मोतीचूर (कुंडलिया)
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खाने में स्वादिष्ट हैं , लड्डू मोतीचूर
मिलते हैं लड्डू मगर , खाएँ फोटो घूर
खाएँ फोटो घूर ,जश्न फोटो से मनता
लड्डू प्यारे गोल , स्वप्न में खाती जनता
कहते रवि कविराय , चित्र के सुनो बहाने
लड्डू मिलते रोज ,ऑनलाइन में खाने
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[30/5/2020, 7:43 PM] Ravi Prakash: पहला शुभ अनलॉक (कुंडलिया)
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आया पहली जून से ,पहला शुभ अनलॉक
ताले अब खुलने लगे ,करें मॉरनिंग वॉक
करें मॉरनिंग वॉक , नेह से मंदिर जाएँ
प्रभु से नाता जोड़ , प्रेम वरदानी पाएँ
कहते रवि कविराय ,काम पटरी पर लाया
होटल रेस्टोरेंट ,मॉल का युग फिर आया
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[1/6/2020, 9:09 PM] Ravi Prakash: अढ़सठ दिन लॉकडाउन ( कुंडलिया )
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अढ़सठ दिन घर में रहे ,बिल्कुल तालाबंद
दर्ज हुईं इतिहास में , यादें यह भी चंद
यादें यह भी चंद , लॉकडाउन अलबेला
पहली – पहली बार ,लोक ने था यह झेला
कहते रवि कविराय , रहा बीमारी का हठ
अद्भुत घर में कैद ,आदमी था दिन अढ़सठ
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[2/6/2020, 9:27 AM] Ravi Prakash: पिता : दोहा गीतिका
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(1)
जब तक जीवित हैं पिता ,सब कुछ है आसान
बेफिक्री की जिंदगी ,बोझों से अनजान
(2)
क्षण में बेटा हो गया ,जैसे वृद्ध समान
अर्थी में बँध जब गए , बाबूजी शमशान
(3)
समझाते हर क्षण पिता , टेढ़ी – मेढ़ी चाल
फूल मिलेंगे शूल सँग ,विधि का रचा विधान
(4)
रोज बहीखाता लिखा , नफा और नुकसान
बाबूजी ने बस पढ़ा , रोटी वस्त्र मकान
(5)
बच्चों को यह क्या पता ,कितनी भारी जेब
किया पिता से रोज बस ,फरमाइश का गान
(6)
दोपहरी की धूप में ,छाते को ज्यों तान
बच्चों के हित सर्वदा ,तत्पर पिता महान
(7)
जिनके नहीं पिता रहे , बालक हुए अनाथ
खिसकी धरती पैर से ,औंधी गिरी उड़ान
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[2/6/2020, 9:34 AM] Ravi Prakash: जेब में पिस्टल गोली (कुंडलिया)
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गोली मारी कर दिया , देखो काम तमाम
राजनीति में दिख रहा ,दृश्य आजकल आम
दृश्य आजकल आम , पदों पर गुंडे भारी
उनका चलता राज , लोग जो पिस्टलधारी
कहते रवि कविराय , चली गुंडों की टोली
बोली में बदमाश , जेब में पिस्टल गोली
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रचयिता :रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[3/6/2020, 8:41 PM] Ravi Prakash: ग्राहक (कुंडलिया)
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ग्राहक आया पर लगा ,जैसे आया भूत
किसे पता किसमें बसा ,घना वायरस छूत
घना वायरस छूत , नफा घाटा दे जाए
कोरोना की पीर ,भीड़ से होकर आए
कहते रवि कविराय ,लोग रोगों के वाहक
रहिए दो गज दूर , देव मत समझें ग्राहक
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[3/6/2020, 9:16 PM] Ravi Prakash: अहंकार (कुंडलिया )
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छाई अंतर में दिखी , अहंकार की बेल
थोपी अपनी श्रेष्ठता , अभिमानों का खेल
अभिमानों का खेल ,रोग यह जिस पर चढ़ता
खोता बुद्धि विवेक , दिग्भ्रमित जैसा बढ़ता
कहते रवि कविराय , नीति ने बात बताई
पशु के व्यक्ति समान ,उग्र मति जिस पर छाई
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रचयिता :रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451
[16/6/2020, 12:01 PM] Ravi Prakash: _
डोरी खींचो तान के (कुंडलिया)
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डोरी खींचो तान के ,पूरी ताकत साथ
फिर कुछ करना कब बचा, छोड़ो अपना हाथ
छोड़ो अपना हाथ ,तीर से लगे निशाना
यह साहस का काम ,संतुलन सीखो लाना
कहते रवि कविराय ,जिंदगी रहती कोरी
भीतर से भयभीत ,खींच पाता कब डोरी
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[17/6/2020, 12:34 PM] Ravi Prakash:
समय क्षणभंगुर मानो (कुंडलिया)
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बोली घंटे की सुई , चलती मैं दिन – रात
मैं यह जानूँ क्या कहाँ , किसको कब आघात
किसको कब आघात , समय क्षणभंगुर मानो
संख्याओं का खेल , पेड़ के पत्ते जानो
कहते रवि कविराय ,मिटी अंकों की टोली
पतझड़-सी खामोश ,शून्य हो जाती बोली
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[23/6/2020, 3:21 PM] Ravi Prakash: _
नमन सैनिक बलधारी (कुंडलिया)
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सीमा की जो कर रहे , रक्षा उन्हें प्रणाम
चौकन्ने दिन – रात रह ,जागे जो अविराम
जागे जो अविराम ,नमन सैनिक बलधारी
तुम पर करता गर्व ,देश प्रतिपल आभारी
कहते रवि कविराय ,नहीं व्रत करना धीमा
तुमसे ही अक्षुण्ण , हिंद की पावन सीमा
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[23/6/2020, 8:11 PM] Ravi Prakash: अभिनंदन रामदेव जी (कुंडलिया)
