विचार-प्रधान कुंडलियाँ
225 कुंडलियाँ विचार-प्रधान
[11/11/2020, 11:02 AM] Ravi Prakash: अभिभूत (कुंडलिया)
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बलशाली हनुमान थे , भक्त राम के दूत
वर्णन हनुमत का चरित ,कर देता अभिभूत
कर देता अभिभूत ,सिया का पता लगाया
पवन – पुत्र का शौर्य ,लाँघ सागर को पाया
कहते रवि कविराय ,लौटकर मनी दिवाली
धन्य – धन्य हनुमान ,श्रेय तुमको बलशाली
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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अभिभूत = मुग्ध , भावविभोर , पराजित
[14/11/2020, 11:49 AM] Ravi Prakash: मात्सर्य (कुंडलिया)
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खाता रहता देह को , घुन जैसा मात्सर्य
रोग बुरा देता मरण , इसका नित सहचर्य
इसका नित सहचर्य ,आग में तन है जलता
जिसमें भी यह दोष ,फूलता है कब फलता
कहते रवि कविराय ,देख मन क्यों ललचाता
कुढ़ता व्यर्थ मनुष्य ,भाग्य जिसका जो खाता
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मात्सर्य = मत्सर , ईर्ष्या ,डाह
[16/11/2020, 3:13 PM] Ravi Prakash: अनिश्चित (कुंडलिया)
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कल का किसको क्या पता ,दिन होगा या रात
मैत्री होगी भाग्य में ,या फिर होगा घात
या फिर होगा घात ,चाँद सूरज सब तारे
चमकेंगे या डूब , डूब जाएँगे सारे
कहते रवि कविराय ,पता क्या किसको कल का
जिओ आज का दौर ,अनिश्चित है सब कल का
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[19/11/2020, 10:53 AM] Ravi Prakash: याद (कुंडलिया)
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जैसे हो सौदामिनी , आई कोई याद
आँखों में दीखी चमक ,मानो बरसों बाद
मानो बरसों बाद , पुरानी सारी बातें
गुजरे दिन थे साथ ,हजारों गुजरी रातें
कहते रवि कविराय ,मोड़ आते हैं कैसे
धुँधला हुआ अतीत ,एक सपना हो जैसे
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सौदामिनी = बादलों में चमकने वाली बिजली ,
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[20/11/2020, 1:29 PM] Ravi Prakash: दूज का चाँद (कुंडलिया)
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आओ उनको दें नमन ,जो किसलय के दूत
जिनको देखा तो कहा ,जग ने अरे सपूत
जग ने अरे. सपूत , दूज के चाँद कहाते
छोटा है आकार , किंतु जो रहे सुहाते
कहते रवि कविराय ,देखने छत पर जाओ
दर्शन से है पुण्य ,देख नव – अंकुर आओ
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किसलय = कोंपल , नव पल्लव , अंकुर
[20/11/2020, 3:38 PM] Ravi Prakash: नदियाँ पेड़ पहाड़ (कुंडलिया)
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सबसे ज्यादा कीमती ,.नदियाँ पेड़ पहाड़
जिस युग में यह शुद्ध हैं ,देता झंडे गाड़
देता झंडे गाड़ , कलुष कलयुग में आया
दूषित है जलवायु , साँस में कष्ट समाया
कहते रवि कविराय ,बात भूले यह कब से
प्रकृति रखो अब साफ ,कहेंगे अब से सबसे
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[24/11/2020, 11:34 AM] Ravi Prakash: नायिका वह सुकुमारी (कुंडलिया)
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मटकी लेकर चल पड़ी ,मन में प्रिय नीलाभ
रोम – रोम हर्षा रहा , मुखमंडल अमिताभ
मुखमंडल अमिताभ ,लगी मटकी कब भारी
चलती गति से तेज ,नायिका वह सुकुमारी
कहते रवि कविराय ,बात बस इतनी खटकी
होते पहिए चार , दौड़ती लेकर मटकी
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नीलाभ = जिसमें नीले रंग की आभा या झलक हो
अमिताभ = अति कांति युक्त , अत्यंत तेजस्वी
[27/11/2020, 10:48 AM] Ravi Prakash: नीड़ ( कुंडलिया )
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मेले में ज्यों खो .गया ,ऐसी जग में भीड़
आपाधापी में बचा ,किसका अपना नीड़
किसका अपना नीड़ ,कहाँ दो पल टिक पाता
हुई सुबह तो काम ,रात गहरी घर आता
कहते रवि कविराय, संग बच्चे कब खेले
छूटा घर परिवार , भ्रमण तीर्थाटन मेले
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नीड़ = घोंसला ,आश्रय
[28/11/2020, 11:56 AM] Ravi Prakash: गंगा (कुंडलिया)
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गंगाजल अमृत कहो ,इसको कोटि प्रणाम
मुक्ति दिलाती यह नदी ,सत्य राम का नाम
सत्य राम का नाम ,जटा से शिव की आई
स्वर्गलोक की देन , भरी इसमें अच्छाई
कहते रवि कविराय ,हुआ रोगी तन चंगा
मन पवित्र अभिराम ,लगाओ डुबकी गंगा
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[28/11/2020, 8:03 PM] Ravi Prakash: भागीरथी (कुंडलिया)
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अद्भुत है भागीरथी , अनुपम इसका रूप
नदियों में इसकी छटा , रहती सदा अनूप
रहती सदा अनूप , मरण से मुक्ति – प्रदाता
तर जाता है जीव ,न जग में वापस आता
कहते रवि कविराय ,कृपा करना हे अच्युत
दो फिर से वरदान ,वही गरिमा फिर अद्भुत
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[9/12/2020, 10:53 AM] Ravi Prakash: संत (कुंडलिया)
??????????
करते हैं प्रभु भक्त पर ,निज उपकार अनंत
चलते – चलते राह में ,मिल जाते हैं संत
मिल जाते हैं संत ,दिशा जीवन की देते
जन्म – जन्म के पाप ,सोख भीतर से लेते
कहते रवि कविराय ,भाग्य से मानव तरते
उन्हें मिलाते संत ,कृपा प्रभु जिन पर करते
?????????
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अनंत = जिसका अंत न हो ,असीम
[12/12/2020, 9:28 PM] Ravi Prakash: आँखें (कुंडलिया)
????????☘️?
जानो आँखों से जरा ,किसका मुखड़ा कौन
आँखें भी हैं बोलतीं ,यद्यपि दिखतीं मौन
यद्यपि दिखतीं मौन ,आँख से नेह बरसता
अगर देखतीं घात ,खून भीतर में बसता
कहते रवि कविराय ,सत्य आँखों को मानो
कहतीं तभी न झूठ ,इन्हीं की मन की जानो
?????☘️☘️☘️☘️☘️
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[13/12/2020, 11:09 AM] Ravi Prakash: घाम (कुंडलिया)
☘️?☘️?☘️?☘️?☘️?
जितनी सुंदर सर्दियाँ , उससे सुंदर घाम
आई तो ज्यों मिल गया ,परमेश्वर का धाम
परमेश्वर का धाम ,स्वर्ग का सुख सब पाते
सूरज देता ताप , मजे फोकट में आते
कहते रवि कविराय ,न पूछो अच्छी कितनी
सर्दी की सौगात , एक वर मानो जितनी
?????????
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घाम = धूप
फोकट = मुफ्त
[13/12/2020, 11:02 PM] Ravi Prakash: सत्य (कुंडलिया)
??☘️??☘️??☘️
मैने पूछा काल से ,सच्चा जग में कौन
उत्तर उसने कब दिया ,साधा गहरा मौन
साधा गहरा मौन ,कहा फिर सब में खामी
सब में कोई भूल ,सभी कपटी खल कामी
कहते रवि कविराय ,काल के नख हैं पैने
उसने देखा सत्य , नहीं तुमने या मैने
?????????
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[14/12/2020, 11:07 AM] Ravi Prakash: अरुण (कुंडलिया)
??????
आया पूरब से अरुण ,पिघला जैसे स्वर्ण
हर्ष- मग्न होने लगे , पक्षी पौधे पर्ण
पक्षी पौधे पर्ण , लालिमा नभ में छाई
तरुणाई से दीप्त , मनुज ने ली अँगड़ाई
कहते रवि कविराय ,दृश्य अद्भुत कहलाया
उतर स्वर्ग से रूप ,धरा पर मानो आया
?????????
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??????????~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अरुण = गहरा लाल रंग का , प्रातः कालीन सूर्य
पर्ण = पेड़ का पत्ता
[15/12/2020, 11:51 AM] Ravi Prakash: पिता (कुंडलिया)
????
पकड़े उँगली चल रहे ,आते दिन हैं याद
बेफिक्री का दौर वह ,कहाँ पिता के बाद
कहाँ पिता के बाद , नहीं कुछ जिम्मेदारी
खाना सोना सैर , जिंदगी प्यारी – प्यारी
कहते रवि कविराय ,आज उलझन में जकड़े
लौटेगा कब काल ,गया जो उँगली पकड़े
??????????
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[15/12/2020, 5:09 PM] Ravi Prakash: अक्षर (कुंडलिया)
?????????
अक्षर कम मत आँकिए ,अक्षर ब्रह्म समान
इनमें जीवन बस रहा ,इनमें. बसती जान
इनमें बसती जान , शब्द अक्षर के मेले
शब्दों के संयोग , काव्य के रँग अलबेले
कहते रवि कविराय ,साधना देती अवसर
जुड़ जाता ब्रह्मांड ,श्रेय तुमको है अक्षर
?☘️?☘️??☘️?☘️
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अक्षर = वर्णमाला का कोई स्वर या व्यंजन वर्ण , जिसका कभी नाश न हो
[15/12/2020, 8:02 PM] Ravi Prakash: आँसू (कुंडलिया)
?☘️??☘️??☘️?
आँसू से बढ़कर नहीं ,समझो कोई मीत
ढुलका तो फिर बन गया ,आहें भरता गीत
आहें भरता गीत ,हृदय की व्यथा सुनाता
जो भीतर की बात ,जगत तक यह पहुँचाता
कहते रवि कविराय ,ठहर जाता तो धाँसू
बन जाता चट्टान , दर्द का साथी आँसू
????????
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[16/12/2020, 11:41 AM] Ravi Prakash: उर (कुंडलिया)
?????????
उर में देखा झाँककर , किसने अंतर्नाद
चला जगत यह यंत्रवत ,दुख के दो दिन बाद
दुख के दो दिन बाद ,रही पीड़ा अनजानी
जग ने सौंपे शब्द , सांत्वना भरी कहानी
कहते रवि कविराय ,न लौटा जीवन सुर में
जो भीतर का घाव ,लगा कब सूखा उर में
?????????
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??????
उर = हृदय ,मन ,छाती
[17/12/2020, 11:06 AM] Ravi Prakash: कोहरा (कुंडलिया)
?????????
छाया गहरा कोहरा , घेरे व्योम अनंत
ढक सूरज इसने लिया,अब कब दिखा ज्वलंत
अब कब दिखा ज्वलंत ,अराजकता ज्यों फैली
सब क्रम बेतरतीब , जगत की चादर मैली
कहते रवि कविराय , कोहरा पर इतराया
बोला मेरा राज , लोक पर देखो छाया
?????????
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ज्वलंत = चमकता हुआ ,देदीप्यमान ,स्पष्ट
व्योम = आकाश
बेतरतीब = अव्यवस्थित ,क्रमरहित
[18/12/2020, 11:04 AM] Ravi Prakash: ज्वार (कुंडलिया)
?????????
सागर में ही है सदा , आता भीषण ज्वार
जब यह आता जानिए ,खतरा एक अपार
खतरा एक अपार , शांत यों बारहमासी
रहते हैं निश्चिंत , पर्यटक तट के वासी
कहते रवि कविराय ,बड़ी हो कितनी गागर
क्या जाने यह ज्वार ,किस तरह लाता सागर
????????
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??????
ज्वार = समुद्र के जल की खूब लहराते हुए आगे बढ़ने या ऊपर उठने की अवस्था
[21/12/2020, 11:12 AM] Ravi Prakash: विहग (कुंडलिया)
??
उड़ते नभ में हैं विहग ,दोनों पंख पसार
मानो जाना चाहते ,दुनिया के उस पार
दुनिया के उस पार ,सदा मस्ती में जीते
इन्हें सुहाती वायु ,घूँट – भर जल बस पीते
कहते रवि कविराय ,जिधर मनचाहा मुड़ते
मिलता गगन असीम ,दूर ऊँचे तक उड़ते
??
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विहग = पक्षी
[22/12/2020, 11:06 AM] Ravi Prakash: अनल (कुंडलिया)
??
सब से ज्यादा जानिए ,हुआ अनल का ताप
भट्टी जैसे जल रही , भीतर अपने आप
भीतर अपने आप ,पेट का इंजन चलता
खाकर ईंधन – भोज ,नेह से प्रतिदिन पलता
कहते रवि कविराय ,बनी है दुनिया जब से
सब आगों में आग ,पेट की ज्यादा सब से
???
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???????
अनल = पेट की अग्नि
[25/12/2020, 11:06 AM] Ravi Prakash: क्रिसमस (कुंडलिया)
??????
आओ देखें चर्च में , क्रिसमस खुशी अपार
वसुधा एक कुटुंब है , बैठें करें विचार
बैठें करें विचार , जन्म ईसा सुखदाई
सत्य प्रेम बलिदान , राह जिसने दिखलाई
कहते रवि कविराय , चलो त्यौहार मनाओ
मानवता अविभाज्य ,साथ सब मिलकर आओ
??????
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[25/12/2020, 11:41 AM] Ravi Prakash: आर्य (कुंडलिया)
?????????
वेदों को फिर से पढ़ें , गाएँ गीता ज्ञान
याद करें वह आर्य जन ,जो थे शुभ्र महान
जो थे शुभ्र महान , बनें फिर उनके जैसे
ऋषियों का यह देश ,तपस्वी कैसे – कैसे
कहते रवि कविराय ,करें विस्मृत भेदों को
विश्व बनाएँ आर्य ,शीश पर धर वेदों को
??????????
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?????????
आर्य = श्रेष्ठ ,उत्तम ,पूज्य ,योग्य ,
वैदिक कालीन प्राचीन भारत आर्यावर्त के निवासी
[29/12/2020, 7:00 PM] Ravi Prakash: रात (कुंडलिया)
????????
सबसे अच्छी जानिए ,जग में होती रात
रात मधुर है इसलिए ,नित्य नींद की बात
नित्य नींद की बात ,रात का चाँद सुहाना
जगमग तारक व्योम ,रूप इसका मस्ताना
कहते रवि कविराय ,बनी है दुनिया जब से
सबको लगती रात ,जगत में प्यारी सबसे
????????
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रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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तारक = तारों से भरा
व्योम = आकाश
[29/12/2020, 8:24 PM] Ravi Prakash: धूप (कुंडलिया)
?????????
खाते सर्दी में सुखद , गरम सुहानी धूप
खिल-खिल जाता है बदन ,चढ़-चढ़ जाता रूप
चढ़-चढ़ जाता रूप ,स्वर्ग सुविधा ज्यों मिलती
धन्य – धन्य हैं भाग्य ,धूप जिनके घर खिलती
कहते रवि कविराय , अभागे आग जलाते
भाग्यवान हैं मस्त , धूप फोकट में खाते
????????
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[30/12/2020, 1:09 PM] Ravi Prakash: अलि (कुंडलिया)
??????????
माना जाता है बुरा ,अलि का मस्त स्वभाव
बेचारा पर क्या करे ,कलियों का है चाव
कलियों का है चाव ,पुष्प से रहता नाता
मधुर गंध रस-युक्त ,चूमना प्रतिदिन भाता
कहते रवि कविराय ,मर्म साँसों का जाना
अलि में भरी उमंग ,मौज को जीवन माना
???????☘️☘️
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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????????☘️
अलि = भौंरा
[31/12/2020, 2:26 PM] Ravi Prakash: दैन्य ( कुंडलिया )
??☘️??☘️??☘️
मानी कब दुनिया उसे ,रहता मुखड़ा दैन्य
झुकती उसके सामने ,लिए सुसज्जित सैन्य
लिए सुसज्जित सैन्य ,शस्त्र-बल से जो भारी
जो डंके की चोट , ठोंकता दावेदारी
कहते रवि कविराय , रीति जानी – पहचानी
सागर ने कब बात ,विनय से प्रभु की मानी
??????????
रचयिता : रविप्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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???????
दैन्य = दीनता का भाव ,अपने को तुच्छ समझने का भाव ,नम्रता ,कातरता
[31/12/2020, 4:07 PM] Ravi Prakash: घोटाले (कुंडलिया)
???☘️☘️???
काम कराया कब गया ,पाया पर पेमेंट
फोकट में छिड़का गया ,मानो कोई सेंट
मानो कोई सेंट , वाह ! क्या हैं घोटाले
हो जाता भुगतान , व्यर्थ ही बैठे – ठाले
कहते रवि कविराय ,दौर अंधा-युग आया
फाइल बनी सबूत ,अमुक से काम कराया
????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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?️?️?️?️?️?️
सेंट = इत्र
[01/01, 1:03 PM] Ravi Prakash: अखबार (कुंडलिया)
?????????
सन्नाटे को चीरता , है दैनिक अखबार
एक मिशन इसको कहो ,यद्यपि कारोबार
यद्यपि कारोबार , भूमिका सही निभाता
समाचार निष्पक्ष ,देश-भर में पहुँचाता
कहते रवि कविराय ,उठाकर चलते घाटे
साप्ताहिक अखबार , चीरते थे सन्नाटे
??????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[02/01, 12:35 PM] Ravi Prakash: प्राकृतिक सौंदर्य (कुंडलिया)
?????????
नदियाँ सागर खाइयाँ , झरने तुंग विराट
कुदरत के सौंदर्य के , मानो खुले कपाट
मानो खुले कपाट , वृक्ष उन्नत नभ छूते
किसमें है सामर्थ्य , मूल्य जो इनका कूते
कहते रवि कविराय , हजारों बीती सदियाँ
कल-कल करती काश ! ,बहें यह कल भी नदियाँ
?????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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तुंग = पर्वत
कूते = मूल्य कूतने अथवा आँकने का काम, कूतना
[03/01, 9:34 AM] Ravi Prakash: असूया (दो कुंडलियाँ)
???☘️????