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कोरोना का मिल गया ,आयुर्वेद इलाज
अभिनंदन के पात्र हैं ,रामदेव जी आज
रामदेव जी आज ,हिंद का बजता डंका
जैसे जीता क्रूर , दशानन जीती लंका
कहते रवि कविराय ,नहीं यह जादू टोना
भारत का विज्ञान ,जीत लेगा कोरोना
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रचयिता :रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[24/6/2020, 12:24 PM] Ravi Prakash:
टोकरी सिर पर लादे (कुंडलिया)
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तपती धूप सता रही ,माँ बच्चे के साथ
जीवन-रण में चल पड़ी ,पकड़े-पकड़े हाथ
पकड़े-पकड़े हाथ ,टोकरी सिर पर लादे
सूरज उसमें बाँध ,निडर करके कुछ वादे
कहते रवि कविराय ,नाम श्रम का नित जपती
माँ का शौर्य असीम , रोज गर्मी में तपती
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर( उत्तर प्रदेश )
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[24/6/2020, 8:44 PM] Ravi Prakash: हाथ सब खाली जाते (कुंडलिया)
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हारा जीता कौन है ,किसके सिर पर ताज
सब मिट्टी में मिल गए ,राजा रंक समाज
राजा रंक समाज ,हाथ सब खाली जाते
किसकी रही जमीन ,महल किसके हो पाते
कहते रवि कविराय ,चार दिन का जग सारा
किसने जीता .राज , कौन है बोलो हारा
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[29/6/2020, 10:21 AM] Ravi Prakash: _
नारी (कुंडलिया)
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नारी तुम गृह स्वामिनी ,तुम जीवन-आधार
तुममें बसता अर्थ है ,बसा धर्म का सार
बसा धर्म का सार ,नदी-सी निर्मल धारा
तुम प्राचीन नवीन ,सूर्य मुट्ठी में सारा
कहते रवि कविराय ,लोक की जिम्मेदारी
जग का लेकर भार ,दृढ़वती दिखती नारी
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[1/7/2020, 11:24 AM] Ravi Prakash: _
आज के युग का बंदर (कुंडलिया)
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बंदर कलयुग का दिखा ,मोबाइल के साथ
मोबाइल पकड़े हुए ,उसके दोनों हाथ
उसके दोनों हाथ ,आँख मुँह कान चलाता
चलता बुद्धि विवेक ,ऑनलाइन सब भाता
कहते रवि कविराय ,नए गुण भरता अंदर
मोबाइल में तेज ,आज के युग का बंदर
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[2/7/2020, 12:17 PM] Ravi Prakash: जीना बिन टिक टॉक ( कुंडलिया )
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सीखें हिंदुस्तान में ,जीना बिन टिक टॉक
सही किया है लॉक यह ,मौसम में अनलॉक
मौसम में अनलॉक ,मनोरंजन यह भूलें
देसी जितने एप ,गर्व से उनसे फूलें
कहते रवि कविराय ,देश के रँग में दीखें
अपना देश महान ,पाठ केवल यह सीखें
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[2/7/2020, 5:14 PM] Ravi Prakash: अमृत (मुक्तक)
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मरना – जीना इस दुनिया का साधारण – सा क्रम है
अमृत केवल एक कल्पना है मन का यह भ्रम है
आदत में आ गई इसलिए बिजली है मामूली
वरना इसके शोध कार्य के के पीछे भारी श्रम है
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[3/7/2020, 1:54 PM] Ravi Prakash: मोदी पहुँचे लेह ( कुंडलिया )
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सेना के उत्साह – हित ,मोदी पहुँचे लेह
अपनी धरती से जुड़ा ,माटी का यह नेह
माटी का यह नेह , हिंद प्राणों से प्यारा
नमन फौज का शौर्य ,देश नतमस्तक सारा
कहते रवि कविराय ,अर्थ यह खुलकर लेना
चलो हिंद के वीर ,शत्रु से लड़ने सेना
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[6/7/2020, 12:36 PM] Ravi Prakash:
मानो निकली भोर (कुंडलिया)
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धरती बंजर दूर तक ,मरुस्थल था चहुँ ओर
फिर भी पौधा उग गया ,मानो निकली भोर
मानो निकली भोर ,चीर धरती को आया
बोला मैं उत्साह , नाम आशा कहलाया
कहते रवि कविराय ,कृपा माँ अंबा करती
अचरज बारंबार , देह में भरती धरती
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[7/7/2020, 11:23 AM] Ravi Prakash: _
मोबाइल पर ध्यान (कुंडलिया)
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बच्चे पर है ध्यान कब ,मोबाइल पर ध्यान
माँ की ममता इस तरह ,होती लहूलुहान
होती लहूलुहान ,दूध की बोतल रोती
बच्चा गिरा धड़ाम ,शौक में माँ पर खोती
कहते रवि कविराय ,दृश्य यह दिखते सच्चे
माँ खुद में मशगूल ,पड़े औंधे मुँह बच्चे
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[7/7/2020, 4:16 PM] Ravi Prakash: लटका मुख पर मास्क (कुंडलिया)
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लटका मुख पर मास्क है ,दिखती पूरी नाक
साँसों को ले – दे रही ,नियमों को रख ताक
नियमों को रख ताक ,नजर कुछ यह भी आए
दिखे होंठ फिर दाँत ,बोल में कण बिखराए
कहते रवि कविराय ,रोज यह डर है खटका
पटक नहीं दे रोग ,काल बन सिर पर लटका
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[13/7/2020, 4:29 PM] Ravi Prakash: चार दिन होता मिलना (कुंडलिया)