(1)
खाता भीतर से उन्हें , जिन्हें असूया रोग
बंधन से वह मुक्त हों , बनता कब संयोग
बनता कब संयोग ,सत्य का पथ कब पाते
भीतर रहती दाह ,आग में घिर – घिर जाते
कहते रवि कविराय ,रोग यह उसका जाता
खुश होता है देख ,अन्य को हँसता-खाता
(2)
जलता रहता रात -दिन , जिसे असूया-रोग
दिखा पड़ोसी जल उठा ,करता सुख-उपभोग
करता सुख-उपभोग ,अकारण हृदय जलाता
जल-भुन कर हो राख ,रोज ही हो-हो जाता
कहते रवि कविराय ,हास औरों का खलता
उसको है अभिशाप ,चिता जाने तक जलता
????????
रचयिता: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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?????????
नोट: असूया का पर्यायवाची ईर्ष्या और जलन है।
[03/01, 12:57 PM] Ravi Prakash: मोती (कुंडलिया)
???☘️?☘️??
मोती की कीमत तभी ,जब तक उसमें ताब
आँखों की शोभा तभी ,जब तक उनमें आब
जब तक उनमें आब ,मूल्य क्षण भर में ढहते
जिनका गया चरित्र ,शिखर पर फिर कब रहते
कहते रवि कविराय ,चमक जब जिसकी खोती
सब देते दुत्कार , कौन कहता फिर मोती
????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
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?️?️?️?️?️?️?️
ताब = (फारसी का शब्द है )ताप ,सामना ,हिम्मत, चमक
आब = पानी ,चमक
[05/01, 12:07 PM] Ravi Prakash: अभ्र (कुंडलिया)
????????
आया सूरज छँट गया ,नभ से अभ्र – समाज
दुष्ट सताता अब कहाँ , गया शीत का राज
गया शीत का राज ,अभ्र – सी धूप चहकती
बनकर मानो अभ्र , गगन में रही महकती
कहते रवि कविराय ,प्रफुल्लित मन से काया
खुला दिखा माहौल , उत्तरायण लो आया
??????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
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?☘️??????
अभ्र = बादल ,सोना ,कपूर
अभ्र-समाज = फैले हुए बादल
अभ्र-सी धूप = सोने जैसी धूप
बनकर मानो अभ्र = कपूर के समान बनकर
[07/01, 11:26 AM] Ravi Prakash: सुजान (कुंडलिया)
??????????
मिली सफलता बस उन्हें ,जो हैं लोग सुजान
मूरख को ठगते मिले , सब जाने – अनजान
सब जाने – अनजान , ज्ञान से तरती नौका
धोखेबाज जहान , ढूँढती रहती मौका
कहते रवि कविराय ,काम कौशल से चलता
जो हैं दुनियादार , उन्हीं को मिली सफलता
??????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
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सुजान = चतुर , कुशल
जहान = दुनिया
[08/01, 11:30 AM] Ravi Prakash: दर्प (कुंडलिया)
???????
कहलाता सबसे बुरा , जग में दुर्गुण दर्प
बिना बात फुफकारता ,विषवाला ज्यों सर्प
विषवाला ज्यों सर्प ,मनुज को यह दुत्कारे
माने खुद को भूप , रंक बाकी जन सारे
कहते रवि कविराय ,नाश से इसका नाता
आत्मविघातक रोग ,काल खुद में कहलाता
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दर्प = अहंकार ,घमंड ,गर्व
[10/01, 11:59 AM] Ravi Prakash: विमूढ़ (कुंडलिया)
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समझाना है मूर्खता , जो हैं लोग विमूढ़
बात समझते कब भला ,होती है जो गूढ़
होती है जो गूढ़ ,. बुद्धि जितनी बतलाएँ
करें न कोई तर्क , मूर्ख से पिंड छुड़ाएँ
कहते रवि कविराय ,ज्ञान मत व्यर्थ लुटाना
गुणी – जनों के बीच ,उचित रहता समझाना
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___________________________
विमूढ़ = मूर्ख ,बेसुध ,ज्ञान रहित
[11/01, 11:26 AM] Ravi Prakash: ब्रह्म ( कुंडलिया )
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तारा जिसने जीव को ,तारक – ब्रह्म महान
उसके कोई भी मनुज , होता नहीं समान
होता नहीं समान , सदा से मुक्ति प्रदाता
करना इसको प्राप्त ,सहज सबको आ जाता
कहते रवि कविराय , ध्यान है सबसे प्यारा
मिलता इससे ब्रह्म , इसी ने सबको तारा
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तारक = तारने वाला ,पार लगाने वाला
ध्यान = मेडिटेशन ,ईश्वर को प्राप्त करने की एक सहज विधि
[12/01, 11:09 AM] Ravi Prakash: फूलों में मकरंद (कुंडलिया)
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मृग में कस्तूरी बसी , फूलों में मकरंद
शशि के भीतर झाँकिए ,शीतलता है मंद
शीतलता है मंद ,अग्नि में ताप विराजा
निहित ढोल में ताल ,शौर्य से गाजा-बाजा
कहते रवि कविराय ,लाज नारी की दृग में
दिखे श्वान में सूँघ ,कुलाँचे भरना मृग में
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मकरंद = फूलों का रस ,फूलों का केसर
[12/01, 10:28 PM] Ravi Prakash: भीड़तंत्र (कुंडलिया)
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हो – हल्ला सबसे बड़ा , हाँके आज स्वराज
शोर – शराबा कह रहा ,हम जन की आवाज
हम जन की आवाज , भीड़ कानून बनाए
कैसा तर्क – वितर्क , भैंस लाठी ले जाए
कहते रवि कविराय , उसी का भारी पल्ला
जिस की चीख-पुकार ,कर रहा जो हो-हल्ला
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[13/01, 1:13 PM] Ravi Prakash: लक्ष्य (कुंडलिया)
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रखते हैं जो हौसला , जिनमें है उत्साह
मंजिल पाने की जिन्हें , रहती गहरी चाह
रहती गहरी चाह , भले अंधड़ सौ छाते
उड़ – उड़ जाते पेड़ , ज्वार सागर में आते
कहते रवि कविराय ,सफलता वह जन चखते
चले सदा अविराम , लक्ष्य पर नजरें रखते
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अंधड़ = ऐसी आँधी जिससे वातावरण में अँधेरा और धूल छा जाए
[14/01, 11:55 AM] Ravi Prakash: धीर (कुंडलिया)
?????
पाते मंजिल हैं वही , होते हैं जो धीर
संयम – गुण जिनमें बसा ,भीतर से जो वीर
भीतर से जो वीर , पराजय से कब डरते
लेकर नव – उत्साह , युद्ध में पुनः उतरते
कहते रवि कविराय ,कठिन क्षण सबके आते
जो स्वभाव के धीर ,सफलता वह ही पाते
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धीर = जो जल्दी विचलित न हो
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[14/01, 12:38 PM] Ravi Prakash: मकर संक्रांति (कुंडलिया)
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रेवड़ियाँ लड्डू गजक ,खिचड़ी उड़द अचार
सूर्य उत्तरायण चला ,खिलता व्योम अपार
खिलता व्योम अपार , पतंगे रंग – बिरंगी
मुस्काती है आग , मूँगफलियाँ बेढ़ंगी
कहते रवि कविराय ,थिरकती जीवन-लड़ियाँ
महक भरी संक्रांति , गा रहीं गुड़ रेवड़ियाँ
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[14/01, 3:46 PM] Ravi Prakash: निर्धनता ( कुंडलिया )
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निर्धनता सबसे बड़ा , जग में है अभिशाप
किसने इज्जत से कहा ,निर्धन को श्री-आप
निर्धन को श्री – आप , लताड़ा हरदम जाता
रिश्तेदार न पास , कभी उसको बैठाता
कहते रवि कविराय , बैर सुख से है ठनता
जीवन का उपहास , उड़ाती नित निर्धनता
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[15/01, 11:31 AM] Ravi Prakash: कनखी (कुंडलिया)
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करती कनखी की नजर ,जादू भरा कमाल
इससे प्रिय को मिल गया ,दिल का सारा हाल
दिल का सारा हाल ,आँख कब सीधे लड़ती
चुपके से क्षण – मात्र ,लक्ष्य पर जाकर गड़ती
कहते रवि कविराय , चित्त में धैर्य न धरती
हुई आँख बेशर्म , क्रिया कनखी से करती
??????????
कनखी = आँख की कोर , तिरछी निगाह से देखने की क्रिया ,आँख का इशारा , दूसरों की निगाह बचा कर किया जाने वाला संकेत
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[16/01, 11:21 AM] Ravi Prakash: गिरि (कुंडलिया)
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धरती के सागर चरण ,गिरि हैं शीश समान
नदियाँ झरने खुशनुमा ,इसकी देह महान
इसकी देह महान ,हिमालय गिरि का राजा
लगता जैसे उच्च , स्वर्ग का यह दरवाजा
कहते रवि कविराय ,झील शोभा मन-हरती
पाकर परम प्रसन्न , व्योम मेघों को धरती
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गिरि = पहाड़
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[16/01, 3:34 PM] Ravi Prakash: ध्यान (कुंडलिया)
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आओ चुपके से प्रभो , दो ऐसी सौगात
भीतर से लगने लगे , जैसे हुआ प्रभात
जैसे हुआ प्रभात ,जगे सब कुछ जो अपना
जगत लगे निस्सार , क्षुद्र हो जैसे सपना
कहते रवि कविराय , परम आनंद जगाओ
करूँ तुम्हारा ध्यान ,नाथ ! प्रियतम बन आओ
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[17/01, 2:31 PM] Ravi Prakash: श्रमिक (कुंडलिया)
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घर से चलते हैं श्रमिक , सुबह बजे जब आठ
दिन-भर श्रम का पढ़ रहे , रोजाना ही पाठ
रोजाना ही पाठ , ईंट सिर पर हैं ढ़ोते
मिलता तब ईनाम , मूल्य पाकर खुश होते
कहते रवि कविराय ,सदा यह खाली कर से
लेकर चलते साथ , शुष्क दो रोटी घर से
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कर = हाथ
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[17/01, 7:52 PM] Ravi Prakash: अधूरापन (कुंडलिया)
??????
पूरी होती कब यहाँ ,किसकी मन की चाह
तनिक अधूरी रह गई ,सबकी मंजिल-राह
सबकी मंजिल-राह , तृप्त कब सब इच्छाएँ
कसक रही कुछ शेष ,आह बनकर तड़पाएँ
कहते रवि कविराय ,जरा – सी रहती दूरी
सुख सब किसके पास , अंत में खाना – पूरी
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[18/01, 9:28 PM] Ravi Prakash: केवड़िया (कुंडलिया)
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जोड़ा केवड़िया नगर , ट्रेनें वृहदाकार
दिल्ली मुंबइ चेन्नई , आई नई बयार
आई नई बयार , रेल से जुड़ता नाता
यह सरदार पटेल , मूर्ति को शीश नवाता
कहते रवि कविराय ,यत्न मत समझो थोड़ा
यह है नमन विशेष , देश को जिसने जोड़ा
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केवड़िया गुजरात के नर्मदा जिले का अल्प जनसंख्या वाला एक गुमनाम कस्बा था ।लौह पुरुष सरदार पटेल की संसार में सबसे ऊँची मूर्ति “स्टैचू ऑफ यूनिटी” की स्थापना ने उसे विश्व – भर के आकर्षण का केंद्र बना दिया ।
17 जनवरी 2021 ,रविवार को भारत भर के 8 बड़े नगरों से केवड़िया रेलवे स्टेशन का सीधा संपर्क ट्रेन द्वारा जोड़ दिया गया। अति विशिष्ट सुविधाओं से सुसज्जित यह ट्रेनें न केवल सफर को मनोहरी बनाती हैं, अपितु “स्टैचू ऑफ यूनिटी” को एक पर्यटन-स्थल तथा तीर्थ-धाम के रूप में भी प्रतिष्ठित करने में समर्थ हैं।
[19/01, 10:53 AM] Ravi Prakash: भंगिमा (कुंडलिया)
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जिसकी जैसी भंगिमा , वैसा मन का भाव
संकट में जानो पड़ी , डगमग चलती नाव
डगमग चलती नाव , खड़े टेढ़े जो पाते
नटखट तनिक विचार ,समझ लो उनमें आते
कहते रवि कविराय ,दुखी लेता है सिसकी
ध्यानावस्थित जीव , शांत मुद्रा है जिसकी
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भंगिमा = कलापूर्ण शारीरिक मुद्रा
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[20/01, 10:35 AM] Ravi Prakash: घट (कुंडलिया)
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घट-घट वासी को को किया ,जिसने मन से याद
छूटा घट तो मोक्ष वह , पाता उसके बाद
पाता उसके बाद , कलुष मन के मिट जाते
आत्मा सब में एक , समझ कम ही यह पाते
कहते रवि कविराय , मृत्यु आ जाती चटपट
करते रहो प्रणाम , ब्रह्म जो वासी घट – घट
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घट = कलश ,घड़ा ,देह शरीर
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[21/01, 4:35 PM] Ravi Prakash: राम-नाम (कुंडलिया)
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झुठलाओ चाहे भले ,सत्य एक बस राम
गूँजेगा यह ही सदा , अर्थी के सँग नाम
अर्थी के सँग नाम ,जगत से पार लगाता
चिंतन वह अभिराम ,राम का जो हो जाता
कहते रवि कविराय ,राम जी के गुण गाओ
कहो राम हैं सार , जगत थोथा झुठलाओ
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[21/01, 4:58 PM] Ravi Prakash: दान (कुंडलिया)
??????????
अपना धन बस वह हुआ ,हुआ राम के नाम
धन्य – धन्य शोभा हुई , आया प्रभु के काम
आया प्रभु के काम , यहीं वरना रह जाता
जाता खाली हाथ , एक निर्धन कहलाता
कहते रवि कविराय ,व्यर्थ संग्रह में खपना
जाते जब परलोक , दान जाता सँग अपना
??????????
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[25/01, 10:57 AM] Ravi Prakash: तिमिर और आलोक (कुंडलिया)
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आते – जाते नित्य ही , तिमिर और आलोक
इनसे कैसा हर्ष है , इनसे कैसा शोक
इनसे कैसा शोक , रोज का आना – जाना
जग में रहो तटस्थ , मिले जो भी अपनाना
कहते रवि कविराय ,चार दिन सुख-दुख पाते
फिर होता बदलाव , दृश्य फिर नूतन आते
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आलोक = प्रकाश
तिमिर = अंधेरा ,अंधकार
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[26/01, 10:28 AM] Ravi Prakash: गणतंत्र (कुंडलिया)
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रानी – राजा हो गए , किस्सों में सब कैद
लौह – पुरुष सक्रिय सजग ,गृहमंत्री मुस्तैद
गृहमंत्री मुस्तैद , नया भारत कहलाया
गई रियासत – राज , एक गणतंत्र बनाया
कहते रवि कविराय ,प्रजा ने लिखी कहानी
सब अब एक समान ,न कोई राजा – रानी
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गणतंत्र = ऐसी शासन प्रणाली जिसमें परंपरागत राजा या रानी के शासन के बजाय जनता द्वारा ही चुनाव प्रक्रिया के द्वारा शासक या प्रतिनिधि चुने जाते हैं ।
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[27/01, 10:33 AM] Ravi Prakash: झंझावात (कुंडलिया)
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आते हैं सौ – सौ घने , भयप्रद झंझावात
लगता जैसे फिर कभी , होगा नहीं प्रभात
होगा नहीं प्रभात , पेड़ मजबूत ढहाते
आँको कम मत खौफ ,साथ यह जो-जो लाते
कहते रवि कविराय , धीर पर कब घबराते
जीवन – पटल विराट , दृश्य चाहे जो आते
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झंझावात = तेज आँधी, अंधड़ , वह तेज आँधी
जिसके साथ बारिश भी हो
धीर = शांत स्वभाव वाला
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[28/01, 11:08 AM] Ravi Prakash: हमजोली (कुंडलिया)
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हमजोली जिनको मिले ,उनका भाग्य महान
इससे बढ़कर विश्व में , होता कौन समान
होता कौन समान , एक मन हैं दो काया
सोचें बैठें साथ , संग में खेले खाया
कहते रवि कविराय , मस्त है जिन की टोली
उनका जीवन धन्य , मिले जिनको हमजोली
??????????
हमजोली = जो प्रायः साथ रहते हों, साथी, सखा
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[30/01, 10:55 AM] Ravi Prakash: शहीद (कुंडलिया)
?????????
भारत माता के लिए , अनगिन हुए शहीद
आजादी की तब जगी , भारत में उम्मीद
भारत में उम्मीद , तिरंगा तब फहराया
लाल किले ने गान ,देश जन-गण-मन गाया
कहते रवि कविराय ,याद बलिदान दिलाता
कहे एकजुट देश , धन्य हे भारत माता
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शहीद = सत्य के लिए लड़ते हुए मरने वाला, कर्तव्य के लिए अपने को कुर्बान कर देने वाला
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[31/01, 10:43 AM] Ravi Prakash: गरल (कुंडलिया)
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पीना पड़ता है गरल , सबको सौ-सौ बार
अमृत केवल कल्पना , मरण सदा साकार
मरण सदा साकार ,कष्ट-दुख प्रतिदिन आते
यह जीवन-संगीत , जगत में जन सब पाते
कहते रवि कविराय ,कहाँ सुखमय है जीना
राजा हो या रंक , गरल पड़ता है पीना
?????????
गरल = विष, साँप का जहर
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[01/02, 9:27 AM] Ravi Prakash: साँझ (कुंडलिया)
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किसका मन कब तक रहा ,चंचल हीरा – राँझ
ढलती सबकी ही सुबह ,आती सबकी साँझ
आती सबकी साँझ , देह बूढ़ी हो जाती
आँखें चलतीं मंद , साँस रह – रह सुस्ताती
कहते रवि कविराय ,लिखा युग जैसा जिसका
बीता – बीती बात ,एक – सा युग कब किसका
????????