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मिलना जग में भाग्य से ,मिलते अच्छे लोग
चार दिवस की जिंदगी ,होते शुभ संयोग
होते शुभ संयोग ,बिछड़ मिलते नर- नारी
पल दो पल आह्लाद ,जीव पाता संसारी
कहते रवि कविराय ,सुमन का जैसे खिलना
नश्वर जग निस्सार ,चार दिन होता मिलना
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रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[15/7/2020, 11:58 AM] Ravi Prakash: लोभ जब खींचे मन को ( कुंडलिया )
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धन को चाहें निम्न जन ,उच्च लोग सम्मान
कुछ सुख सुविधा जानते ,रहती इनमें जान
रहती इनमें जान ,मान की कीमत जानो
यह सबसे बहुमूल्य ,इसे ही जीवन मानो
कहते रवि कविराय ,लोभ जब खींचे मन को
लाओ बुद्धि विवेक ,तुच्छ ठुकराओ धन को
“” “”~~~””~~~~””””~~~~”~~~”””
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[17/7/2020, 11:37 AM] Ravi Prakash: मुख पर बाँधो मास्क (कुंडलिया)
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कोरोना है इस समय , फैला चारों ओर
बिन-लक्षण कुछ दिख रहे ,कुछ में लक्षण घोर
कुछ में लक्षण घोर ,मान सबमें बीमारी
सबसे रहिए दूर , जानकर खतरा भारी
कहते रवि कविराय ,हाथ साबुन से धोना
मुख पर बाँधो मास्क ,जानलेवा कोरोना
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[17/7/2020, 3:18 PM] Ravi Prakash: खूँटी का अब काम (कुंडलिया)
¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿]¿¿¿¿¿¿
कोरोना से लड़ रहे ,सबसे ज्यादा कान
जैसे नींवों पर टिका ,ऊँचा एक मकान
ऊँचा एक मकान ,मास्क की डोरी लादे
अब तक दिखे वजीर ,आजकल दिखते प्यादे
कहते रवि कविराय ,कान की किस्मत ढोना
खूँटी का अब काम ,शेष जब तक कोरोना
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[19/7/2020, 8:53 AM] Ravi Prakash: मास्क ( कविता )
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छोटी सी है चीज पर ,करता मास्क कमाल
हमें बचाता मौत से ,बन जाता है ढाल
बन जाता है ढाल , रोक कोरोना पाता
आते जो कीटाणु ,मार यह दूर भगाता
कहते रवि कविराय , बात यह समझो मोटी
बड़े काम की चीज ,मास्क मत समझो छोटी
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#RampurSaturdayCafe
#TaskNo5
[19/7/2020, 12:19 PM] Ravi Prakash: धन्य श्रोता (कुंडलिया)
★★★★★★★★★
खुलकर ताली से करें ,प्रोत्साहित सौ बार
कवि की कविता चाहती ,श्रोता से सत्कार
श्रोता से सत्कार , खून दो बूँद बढ़ाता
वाह -वाह की गूँज ,शब्द मन को हर्षाता
कहते रवि कविराय ,धन्य श्रोता जो घुलकर
चलते कवि के साथ ,दाद देते हैं खुलकर
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[19/7/2020, 8:03 PM] Ravi Prakash: होती कब बरसात (कुंडलिया)
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आते हैं बादल घने , घिर – घिर आती रात
सूखी है धरती मगर , होती कब बरसात
होती कब बरसात , पेड़ – पौधे मुरझाए
नभ मे उमस प्रकोप , रोग हैं सौ-सौ छाए
कहते रवि कविराय , झूठ बातें बतियाते
काला तन-मन प्राण , मेघ बिन पानी आते
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[21/7/2020, 9:01 AM] Ravi Prakash: शाही स्वीमिंग पूल (कुंडलिया)
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राजा रानी अब कहाँ , शाही स्वीमिंग पूल
काँटो जैसे हो गए ,थे जो कोमल फूल
थे जो कोमल फूल ,हाल खस्ता सब पाया
गायब हुआ रखाव ,रंग बदरंगी काया
कहते रवि कविराय ,नहीं अब बजता बाजा
अब कब महल नवाब , रियासत रानी राजा
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[21/7/2020, 3:33 PM] Ravi Prakash: चित्र पर आधारित कविता
दुनिया का अब टूर ( कुंडलिया )
शादी जैसे ही हुई , बोली दुल्हन हूर
मिस्टर जी लेकर चलो ,दुनिया का अब टूर
दुनिया का अब टूर , सुना पति जी घबराए
रूठ न जाना जान ,बोलकर दौड़े आए
कहते रवि कविराय ,जेब कड़की की आदी
कोरोना का काल ,लाद ली सिर पर शादी
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[24/7/2020, 10:42 AM] Ravi Prakash: किसने जीती मौत (कुंडलिया)
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किसको अमृत है मिला , किसने जीती मौत
तन दो दिन का है अतिथि ,मरण मानिए सौत
मरण मानिए सौत , डाह तन से यह करती
राजा हो या रंक , देह सब ही की मरती
कहते रवि कविराय ,चार दिन रहकर खिसको
जीवन-गति अविराम ,फर्क पड़ता है किसको
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[25/7/2020, 10:24 AM] Ravi Prakash: डुबकी में निष्णात( कुंडलिया )
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बिस्कुट डोबो चाय में ,कलाकार का काम
बिस्कुट यदि डूबा नहीं ,होगा जग में नाम
होगा जग में नाम ,चाय को भर – भर लाए
लेकिन पहली शर्त , डूबने से बच जाए
कहते रवि कविराय , लोक से रखिएगा पुट
डुबकी में निष्णात ,लौट आता ज्यों बिस्कुट
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[27/7/2020, 9:33 AM] Ravi Prakash: जनता लापरवाह (कुंडलिया)
??????????
पहने हैं कुछ मास्क को ,बना कंठ का हार
कुछ ने रक्खा जेब में ,जैसे धन – भंडार
जैसे धन – भंडार ,भीड़ में घुस – घुस जाते
दो गज की क्या बात ,नाक से मुख टकराते
कहते रवि कविराय ,रोग खुश है क्या कहने
जनता लापरवाह ,मास्क ढँग से कब पहने
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[27/7/2020, 10:04 PM] Ravi Prakash: अंतर्आत्मा की आवाज ( कुंडलिया )
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अंतर में आत्मा बसी ,मिली सड़क पर आज
बोली सुनता कौन है , मेरी अब आवाज
मेरी अब आवाज , न सुन इस्तीफा देता
मेरा प्यारा नाम , कौन अब मुख से लेता
कहते रवि कविराय , हुई मैं अब छूमंतर
राजनीति में मौन , नहीं बसती अब अंतर
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[27/7/2020, 10:06 PM] Ravi Prakash: कोरोना और कविवर (हास्य कुंडलिया)
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कोरोना को मिल गए ,कविवर तुक्कड़बाज
बोला छोडूँगा नहीं , पकड़ा तुमको आज
पकड़ा तुमको आज ,श्रेष्ठ कवि कब घबराए
जमकर सारे छंद , गीतिका – गीत सुनाए
कहते रवि कविराय ,बोर आखिर था होना
भागा पीछा छोड़ , दूर सौ फिट कोरोना
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[27/7/2020, 10:21 PM] Ravi Prakash: साँसे (कुंडलिया)
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साँसे लेना सोचिए , है कितना आसान
कब लीं कब छोड़ी गईं ,किसको रहता भान
किसको रहता भान ,साँस से जीवन पाते
मुश्किल की तब बात ,छोड़ खाली हो जाते
कहते रवि कविराय ,एक दिन देती झाँसे
थक जाती है देह , हाँफ कर आती साँसे
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[30/7/2020, 1:00 PM] Ravi Prakash: हम भी पूरे साठ ( कुंडलिया )
★★★★★★★★★★★★★
होने को तो हो रहे , हम भी पूरे साठ
लेकिन अब तक कब पढ़े ,जीवन के सब पाठ
जीवन के सब पाठ ,काल अनुभव सिखलाता
टूट रहे संबंध , रोज कुछ जुड़ता नाता
कहते रवि कविराय ,देह बाकी खोने को
कहती है सौ पास , आयु पूरी होने को
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[30/7/2020, 1:21 PM] Ravi Prakash: रोज मैंने कुछ सीखा (कुंडलिया)
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सीखा सब आकर यहीं , थोड़ा-थोड़ा ज्ञान
कुछ जाना कुछ रह गया ,अब भी मैं नादान
अब भी मैं नादान , गलतियाँ होती रहतीं
फिर भी पाकर वाह ,अश्रु धाराएँ बहतीं
कहते रवि कविराय ,धन्य जिनको गुण दीखा
मैं अवगुण भंडार , रोज मैंने कुछ सीखा
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[1/8/2020, 10:34 AM] Ravi Prakash: शाकाहारी भोजन (कुंडलिया)
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खाओ सब्जी पूरियाँ , रोटी चावल दाल
इनको खाने से हुआ ,किसको कहो मलाल
किसको कहो मलाल ,अहिंसा व्रती कहाओ
बिना जानवर मार ,जिंदगी सुखी बिताओ
कहते रवि कविराय ,मांस भोजन ठुकराओ
शाकाहारी भोज ,रोज सब सज्जन खाओ
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[1/8/2020, 11:14 AM] Ravi Prakash: मांस पशु का मत खाओ (कुंडलिया)
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मारे जाते किसलिए , होता कत्लेआम
मूक जानवर कर रहे ,हम से प्रश्न तमाम
हम से प्रश्न तमाम ,मांस पशु का मत खाओ
रहो मनुज की भाँति ,नेह मन में उपजाओ
कहते रवि कविराय ,रहें हिल – मिलकर सारे
छोड़ स्वाद का लोभ ,आदमी पशु मत मारे
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[1/8/2020, 11:20 AM] Ravi Prakash: धन जीवन-आधार (कुंडलिया)
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धन से बनते हैं भवन ,धन से बने मकान
धन से चलती है सदा ,बढ़िया एक दुकान
बढ़िया एक दुकान ,इलेक्शन धन से जीते
धन का देते दान ,सेठ जी अमृत पीते
कहते रवि कविराय नहीं रिश्ते हैं मन से
धन जीवन-आधार ,जिंदगी चलती धन से
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[6/8/2020, 7:46 PM] Ravi Prakash: सत्य राम का नाम (कुंडलिया)
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जाती अर्थी ने कहा , सुन लो यह पैगाम
जग झूठा निस्सार है ,सत्य राम का नाम
सत्य राम का नाम , राम कष्टों में हँसते
जिनके मन निष्काम ,नहीं माया में फँसते
कहते रवि कविराय ,आयु नश्वर तन पाती
आत्मा तत्व विशेष ,राह पर मरण न जाती
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[12/8/2020, 8:35 AM] Ravi Prakash: मास्क के अन्य लाभ (हास्य कुंडलिया)
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आया मास्क कई – कई , लिए फायदे साथ
मुख को अब ढकना नहीं ,पड़ता रखकर हाथ
पड़ता रखकर हाथ , नहीं बदबू आ पाती
गुंडों की पहचान , फोटुओं में कब आती
कहते रवि कविराय ,लिपस्टिक खर्च बचाया
जिसने पहना मास्क ,लाभ में सौ-सौ आया
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[13/8/2020, 5:40 PM] Ravi Prakash: आती मौत बिना कहे (कुंडलिया)
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आती मौत बिना कहे ,झटपट लेती जान
अब तक थीं शहनाइयाँ ,जाते अब शमशान
जाते अब शमशान ,राख मटकी भर पाई
श्रद्धाँजलि के बोल ,मनुज अच्छा था भाई
कहते रवि कविराय ,कथा इतनी रह जाती
फोटो पर है हार , याद केवल बस आती
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[14/8/2020, 6:14 PM] Ravi Prakash: जाते खाली हाथ (कुंडलिया)
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थोड़ा पाते हैं यहाँ , थोड़ा खोते लोग
किसको कितना मिल सका ,यह विधि का संयोग