साँझ = सूर्यास्त का समय ,शाम
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[02/02, 8:36 PM] Ravi Prakash: जीवन (कुंडलिया)
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जीना खुलकर चाहिए ,सबको ही स्वच्छंद
बोलो कब अच्छे लगे , किसे द्वार सब बंद
किसे द्वार सब बंद ,न खिड़की रोशनदानें
भीतर की आवाज , शत्रु जैसे सब जानें
कहते रवि कविराय ,घूँट क्या कड़वे पीना
जिओ ठीक उसी भाँति ,चाहते जैसे जीना
????????
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[06/02, 7:55 AM] Ravi Prakash: अंगार (कुंडलिया)
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जलता जब तक कोयला ,कहलाता अंगार
राख बना बुझकर यही ,खोता सब श्रंगार
खोता सब श्रंगार , अग्नि से जीवन चलता
जहाँ मिटी सब आग ,हाथ बूढ़ा तन मलता
कहते रवि कविराय ,विधाता अक्सर छलता
बुझ जाता अंगार ,अचानक था जो जलता
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[08/02, 12:26 AM] Ravi Prakash: अधूरा प्रेम (कुंडलिया)
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भरकर अंजलि प्यार की ,पाते जो इंसान
जीवन उनका स्वर्णमय ,मधुमय श्रेष्ठ महान
मधुमय श्रेष्ठ महान , प्यार अमृत कहलाता
धन्य-धन्य वह भाग्य ,प्रीति का प्याला पाता
कहते रवि कविराय ,जन्म लेते फिर मरकर
प्रेमी करते प्रेम , अधूरा अंजलि भरकर
अंजलि = दोनों हाथों की हथेलियों को जोड़कर बनने वाला गड्ढा
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[08/02, 10:18 AM] Ravi Prakash: पंथ ( कुंडलिया )
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चलने से ही मिल सके ,सबको सुंदर पंथ
जीवन-भर चाहे पढ़ो ,सिखलाते कब ग्रंथ
सिखलाते कब ग्रंथ ,रटे से अनुभव ज्यादा
भर – भर भारी बोझ ,कहाँ ज्ञानी ने लादा
कहते रवि कविराय ,मुक्त दो जीवन पलने
निकलो हँसकर रोज ,नई राहों पर चलने
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पंथ = राह ,पथ ,रास्ता ,मार्ग
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[10/02, 6:11 AM] Ravi Prakash: नत ( कुंडलिया )
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आती है जिनको कला ,नत होने का ज्ञान
उड़ते नभ में इस तरह ,जैसे उड़े विमान
जैसे उड़े विमान , स्वयं हल्के हो पाते
मिलता है सम्मान , मान जो देते जाते
कहते रवि कविराय ,ख्याति उनकी ही छाती
उन्हें पूजता लोक , नम्रता जिनको आती
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[10/02, 1:11 PM] Ravi Prakash: कुटीर (कुंडलिया)
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ढाबा कब ढाबा रहा ,अब यह रेस्टोरेंट
एसी वाले हो गए , महंगे – महंगे टेंट
महंगे – महंगे टेंट , बंगला कुटी कहाता
रखते नाम कुटीर , गिना महलों में जाता
कहते रवि कविराय ,नाम के हैं कुछ बाबा
चलता धंधा और , बोर्ड पर लिखते ढाबा
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[11/02, 11:04 AM] Ravi Prakash: कुटिल (कुंडलिया)
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देते जग को कष्ट ही ,जिनका कुटिल स्वभाव
कैसे क्षति पहुँचे किसे ,रहता मन में चाव
रहता मन में चाव , जगत – दुख में सुख पाते
जितनी है सामर्थ्य , सभी को सिर्फ रुलाते
कहते रवि कविराय , मजे दुख देकर लेते
जब तक अंतिम साँस , दुष्ट पीड़ा बस देते
कुटिल = मन में कपट व द्वेष रखने वाला
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[11/02, 3:10 PM] Ravi Prakash: मायका (कुंडलिया)
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आता जीवन – भर सदा , रहा मायका याद
इस – सा आकर्षण कहाँ , इस-जैसा उन्माद
इस – जैसा उन्माद ,पिता – माँ मधुर कहानी
बचपन का वह दौर ,मस्त ज्यों बहता पानी
कहते रवि कविराय , बुढ़ापा चाहे छाता
जहाँ हुई शुरुआत ,याद घर रह – रह आता
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
मायका = विवाहित नारी के माता-पिता का घर
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[11/02, 9:31 PM] Ravi Prakash: साकी (कुंडलिया)
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गिनती के सबको मिले ,मस्ती के दिन चार
सोचो कितने जी चुके , लेकर खुशी अपार
लेकर खुशी अपार , बचे अब कितने बाकी
मदिरा कितनी शेष , जरा बतलाओ साकी
कहते रवि कविराय ,मौज सब ही की छिनती
साकी के पास हिसाब ,चषक बाकी की गिनती
साकी = मदिरालय में प्याला भर कर देने वाली
चषक = प्याला
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[12/02, 10:35 AM] Ravi Prakash: क्षेम (कुंडलिया)
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आया फिर से लौटकर , पहले वाला प्रेम
पूछ रहे मिलकर गले , सब आपस में क्षेम
सब आपस में क्षेम , बहुत दिन बीते भाई
किसने देखी शक्ल ,किसी ने कब दिखलाई
कहते रवि कविराय , नया जीवन मुस्काया
गया अभी था मित्र , दूसरा शायद आया
क्षेम = कुशल-मंगल ,सुख-चैन
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[12/02, 12:45 PM] Ravi Prakash: चित्र पुराना (कुंडलिया)
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चित्र पुराना जब दिखा ,पहचाने जब लोग
कुछ तो थे जीवित अभी ,कुछ से हुआ वियोग
कुछ से हुआ वियोग ,चित्र बन कर रह जाते
कल तक जिनके साथ ,बोलते हँसते – गाते
कहते रवि कविराय ,जगत से आना – जाना
समझाता चिर – सत्य , एक बस चित्र पुराना
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
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[13/02, 10:32 AM] Ravi Prakash: खग (कुंडलिया)
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खग में उड़ने की कला ,देखा गज बलवान
जल में रहती मीन को , तैराकी का ज्ञान
तैराकी का ज्ञान , फूल फल पौधे सजते
तबला और सितार , मधुर स्वर में है बजते
कहते रवि कविराय ,मनुज मत रोओ जग में
तुलना सबकी व्यर्थ ,दोष – गुण होते खग में
खग = आकाश में उड़ने वाले पक्षी
गज = हाथी
मीन = मछली
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[15/02, 11:21 AM] Ravi Prakash: उन्माद (कुंडलिया)
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छाए जब कोई नशा , होता है उन्माद
धुन के पक्के को कहाँ ,रहता बाकी याद
रहता बाकी याद ,दृष्टि में लक्ष्य समाया
सदा उसी के बीच ,बैठता – चलता पाया
कहते रवि कविराय ,धन्य पागल कहलाए
मिलती तब ही सिद्धि ,मेघ बेसुध के छाए
उन्माद = अत्यधिक प्रेम ,पागलपन ,सनक
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[16/02, 10:45 PM] Ravi Prakash: स्वागत हे ऋतुराज (कुंडलिया)
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पिचकारी भर कर किया ,स्वागत हे ऋतुराज
कामदेव आए सदन , हृदय – शुष्क में आज
हृदय – शुष्क में आज , शुरू लो देखो होली
सखियों की मदमस्त , दीखती सुंदर टोली
कहते रवि कविराय , लाज का घूँघट नारी
चली छोड़ उद्यान , हाथ में ले पिचकारी
????????
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[16/02, 11:33 PM] Ravi Prakash: ऋतुराज वसंत (कुंडलिया)
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मस्ती में हैं झूमते ,क्षिति जल गगन समीर
गायन को उत्सुक हुए ,प्राणी सभी अधीर
प्राणी सभी अधीर ,राग – रंगों की माया
शुभ ऋतुराज वसंत ,गंध मादक ले छाया
कहते रवि कविराय ,नगर हर बस्ती-बस्ती
मौसम का अवदान ,देह में भरती मस्ती
क्षिति = पृथ्वी
अवदान = योगदान ,सहयोग ,अच्छा काम
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[17/02, 8:55 PM] Ravi Prakash: हे लक्ष्मी हे सरस्वती (कुंडलिया)
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वर दें माता लक्ष्मी , सरस्वती वरदान
जिएँ सदा जीवन लिए ,सात्विक शुभ्र महान
सात्विक शुभ्र महान ,उच्च मूल्यों को गाएँ
कभी न मन में पाप ,लोभ किंचित भी छाएँ
कहते रवि कविराय , पारदर्शी मन कर दें
भीतर – बाहर एक , जिंदगी हो माँ वर दें
??????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[17/02, 10:35 PM] Ravi Prakash: सस्ते के वह ठाठ (कुंडलिया)
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जाने कौन कहाँ गए ,सस्ते के वह ठाठ
मिले गोलगप्पे सुखद ,एक रुपै के आठ
एक रुपै के आठ ,चार टिकिया आलू की
दहीबड़े की प्लेट ,अठन्नी में कालू की
कहते रवि कविराय ,भले माने मत माने
सवा रुपै परसाद , बड़ा हर कोई जाने
????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[18/02, 10:12 AM] Ravi Prakash: दैहिक (कुंडलिया)
??????????