यह विधि का संयोग , मिला जो ज्यादा जानो
प्रभु का पुण्य – प्रसाद , जो मिला उसको मानो
कहते रवि कविराय , रात-दिन जो भी जोड़ा
जाते खाली हाथ , साथ रहता कब थोड़ा
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[16/8/2020, 2:58 PM] Ravi Prakash: आपदा अवसर लाई (कुंडलिया)
★★★★★★★★★★★★★
होटल हैं सूने पड़े , बैंकट – हॉल उदास
शादी में बस जुड़ रहे , घर-घर के ही खास
घर-घर के ही खास ,आपदा अवसर लाई
खर्चे बचे तमाम ,मित-व्ययी अब .शहनाई
कहते रवि कविराय ,चलन अच्छा यह टोटल
घर में घर के लोग ,शादियों में क्यों होटल
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[18/8/2020, 1:05 PM] Ravi Prakash: बैठो नहीं उदास (कुंडलिया)
★★★★★★★★★★★★★★
हँसना हरदम चाहिए , बैठो नहीं उदास
हारो मत उत्साह को ,दिल में रखना आस
दिल में रखना आस ,राह मिलती मनचाही
चलती कलम विशेष ,सिर्फ जिसमें है स्याही
कहते रवि कविराय ,नहीं आँसू में फँसना
चाहे जो हो हाल , ठहाका लेकर हँसना
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[20/8/2020, 2:06 PM] Ravi Prakash: लापरवाह तमाम [कुंडलिया]
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कोरोना में दिख रहे , लापरवाह तमाम
सड़कों पर मिल जाएँगे ,बिना मास्क के आम
बिना मास्क के आम ,कहाँ दो गज की दूरी
लगती इन्हें असह्य , मास्क वाली मजबूरी
कहते रवि कविराय ,जान से हाथ न धोना
रखिए सभी बचाव , हराएँ मिल कोरोना
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[21/8/2020, 12:13 PM] Ravi Prakash: वरिष्ठ नागरिक (कुंडलिया)
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खाते – पीते हो गए , जो भी पूरे साठ
अब वरिष्ठ कहला रहे ,देते सबको पाठ
देते सबको पाठ , श्वेत बालों की माया
मिलता आसन उच्च ,नाम बूढ़ों में आया
कहते रवि कविराय ,साठ जो होकर जीते
पाते हैं सम्मान , शान से खाते – पीते
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[24/8/2020, 10:24 PM] Ravi Prakash: चित्र पर आधारित कविता
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वोटर का अंदाज (कुंडलिया)
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राजा – जैसा दिख रहा ,वोटर का अंदाज
निर्धन है तो क्या हुआ ,अदा मधुरतम आज
अदा मधुरतम आज ,राज मतदाता पाया
जिसे चाहिए वोट ,शीश नत करके आया
कहते रवि कविराय ,बजा नेता का बाजा
बोला माई – बाप ,आज के दिन तुम राजा
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[25/8/2020, 11:28 AM] Ravi Prakash: ऑनलाइन बस उड़ते (कुंडलिया)
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सजते कब पंडाल हैं ,जुड़ती अब कब भीड़
अपनी – अपनी टहनियाँ ,अपने – अपने नीड़
अपने – अपने नीड़ ,पाँच जन केवल जुड़ते
कविताएँ सत्संग , ऑनलाइन बस उड़ते
कहते रवि कविराय ,मास्क को सब जन भजते
बीमारी विकराल , लोग घर में ही सजते
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[25/8/2020, 2:57 PM] Ravi Prakash: मोबाइल उपहार( बाल कुंडलिया )
?????????
कोरोना से फायदा ,सुन लो मेरे यार
हम बच्चों को मिल गया ,मोबाइल उपहार
मोबाइल उपहार ,ऑनलाइन अब पढ़ते
पढ़कर ढेर सवाल ,रोज उत्तर हम गढ़ते
कहते रवि कविराय ,मजा यह हमें न खोना
अच्छा तिरछा – लाभ ,दिया तुमने कोरोना
??????????
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[28/8/2020, 9:31 AM] Ravi Prakash: मास्क ( कुंडलिया )
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आओ देखें मास्क को , कैसे पहने लोग
मुखमंडल उघड़ा हुआ ,सिर्फ कंठ से योग
सिर्फ कंठ से योग , नेकलस जैसे पहना
कुछ रखते इस भाँति ,जेब में जैसे गहना
कहते रवि कविराय ,नजर सब जन दौड़ाओ
चेतो अरे समाज , सजग राहों पर आओ
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[30/8/2020, 11:35 AM] Ravi Prakash: ढका मास्क से राज ( हास्य कुंडलिया )
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कानाफूसी रुक गई ,दो गज हैं सब दूर
हाथ मिलाने का नहीं ,जिंदा अब दस्तूर
जिंदा अब दस्तूर ,दाँत देखे कब पीसे
किसने देखा कौन ,निपोरे अपनी खींसे
कहते रवि कविराय ,अगर टॉफी है चूसी
ढका मास्क से राज ,कीजिए कानाफूसी
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[30/8/2020, 2:56 PM] Ravi Prakash: क्षितिज (कुंडलिया)
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करता है मन दौड़ के ,चलें क्षितिज के पार
देखें फिर जाकर वहाँ , कैसा है संसार
कैसा है संसार , देवता शायद पाएँ
अमृत की दो बूँद ,काश हमको मिल जाएँ
कहते रवि कविराय ,सुना तन वहाँ न मरता
रहता सदा जवान ,रोग की फिक्र न करता
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[31/8/2020, 9:34 AM] Ravi Prakash: बचो जमघट जो खोला (कुंडलिया)
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खोला पूरे देश में , संस्कृति धर्म समाज
अनुशासन अब खुद रखें ,संभव है क्या आज
संभव है क्या आज ,मास्क दो गज की दूरी
डर केवल चालान , इसलिए है मजबूरी
कहते रवि कविराय ,तुला पर खुद को तोला
नहीं चाहिए भीड़ ,बचो जमघट जो खोला
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[1/9/2020, 9:32 AM] Ravi Prakash: सौ लोगों की भीड़ (कुंडलिया)
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सौ लोगों की मिल गई ,अनुमति अच्छी बात
शव – यात्रा में जाइए ,शादी – ब्याह बरात
शादी – ब्याह बरात , बैंड – बाजा बजवाएँ
फिर से शादी -भोज ,रोज फिर से सजवाएँ
कहते रवि कविराय , मगर चिंता रोगों की
खतरे का एलार्म , भीड़ है सौ लोगों की
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[2/9/2020, 1:13 PM] Ravi Prakash: जेबों में है मास्क (कुंडलिया)
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मुख पर बाँधे मास्क को ,चलते कितने लोग
कितने सचमुच मानते ,फैला कोई रोग
फैला कोई रोग , दूरियाँ दो गज रखते
कितने धोते हाथ ,स्वाद फिर कोई चखते
कहते रवि कविराय परिस्थितियाँ हैं दुष्कर
जेबों में है मास्क ,कहाँ है सब के मुख पर
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[6/9/2020, 8:46 PM] Ravi Prakash: शब्द पर आधारित कविता
विलास (कुंडलिया)
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भोगी का जीवन रहा ,प्रतिदिन भोग-विलास
क्षुधा शांत होती कहाँ ,बढ़ती रहती आस
बढ़ती रहती आस ,आग में ज्यों घी जाए
भड़के बढ़कर आग ,चैन अंतर कब पाए
कहते रवि कविराय ,धन्य जो बनता योगी
उसको जो आनंद , भोगता कब है भोगी
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[9/9/2020, 11:02 AM] Ravi Prakash: घर-घर आज मरीज (कुंडलिया )
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बीमारी फैली हुई , घर-घर आज मरीज
कुछ अकड़ू हैं कह रहे ,उससे तू क्या चीज
उससे तू क्या चीज ,हमारा क्या कर लेगी
आता सिर्फ बुखार ,एक झटका भर देगी
कहते रवि कविराय ,बुआ उनकी पर हारी
बेचारी कमजोर , उसे खाई बीमारी
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[12/9/2020, 8:03 AM] Ravi Prakash: आत्महत्या दुखदाई( कुंडलिया )
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दुखदाई कितना बने , जीवन यह संसार
करें आत्महत्या नहीं , यह है एक विकार
यह है एक विकार ,परिस्थितियों से लड़िए
हारे मन की सोच , बुरी मत इसमें पड़िए
कहते रवि कविराय ,समझ जिस में भी आई
बोला क्षुद्र विचार , आत्महत्या दुखदाई
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[15/9/2020, 2:07 PM] Ravi Prakash: चित्र पर आधारित कविता
रोते बूढ़े ( कुंडलिया )
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रोते बूढ़े कर रहे , यौवन के दिन याद
हुए रिटायर हो गए , खाली उसके बाद
खाली उसके बाद ,कमर फिर झुकती जाती
करें हाथ कम काम ,उपेक्षा सदा सताती
कहते रवि कविराय , देह का बोझा ढोते
तकिए गीले रोज , कभी दिन ही में रोते
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[19/9/2020, 4:28 PM] Ravi Prakash: मृत्यु महान (कुंडलिया)
★★★★★★★★★
धरती को जीवन मिला ,पाकर मृत्यु महान
अगर न होती मृत्यु तो ,बनती दुख की खान
बनती दुख की खान ,बुढ़ापा रोज सताता
आपाधापी लोभ , आतताई बन आता
कहते रवि कविराय , जिंदगी आहें भरती
उसको चिर विश्राम ,कहाँ देती फिर धरती
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[21/9/2020, 10:24 AM] Ravi Prakash: शब्द पर आधारित कविता
मंसूख (कुंडलिया)
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भूखे को रोटी बड़ी ,सबसे बढ़कर भूख
भूख बढ़ी तो हो गई ,लोक – लाज मंसूख
लोक-लाज मंसूख , पेट की आग बड़ी है
इसका अर्थ सपाट ,शत्रु की सैन्य खड़ी है
कहते रवि कविराय ,वचन धर्मों के रूखे
केवल उन के योग्य ,नहीं जो जन हैं भूखे
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मंसूख= जो रद्द कर दिया गया हो
[21/9/2020, 3:12 PM] Ravi Prakash: साइकिल (कुंडलिया)
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बाइक से होती भली ,एक साथ दो काम
चले बिना पेट्रोल के ,सस्ता इसका दाम
सस्ता इसका दाम ,खूब कसरत करवाती
करो साइकिल – सैर ,नहीं बीमारी आती
कहते रवि कविराय,साइकिल कर दो “लाइक”
कहो साइकिल हाय ,बाय तुमको है बाइक
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[22/9/2020, 11:38 AM] Ravi Prakash: वाह-वाह श्री मास्क जी (कुंडलिया)
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मुखडे सुंदर छुप गए ,ऐसा किया कमाल
वाह-वाह श्री मास्क जी ,सब तुम से बेहाल
सब तुम से बेहाल , होंठ सूखे या गीले
किसने जाना गाल , लाल हैं या हैं पीले
कहते रवि कविराय ,आजकल सब के दुखड़े
दिखते केवल वस्त्र ,नहीं दिख पाते मुखड़े
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[22/9/2020, 12:25 PM] Ravi Prakash: ढोते बोझा देह का (कुंडलिया)
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ढोते बोझा देह का ,खुद ही सौ-सौ साल
चाहे अच्छी देह है , या फिर खस्ताहाल
या फिर खस्ताहाल ,रोग से तन जब सड़ता
सबको खुद ही बोझ ,देह का ढोना पड़ता
कहते रवि कविराय , भतीजे बेटे पोते
अर्थी पर रख देह , बाद मरने के ढोते
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[23/9/2020, 9:27 AM] Ravi Prakash: रिश्वत ( कुंडलिया )
★★★★★★★★★★★★★★★
रिश्वत ऐसी चल रही ,इसके बिना न काम
जैसा जिसका काम है ,वैसा तय है दाम
वैसा तय है दाम ,घूस अफसर को भाती
इसके लिए बगैर ,प्रक्रिया कब बढ़ पाती
कहते रवि कविराय ,देश में फैली विषवत
सबसे घातक रोग ,आज का मानो रिश्वत
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[23/9/2020, 4:07 PM] Ravi Prakash: पिटारी (कुंडलिया)
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खुली पिटारी याद की , पितृपक्ष का दौर
जब तक थे माता-पिता ,अहा ! दौर था और
अहा ! दौर था और ,तनिक कब फिक्र सताती
चिंताओं का बोझ , पिताजी की थी थाती
कहते रवि कविराय , यही थी दौलत सारी
कर्तव्यों का बोध , भरी थी खुली पिटारी