बसते हैं संसार में , सब में दैहिक ताप
फँसते लोग स्वभाववश ,इनमें अपने आप
इनमें अपने आप ,सृष्टि का नियम निराला
काम क्रोध मद मोह ,लोभ का रँग है काला
कहते रवि कविराय ,पेंच जो मन के कसते
कभी न कलुषित भाव ,देह में उनके बसते
दैहिक = देह संबंधी
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[19/02, 10:51 AM] Ravi Prakash: प्राची (कुंडलिया)
?????️????
प्राची की मंजुल दिशा , प्राची से दिनमान
प्राची से सूरज उगा , प्राची स्वर्ग – समान
प्राची स्वर्ग – समान , किरण पहली है आती
खिड़की-घर का द्वार ,सुखद स्वर्णिम कहलाती
कहते रवि कविराय ,विवश पश्चिम बस याची
देख रहा अभिराम , मनोहर सुंदर प्राची
प्राची = पूर्व दिशा ,पूरब
मंजुल = सुंदर
दिनमान = दिन की अवधि
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[20/02, 10:47 AM] Ravi Prakash: धवल (कुंडलिया)
?????????
करता मन तुमको धवल ,वंदन सौ-सौ बार
तुमसे ही है चल रहा , यह सारा संसार
यह सारा संसार , उच्च मूल्यों को गाते
जहाँ तुम्हारा राज , कलुष पाए कब जाते
कहते रवि कविराय , रूप वासंती झरता
तुम पावन युग – दूत ,प्रशंसा दिल है करता
धवल = श्वेत ,उजला ,निर्मल ,सुंदर
रचयिता : रवि प्रकाश बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[20/02, 4:16 PM] Ravi Prakash: पैसा (कुंडलिया)
?????????
पैसा है सबसे बड़ा , छोटे सब संबंध
हर रिश्ते में घुस गई ,पैसे की बस गंध
पैसे की बस गंध , कहाँ की रिश्तेदारी
नफा और नुकसान ,बड़ा है छोटी यारी
कहते रवि कविराय ,न समझो ऐसा-वैसा
बेटा भाई बाप , भतीजा चाचा पैसा
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[21/02, 8:53 AM] Ravi Prakash: क्षोभ (कुंडलिया)
?????????
आता तो है दो घड़ी ,मन में पापी लोभ
युगों-युगों परिणाम है ,इसका भारी क्षोभ
इसका भारी क्षोभ ,हृदय में जन पछताते
घोर नर्क की आग ,भीतरी हर क्षण पाते
कहते रवि कविराय ,दुखी मन हो-हो जाता
साँस-साँस में अश्रु ,निकल बाहर को आता
क्षोभ = व्याकुलता ,पछतावा
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[22/02, 10:03 AM] Ravi Prakash: सिंधु (कुंडलिया)
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जाने यह कैसा मिला , बली सिंधु को काम
उठती – गिरती हैं लहर ,सदा – सदा अविराम
सदा – सदा अविराम ,न क्षण भर खाली पाया
क्या है इसका राज , सिंधु ने नहीं बताया
कहते रवि कविराय , भेद रहते अनजाने
रहता है बेचैन , शक्तिशाली क्यों जाने
सिंधु = सागर ,समुद्र
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[23/02, 9:16 AM] Ravi Prakash: निरापद (कुंडलिया)
?????????
आते संकट रात – दिन ,जीवन में अविराम
कौन निरापद रह सका ,मिला किसे आराम
मिला किसे आराम ,सदा ही चिंता खाती
एक मुसीबत बाद , दूसरी दौड़ी आती
कहते रवि कविराय , कन्हैया पार लगाते
डूबी कभी न नाव , खिवैया बनकर आते
निरापद = जिसमें कोई संकट या आपत्ति न हो ,सुरक्षित
रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[23/02, 2:38 PM] Ravi Prakash: निराकार वह कौन (कुंडलिया)
????????
कितना सुंदर जग बना ,कितने सुंदर चित्र
चित्रकार वह कौन है ,मालिक सबका मित्र
मालिक सबका मित्र ,किसी ने कब वह देखा
प्रतिमा बनी न एक ,न खिंचती किंचित रेखा
कहते रवि कविराय ,विचारो चाहे जितना
निराकार वह कौन , जान पाओगे कितना
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[23/02, 4:37 PM] Ravi Prakash: खोलें चलो किताब (बाल कुंडलिया)
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पढ़ने के दिन आ गए ,खोलें चलो किताब
खेलकूद काफी हुआ , पूरा साल खराब
पूरा साल खराब , महामारी अब भागी
कक्षा की तकदीर ,साल में जाकर जागी
कहते रवि कविराय ,चलें किस्मत को गढ़ने
मोबाइल घर छोड़ , पाठ कक्षा में पढ़ने
रचयिता : रवि प्रकाश बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[23/02, 7:36 PM] Ravi Prakash: शादी (कुंडलिया)
?????????
शादी जीवन की कहो ,मधुर सरस सौगात
जिनकी शादी हो गई , खुशनसीब दिन-रात
खुशनसीब दिन-रात ,जिन्हें पत्नी प्रिय मिलती
मनपसंद पतिदेव , जिंदगी पाकर खिलती
कहते रवि कविराय , लड़े तो है बर्बादी
बन जाते यदि मित्र , स्वर्ग कहलाती शादी
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर ( उत्तर प्रदेश )
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[24/02, 10:29 AM] Ravi Prakash: बटोही (कुंडलिया)
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चला बटोही छोड़कर ,अपनी गली-मकान
उसकी केवल रह गई ,यादों में मुस्कान
यादों में मुस्कान ,अजाने पथ पर जाता
जाने कैसे लोग ,नया किस से हो नाता
कहते रवि कविराय ,सदा से है निर्मोही
सब को रोता छोड़ ,विदा हो चला बटोही
बटोही = यात्री ,पथिक ,रास्ते पर चलने वाला
निर्मोही = जिसको कोई मोह न हो
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[24/02, 11:43 AM] Ravi Prakash: एकाकी (कुंडलिया)
?☘️??☘️??
एकाकी आया मनुज , एकाकी प्रस्थान
आया है किस लोक से ,अगला पथ अनजान
अगला पथ अनजान ,धरा पर खेला – खाया
यहीं मिले सौ मित्र , बंधु – बांधव को पाया
कहते रवि कविराय ,रंग रहते कब बाकी
अंतकाल का दौर , आदमी फिर एकाकी
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
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[24/02, 12:48 PM] Ravi Prakash: घर में दो लाचार (कुंडलिया)
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बेटे जाकर बस गए ,घर से दूर अपार
अब बूढ़े माँ-बाप हैं ,घर में दो लाचार
घर में दो लाचार ,साँस बाकी हैं गिनते
हारे थके निढ़ाल ,देखते खुशियाँ छिनते
कहते रवि कविराय ,उठे बैठे या लेटे
गुमसुम हो दिन-रात , याद करते हैं बेटे
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[25/02, 11:04 AM] Ravi Prakash: मर्त्य ( कुंडलिया )
??????????
रोजाना आता रहा , सिर्फ बीच में बाल
डँसने को तैयार था ,वरना हर दिन काल
वरना हर दिन काल ,गलतियाँ होतीं भारी
प्रभु की कृपा अपार ,मर्त्य-मानव आभारी
कहते रवि कविराय ,काल को सबको खाना
रखो हमेशा याद , मृत्यु का सच रोजाना
मर्त्य = मानव ,शरीर ,मरणशील
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[26/02, 10:31 AM] Ravi Prakash: आया फागुन (कुंडलिया)
?????????
आया फागुन स्वागतम ,अभिनंदन ऋतुराज
अंतरिक्ष से आ रही , बंसी की आवाज
बंसी की आवाज , साँस में मस्ती छाती
गई शीत की रात , पवन चलती मुस्काती
कहते रवि कविराय , गीत पेड़ों ने गाया
फूलों का मकरंद , चूसने भौंरा आया
??????????
बंसी = बाँसुरी
मकरंद = फूलों का रस
??????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[26/02, 10:57 AM] Ravi Prakash: लाठी बे-आवाज (कुंडलिया)
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लाठी होती सर्वदा , प्रभु की बे-आवाज
दोषी को देती सजा ,गिरती उस पर गाज
गिरती उस पर गाज ,पटककर मारा करते
जैसे जिसके पाप , दुष्ट वैसे ही भरते
कहते रवि कविराय ,घटाते हैं कद – काठी
राजा बनते रंक , न चल पाते बिना लाठी
गाज = वज्र ,बिजली ,बिजली गिरना
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[26/02, 11:06 AM] Ravi Prakash: सत्य (कुंडलिया)
???????????