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[24/9/2020, 2:24 PM] Ravi Prakash: महामारी मजबूरी (कुंडलिया)
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दूरी छह फिट की रखो ,आने मत दो पास
मास्क ढको आए नहीं ,तुम तक कोई श्वास
तुम तक कोई श्वास ,कहीं कुछ चीज न छूना
खतरे का एलार्म ,अर्थ है लगना चूना
कहते रवि कविराय , महामारी मजबूरी
समझदार इंसान , आजकल रखते दूरी
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[26/9/2020, 12:48 PM] Ravi Prakash: खाते थे जो ड्रग्स ( कुंडलिया )
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खाते थे जो ड्रग्स को ,आफत में है जान
सोच रहे खुल जाए न ,अपनी अब पहचान
अपनी अब पहचान ,नशे के आदी रोते
काट रहे हैं पाप ,बीज जो अब तक बोते
कहते रवि कविराय ,केस खुलते ही जाते
भेद खोलते मित्र , साथ में यह भी खाते
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[29/9/2020, 11:38 PM] Ravi Prakash: सठियाना (कुंडलिया)
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सठियाना खुलकर कहो ,षष्ठिपूर्ति का अर्थ
साठ वर्ष के हो गए , आगे जीवन व्यर्थ
आगे जीवन व्यर्थ ,रिटायर अब घर बैठो
शिथिल हो गए पाँव ,हाथ मत ज्यादा ऐंठो
कहते रवि कविराय ,बात सच सोलह आना
वर्षगाँठ यदि साठ ,अर्थ इसका सठियाना
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[6/10/2020, 11:40 AM] Ravi Prakash: शब्द पर आधारित कविता
मंदार (कुंडलिया)
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देखा किसने है कहाँ , होता है मंदार
वृक्ष कहाँ इस लोक का ,हुआ लोक के पार
हुआ लोक के पार ,फूल – फल कैसे आते
जाने कैसी शाख ,स्वप्न में सिर्फ सुहाते
कहते रवि कविराय ,स्वर्ग की सीमा – रेखा
गया कौन परलोक ,मृत्यु को किसने देखा
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मंदार = स्वर्ग का एक वृक्ष , धतूरा ,हाथी
[10/10/2020, 4:39 PM] Ravi Prakash: एक है सोना मिट्टी (कुंडलिया)
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मिट्टी या सोना कहो ,ज्ञानी जानें सार
दोनों के भीतर बसी , मात्राएँ हैं चार
मात्राएँ हैं चार , अर्थ मिट्टी या सोना
छंद-शास्त्र अनुसार ,भार में फर्क न होना
कहते रवि कविराय ,वस्तु काली या चिट्टी
नश्वर जग निस्सार ,एक है सोना – मिट्टी
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[14/10/2020, 1:37 PM] Ravi Prakash: शब्द पर आधारित कविता
ओझल (कुंडलिया)
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होता ओझल जा रहा ,देखा हुआ अतीत
समय सत्य कब लग रहा ,जो था साथ व्यतीत
जो था साथ व्यतीत ,फ्रेम में फोटो जड़ते
दूर लोक के लोग , जान ऐसे वह पड़ते
कहते रवि कविराय ,हृदय अक्सर है रोता
रहता कब कुछ पास ,दृष्टि से ओझल होता
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ओझल = दृष्टि की सीमा से बाहर ,छिपा हुआ , गायब
[16/10/2020, 10:43 AM] Ravi Prakash: शब्द पर आधारित कविता
कपाल (कुंडलिया)
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करता रहता सर्वदा , सबका काम कपाल
कुछ को साधारण मिला ,कुछ को मिला कमाल
कुछ को मिला कमाल ,दूर की कौड़ी लाते
ऐसे चिंतनशील , सोच कब दूजे पाते
कहते रवि कविराय ,काल अपने पग धरता
अंतिम – क्रिया कपाल ,पुत्र रो-रोकर करता
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कपाल =ललाट ,खोपड़ी
[16/10/2020, 1:37 PM] Ravi Prakash: सपने 【कुंडलिया】
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सपने जब तक पल रहे ,उत्साही इंसान
उम्र भले ही साठ हो ,तब तक कहो जवान
तब तक कहो जवान ,सीखना रोज जरूरी
नए सृजन से बंधु ,कभी रखना मत दूरी
कहते रवि कविराय ,दौर सब ही हैं अपने
यौवन की पहचान ,उम्र से ज्यादा सपने
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[27/10/2020, 12:46 PM] Ravi Prakash: कंचन (कुंडलिया)
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कंचन – काया हो गई ,मटकी भर कर राख
कहता काल मनुष्य से ,यही तुम्हारी साख
यही तुम्हारी साख ,चार दिन तन का मेला
एक दिवस फिर अंत ,छोड़ जग चला अकेला
कहते रवि कविराय ,भूमिका का बस मंचन
मिला किसी को काँस्य ,रजत कुछ पाते कंचन
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कंचन = सोना ,धन-संपत्ति ,निरोग
[2/11/2020, 1:35 PM] Ravi Prakash: ज्योत्स्ना (कुंडलिया)
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छाती नभ में ज्योत्स्ना , चंदा की सौगात
गोरा दूल्हा हँस रहा , तारों की बारात
तारों की बारात , दिखा आकाश निराला
गोल – मटोला चाँद , रूप अद्भुत मतवाला
कहते रवि कविराय ,मरण की तिथि फिर आती
रुदन करता व्योम , अमावस्या है छाती
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ज्योत्स्ना = चाँदनी , दुर्गा , सौंफ
[6/11/2020, 12:32 PM] Ravi Prakash: जिजीविषा (कुंडलिया)
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भरता भाव जिजीविषा ,साहस का संयोग
कहता रोगी मत करो , बारूदी उपभोग
बारूदी उपभोग , नहीं हो आतिशबाजी
पर्यावरण – सुधार ,हेतु सब हों अब राजी
कहते रवि कविराय ,वायु को दूषित करता
आतिशबाजी जहर ,साँस में भीतर भरता
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जिजीविषा = जीने की इच्छा या उत्कट कामना , जीवटता
[11/11/2020, 1:33 PM] Ravi Prakash: सुनें आठ के पार (कुंडलिया)
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असली धन है स्वास्थ्य ही ,सब सुख का आधार