सहना सीखो कष्ट को , खाना रोटी – दाल
जो जीवन दुख में जिया ,उसने किया कमाल
उसने किया कमाल , उच्च मूल्यों को जीता
सच का यही इनाम ,जिंदगी – भर विष पीता
कहते रवि कविराय ,आत्म – गौरव है गहना
स्वाभिमान में मस्त , हमेशा दुर्दिन सहना
??????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[27/02, 7:37 PM] Ravi Prakash: ईश की लीला (कुंडलिया)
???????
कोई विपदा क्या बड़ी ,बड़ा जगत का खेल
व्यूह रचा भगवान का , चाहे जैसा झेल
चाहे जैसा झेल , कृष्ण हैं लीलाधारी
सारे घटना – चक्र , ईश की लीला प्यारी
कहते रवि कविराय , साँस चहकी या रोई
सब हैं एक समान , फर्क इनमें कब कोई
रचयिता : रविप्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[27/02, 7:45 PM] Ravi Prakash: फटमारा (कुंडलिया)
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फटमारा – सा ही रहा ,सब का अंतिम दौर
नवयौवन का और था ,वृद्ध आयु का और
वृद्ध आयु का और , सभी को रोक सताते
कुछ घर से लाचार , दुखी धन से हो जाते
कहते रवि कविराय ,एक-सा यह जग सारा
कोई मुट्ठी बंद , खुला कोई फटमारा
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फटमारा = कृषकाय ,दुखी ,उपेक्षित
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[28/02, 10:00 AM] Ravi Prakash: विलाप (कुंडलिया)
??????????
पाए जाते छोर दो , हर्षोल्लास – विलाप
इन दो का ही कर रहा ,बिना रुके जग जाप
बिना रुके जग जाप , विधाता कभी रुलाता
कभी दे रहा मोद , मौज इंसान मनाता
कहते रवि कविराय , रात – दिन जैसे आए
जन्म-मृत्यु का चक्र , मनुज ने दोनों पाए
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
विलाप = किसी की मृत्यु पर होने वाला
शोक या दुख ,प्रकट किया जाने वाला दुख
मोद =खुशी
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[28/02, 10:53 AM] Ravi Prakash: तैराक (कुंडलिया)
?????????
गहरा है तो क्या हुआ ,सागर भले अपार
जिसको आता तैरना ,करता क्षण में पार
करता क्षण में पार , न गहराई से डरता
लेकर हरि का नाम , सिंधु में रहा उतरता
कहते रवि कविराय ,जीत का झंडा फहरा
मुस्काया तैराक , समंदर रोया गहरा
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[01/03, 11:06 AM] Ravi Prakash: विलक्षण (कुंडलिया)
?????????
पाई फागुन में गई , सिर्फ विलक्षण बात
दिन में भी बरसे शहद , चंदा वाली रात
चंदा वाली रात , पवन संगीत सुनाता
गीत गा रहे फूल , पेड़ नवयौवन पाता
कहते रवि कविराय ,मस्त ऋतु यह कहलाई
फागुन है ऋतुराज , न समता इसकी पाई
????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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विलक्षण = अद्भुत ,असाधारण ,अनोखा
[01/03, 3:07 PM] Ravi Prakash: पतझड़ (कुंडलिया)
?????????
पतझड़ तेरी वंदना , तेरी जय – जयकार
तू नव – यौवन दे रहा , तेरा शत आभार
तेरा शत आभार , मृत्यु उत्सव बन जाता
गिरा पेड़ से पत्र , जन्म नूतन ले आता
कहते रवि कविराय,न समझो इसको गड़बड़
लाता सुखद वसंत , धन्य है पावन पतझड़
☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️
रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[02/03, 11:02 AM] Ravi Prakash: पहर (कुंडलिया)
??????????
होते हैं दिन-रात में , पहर आठ या याम
लगभग घंटे तीन हैं ,इनका मतलब आम
इनका मतलब आम ,दोपहर अब भी चलता
दिन का चौथा याम ,शाम जब दिन है ढलता
कहते रवि कविराय ,शब्द कब मतलब खोते
सूर्योदय – सूर्यास्त , चार पहरों में होते
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
पहर = रात-दिन (24 घंटे) का आठवां भाग, लगभग 3 घंटे ,समय, काल
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[02/03, 11:26 AM] Ravi Prakash: गुलाबो
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सर्वप्रथम एक कुंडलिया प्रस्तुत है :-
????????
गुलाबो (कुंडलिया)
????????
नाम गुलाबो रख दिया ,पौधे का अभिराम
रटते थे एडेनियम ,अब छूटा यह काम
अब छूटा यह काम , गुलाबी रँग का प्यारा
चिकना मांसल रूप ,फूल – पत्ती का सारा
कहते रवि कविराय ,पैर सब इसके दाबो
उपवन का सरताज ,आज से नाम गुलाबो
☘️?☘️?☘️?☘️?☘️?
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
☘️?☘️?☘️?☘️?☘️?
सुंदर से पौधे का नाम एडेनियम था। हमने हिंदी नाम खोजा, लेकिन नहीं मिला। एडेनियम नाम याद करने में भी मुश्किल था। हालाँकि जब हमने लॉकडाउन और क्वारंटाइन जैसे नाम रट लिए तो एडेनियम क्या चीज है ! लेकिन फिर भी लगता था मानो किसी एलोपैथिक दवाई का नाम हो। दो-चार महीने में अगर नाम भूल गए तो पता नहीं रहेगा कि एडेनियम ,एडोनियम , ओडोनियम या आयोडीननियम में से कौन सा शब्द सही है ? इसलिए हमने इसका नाम गुलाबो रख लिया । गुलाबी रंग की सुंदर चिकनी और मोटी पंखुड़ियों वाला यह फूल बरबस सबका प्रिय बन जाता है । जब पौधे का नामकरण किया है तो नामकरण – संस्कार के साथ-साथ एक कुंडलिया भी इस को समर्पित कर दी । तो आज से एडेनियम बना गुलाबो ।।
[02/03, 3:02 PM] Ravi Prakash: दादाजी (कुंडलिया)
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ज्यादा सोचा मत करो ,हल्के में लो बात
वरना दिल पर होएगा ,भीषण कुछ आघात
भीषण कुछ आघात ,सहज मुस्काना सीखो
कठिनाई के बीच , दाँत दिखलाते दीखो
कहते रवि कविराय , भले हो जाओ दादा
बच्चा रहना ठीक ,फिक्र मत करना ज्यादा
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[04/03, 10:16 AM] Ravi Prakash: नाहर (कुंडलिया)
?????????
होता सौ में एक है , नर नाहर का रूप
चलता जैसे चल रहा ,किसी राज्य का भूप
किसी राज्य का भूप ,शान से आगे बढ़ता
निर्भय वीर – विचार ,शीर्ष पर लेकर चढ़ता
कहते रवि कविराय ,तुच्छ बातें कब ढोता
शहर गाँव वन-राज ,नहीं साधारण होता
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नाहर = शेर
भूप = राजा
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[06/03, 9:06 AM] Ravi Prakash: रमणी (कुंडलिया)
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घायल करते तीर – बिन , रमणी के दो नैन
जिसको भी यह लग गए ,छीना उसका चैन
छीना उसका चैन ,भंग ऋषि का तप करते
इनसे रहते दूर , तपस्वी इनसे डरते
कहते रवि कविराय ,पैर में बजती पायल
जिसने खोले नेत्र , उसी को करती घायल
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रमणी = स्त्री ,विशेषतः युवती
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[06/03, 11:18 AM] Ravi Prakash: मनुज रूप में देव (कुंडलिया)
????????
सोते – उठते – जागते , पाते परमानंद
जिनके मुख पर है सदा ,मधु मुस्कान अमंद
मधु मुस्कान अमंद ,सदा सबका हित गाते
लेश – मात्र भी क्रोध , न भीतर जिनके पाते
कहते रवि कविराय ,.धन्य दुर्लभ जन होते
मनुज रूप में देव , धरा पर खाते – सोते
????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[06/03, 11:30 AM] Ravi Prakash: निर्धन और धनवान (कुंडलिया)
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निर्धन रोगी को कहो ,मनुज स्वस्थ धनवान
मुर्दा होते हैं भवन , जिंदा है इंसान
जिंदा है इंसान , प्रेम की डोर सुनहरी
शीतल होता चाँद , छाप होती पर गहरी
कहते रवि कविराय ,मिले जिससे अपनापन
उसको रखना याद , नहीं होगे फिर निर्धन
????????
रचयिता : रवि प्रकाश बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[10/03, 1:17 PM] Ravi Prakash: व्यथा (कुंडलिया)
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कोई रहती है व्यथा , कोई सबको कष्ट
दुर्दिन कब सबके हुए , पूरी तरह विनष्ट
पूरी तरह विनष्ट , सभी को चिंता खाती
नई समस्या एक ,रोज सबके घर आती
कहते रवि कविराय ,वस्तु प्रिय सबने खोई
दुखी जगत में लोग , रोग सबको है कोई
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व्यथा = दुख ,चिंता ,कष्ट पीड़ा ,वेदना
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा रामपुर उत्तर प्रदेश मोबाइल 99976 15451
[12/03, 10:43 AM] Ravi Prakash: चिंतन (कुंडलिया)
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चिंतन में है क्या धरा , नेता करते जाप
जनता बेचारी सुने , ढोलक पर बस थाप
ढोलक पर बस थाप , दूर के ढोल सुहाने
वादे सब बेकार , बाद में सिर्फ बहाने
कहते रवि कविराय ,देह की दो-दो चितवन
एक निठल्ला काम , दूसरा सुंदर चिंतन
थाप = तबले ,मृदंग ,ढोलक आदि पर
पूरे पंजे से किया जाने वाला आघात
??????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451
[13/03, 9:41 AM] Ravi Prakash: नूतन और पुरातन (कुंडलिया)
????????