धनतेरस का अर्थ यह , सुनें साठ के पार
सुनें साठ के पार , भोज में संयम लाएँ
नित अनुलोम – विलोम ,श्वास के गुर अपनाएँ
कहते रवि कविराय ,ठीक यदि हड्डी – पसली
समझो हो धनवान ,देह धन होती असली
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[12/11/2020, 5:26 PM] Ravi Prakash: माटी करे पुकार (कुंडलिया)
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घूमा चाक कुम्हार का ,माटी करे पुकार
मालिक मेरे ओ सखा ,दे मुझको आकार
दे मुझको आकार ,दीप में ढल – ढल जाऊँ
घी – बाती के संग ,उजाला फिर फैलाऊँ
कहते रवि कविराय ,आयु दो दिन बस झूमा
करने जग उजियार ,दिवस दो दीपक घूमा
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[15/11/2020, 1:44 PM] Ravi Prakash: उच्छ््वास (कुंडलिया)
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मरता तन जब आखिरी ,लेता है उच्छ््वास
उसको भी शायद हुआ ,मरने का आभास
मरने का आभास ,कष्ट से प्राण निकलते
जीवन के सब चित्र ,तेज गति से ज्यों चलते
कहते रवि कविराय ,विधाता मन की करता
भला-बुरा हर व्यक्ति ,काल के हाथों मरता
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उच्छ््वास = गहरी साँस , ग्रंथ का कोई अध्याय
[15/11/2020, 3:32 PM] Ravi Prakash: सत्य राम का नाम (कुंडलिया)
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गिनती की साँसें मिलीं ,फिर है पूर्ण विराम
फिर अर्थी जलती-चिता ,सत्य राम का नाम
सत्य राम का नाम ,राख मटकी भर आती
किसके कैसे काम ,सिर्फ गाथा रह जाती
कहते रवि कविराय ,ईश से यह ही विनती
भूलें होंगी साथ , नाथ मत करना गिनती
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[16/11/2020, 3:13 PM] Ravi Prakash: अनिश्चित (कुंडलिया)
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कल का किसको क्या पता ,दिन होगा या रात
मैत्री होगी भाग्य में ,या फिर होगा घात
या फिर होगा घात ,चाँद सूरज सब तारे
चमकेंगे या डूब , डूब जाएँगे सारे
कहते रवि कविराय ,पता क्या किसको कल का
जिओ आज का दौर ,अनिश्चित है सब कल का
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[18/11/2020, 11:35 AM] Ravi Prakash: जिंदगी (कुंडलिया)
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रुकती कब है जिंदगी , चलती है अविराम
अविरत जीवन – पथ , सदा संघर्षों के नाम
संघर्षों के नाम , समस्या प्रतिदिन आती
आई निबटी एक , दूसरी फिर आ जाती
कहते रवि कविराय , कमर चाहे है झुकती
जब तक अंतिम साँस ,आस कब मन की रुकती
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अविरत = विराम का अभाव ,नैरंतर्य , निरंतरता
[19/11/2020, 10:53 AM] Ravi Prakash: याद (कुंडलिया)
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जैसे हो सौदामिनी , आई कोई याद
आँखों में दीखी चमक ,मानो बरसों बाद
मानो बरसों बाद , पुरानी सारी बातें
गुजरे दिन थे साथ ,हजारों गुजरी रातें
कहते रवि कविराय ,मोड़ आते हैं कैसे
धुँधला हुआ अतीत ,एक सपना हो जैसे
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सौदामिनी = बादलों में चमकने वाली बिजली ,
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[20/11/2020, 3:38 PM] Ravi Prakash: नदियाँ पेड़ पहाड़ (कुंडलिया)
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सबसे ज्यादा कीमती ,.नदियाँ पेड़ पहाड़
जिस युग में यह शुद्ध हैं ,देता झंडे गाड़
देता झंडे गाड़ , कलुष कलयुग में आया
दूषित है जलवायु , साँस में कष्ट समाया
कहते रवि कविराय ,बात भूले यह कब से
प्रकृति रखो अब साफ ,कहेंगे अब से सबसे
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[23/11/2020, 11:19 AM] Ravi Prakash: यह संसार असार 【कुंडलिया】
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गाड़ी बँगला कोठियाँ , भरा स्वर्ण – भंडार
समझो मिट्टी यह जगत ,यह संसार असार
यह संसार असार ,वस्तुएँ आती – जातीं
बदले केवल रूप ,बदलते मालिक पातीं
कहते रवि कविराय ,सूट पहनो या साड़ी
कफन डालकर एक ,देह ले जाती गाड़ी
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असार = सारहीन ,व्यर्थ ,मिथ्या , माया
[26/11/2020, 4:21 PM] Ravi Prakash: रुकता किसका काम (कुंडलिया)
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आते – जाते लोग हैं ,जग की गति अविराम
किसके जाने से यहाँ ,रुकता किस का काम
रुकता किसका काम ,नहीं आती तरुणाई
नए – नए नित खेल ,यही जग की अच्छाई
कहते रवि कविराय ,विधाता नियम बनाते
पत्ते झड़ते वृद्ध , युवा नित नूतन आते
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[28/11/2020, 11:21 AM] Ravi Prakash: मास्क (कुंडलिया)
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मास्क लगाए ढंग से ,सौ में दस बस लोग
लापरवाही से बढ़ा , कोरोना का रोग
कोरोना का रोग , साठ जेबों में पटके
कुछ के बाँके मास्क ,जीभ जबड़ों में लटके
कहते रवि कविराय ,रोग ने रंग दिखाए
चेते पर कब लोग ,नहीं हैं मास्क लगाए
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[30/11/2020, 11:31 AM] Ravi Prakash: पर्वों का उत्साह (कुंडलिया)
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बहती धरती पर नदी ,अंबर का जयघोष
डुबकी से वंचित रहे , करते हैं जन रोष
करते हैं जन रोष ,देव क्यों रोग निकाला
पर्वों का उत्साह , अब कहाँ पहले वाला
कहते रवि कविराय ,वाह ! क्या रौनक रहती
मेला लगता खूब ,भीड़ नदिया – सी बहती
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