सभी पुरातन ढह रहे , नूतन जग निर्माण
पीले पत्ते झड़ गए , देखो अब निष्प्राण
देखो अब निष्प्राण ,नियति का खेल पुराना
जब बीते सौ साल ,देह को सबकी जाना
कहते रवि कविराय ,काल का चक्र सनातन
कल के दृश्य नवीन ,आज के सभी पुरातन
नूतन = नवीन ,नया ,अभिनव
पुरातन = पुराना
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[14/03, 8:15 AM] Ravi Prakash: कोयल कूकी (कुंडलिया)
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कूकी कोयल पेड़ पर , आमों के है बौर
मस्त महीना वर्ष भर , ऐसा कहीं न और
ऐसा कहीं न और ,हवा चलती बल-खाती
साँसो में मधु-गंध ,व्योम से हर क्षण आती
कहते रवि कविराय ,नजर जिसकी भी चूकी
नए मिले कब पेड़ , नहीं फिर कोयल कूकी
??????????
बौर = आम के पेड़ पर फागुन में लगने वाला
फूलों का गुच्छा जो बाद में फल में बदल जाता है
कूकी = कोयल की मधुर आवाज
रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451
[14/03, 10:23 AM] Ravi Prakash: त्राहि-त्राहि भगवान( कुंडलिया )
?????????
करने कौरव-दल लगा ,हरण-चीर अपमान
द्रुपद-सुता ने तब कहा ,त्राहि-त्राहि भगवान
त्राहि-त्राहि भगवान ,लाज हे कृष्ण बचाओ
फँसी हुई मँझधार ,दौड़ कर केशव आओ
कहते रवि कविराय , प्राण भक्तों में भरने
दौड़े आए कृष्ण , योजना निष्फल करने
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त्राहि = रक्षा करना ,बचाना
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[16/03, 11:01 AM] Ravi Prakash: आजकाशब्द पर यह 201 वीं कुंडलिया है । दो शतक पूरे हो चुके हैं ।
प्रस्तुत है आज के दिए गए शब्द विविध का प्रयोग करते हुए रची गई कुंडलिया
??????
धीर (कुंडलिया)
????????
पाते हैं सुख-दुख सभी ,जग में विविध प्रकार
जैसा जिसको मिल गया , वह वैसा भंडार
वह वैसा भंडार , धीर सुख-दुख सम सहते
सुख आए या दुःख , एक – से भीतर रहते
कहते रवि कविराय , लाभ में कब बौराते
जब आती है हानि , न रोते उनको पाते
?????????
धीर = धैर्य रखना ,मन की स्थिरता
विविध = अनेक तरह का
?????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[16/03, 4:51 PM] Ravi Prakash: प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।
मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मंजुलमंगलप्रदा॥
????????
भावार्थ
???????
राज्याभिषेक वनवास (कुंडलिया)
?????????
पाया राजतिलक मगर ,कब प्रसन्न रघुनाथ
वन जाने पर कब दिखे ,दुखी हृदय के साथ
दुखी हृदय के साथ ,एक-सा सुख दुख माना
मुख – मंडल का भाव ,तृप्त जाना – पहचाना
कहते रवि कविराय , न अंतर मुख पर आया
वरदायी अभिराम ,कमल – सा खिलता पाया
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कुंडलिया के रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[20/03, 9:03 AM] Ravi Prakash: चिड़िया (कुंडलिया)
????????
फुदकी चिड़िया बोलती ,वाणी मस्त-महीन
ऐसे चीं – चीं कर रही , लगा भजन में लीन
लगा भजन में लीन , जरा – सा चुगती दाना
थोड़ी – सी बस भूख , तृप्त जल्दी हो जाना
कहते रवि कविराय ,बनाती कविता खुद की
मनमौजी अभिराम , उड़ी फिर बैठी फुदकी
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लीन = किसी में समा जाना
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[23/03, 4:41 PM] Ravi Prakash: अनहोनी (कुंडलिया)
?????????
अनहोनी करते प्रभो ,रखो मनुज विश्वास
दुर्बल के बल राम की ,छोड़ो कभी न आस
छोड़ो कभी न आस ,काल का चक्र घुमाते
बानक सब अनुरूप ,भक्त के सहज बनाते
कहते रवि कविराय , न रहती सूरत रोनी
रचते अचरज – दृश्य , प्रभो करते अनहोनी
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बानक = परिस्थितियाँ ,परिदृश्य
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[25/03, 11:26 AM] Ravi Prakash: फागुन की पूर्णिमा [कुंडलिया]
????????
पूरनमासी चंद्रमा , फागुन का शुभ मास
बिखरा धरती पर रजत ,हुआ शुभ्र आभास
हुआ शुभ्र आभास , गगन में मस्ती छाई
नाचे गाए लोग , अग्नि पावन मुस्काई
कहते रवि कविराय , दूर सब हुई उदासी
रंगों का त्यौहार , फागुनी पूर्णमासी
?????????
रजत = चांदी
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[26/03, 2:44 PM] Ravi Prakash: खिले लिली के फूल (कुंडलिया)
?????????
आया फागुन मदभरा ,खिले लिली के फूल
जिसने देखे क्या कभी , पाया इनको भूल
पाया इनको भूल ,नयन में बस – बस जाते
श्वेत गुलाबी रंग , दीखते हैं मुस्काते
कहते रवि कविराय , रूप का जादू छाया
आकर्षित हो मस्त , घूमता भँवरा आया
?????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[27/03, 10:27 AM] Ravi Prakash: फागुन का मधुमास (कुंडलिया)
??????????
मस्ताता मृदु आ गया ,फागुन का मधुमास
फूल लिली के खिल उठे ,आभूषण-आभास
आभूषण – आभास , सुरीली कोयल गाती
सरगम का ज्यों गान ,वायु हर समय बजाती
कहते रवि कविराय , रूप सब पर छा जाता
रहता नहीं उदास , मनुज मन से मस्ताता
??????????
मृदु = कोमल
??????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[29/03, 10:14 AM] Ravi Prakash: हुआ चैत्र आरंभ (कुंडलिया)
☘️??????☘️
पहने धरती खुशनुमा ,मधुर हरित परिधान
भीतर – बाहर गा रहे , सब पक्षी – इंसान
सब पक्षी – इंसान , मस्त मौसम की माया
पेड़ों पर नव – पत्र ,रूप नव – यौवन छाया
कहते रवि कविराय ,पुष्प खिलते ज्यों गहने
हुआ चैत्र आरंभ , सुगंधित कपड़े पहने
?????????
हरित = हरा रंग
?????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[29/03, 3:31 PM] Ravi Prakash: मासूम गुलाल (कुंडलिया)
????????
कहने भर को था मुआ ,बस मासूम गुलाल
नटखट रंग बसा हुआ , उसमें पक्का लाल
उसमें पक्का लाल ,रंग फिर कब छुट पाया
जाने था वह कौन , मिलाकर जो ले आया
कहते रवि कविराय , प्यार पड़ते हैं सहने
कुछ अपनों का वार ,वाह भ्राता क्या कहने
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भ्राता = बंधु ,भाई ,घनिष्ठ मित्र
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर( उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451
[02/04, 8:32 PM] Ravi Prakash: निद्रा (कुंडलिया)
??????????
सुखदाई सबसे बड़ी , निद्रा है वरदान
जब आती इंसान को ,लगती स्वर्ग – समान
लगती स्वर्ग – समान ,नींद अति सुंदर प्यारी
इसके सम्मुख तुच्छ ,वस्तु जग की है सारी
कहते रवि कविराय, मौज की कुंजी पाई
सोओ घोड़े बेच ,स्वास्थ्य पाओ सुखदाई
????????
सोओ घोड़े बेच = एक मुहावरा जिसका मतलब चैन की नींद सोना है
कुंजी = ताले की चाबी ,किसी समस्या का हल
??????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[02/04, 8:35 PM] Ravi Prakash: प्रार्थना (कुंडलिया)
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देना है तो दीजिए ,प्रभु जी कुछ अपमान
गर्व न जिससे कर सकूं ,रहूं तुच्छ इंसान
रहूं तुच्छ इंसान , प्रशंसा शाप – सरीखी
प्रगति करें अवरुद्ध ,वृत्ति नूतन कब सीखी
कहते रवि कविराय ,नाव नित ऐसे खेना
रोज दिखाना दोष ,देह कंचन कर देना
???☘️?????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[03/04, 12:25 PM] Ravi Prakash: मधुप (कुंडलिया)
????????
मस्ती में जीता मधुप ,करता मधु का पान
सीखो इससे सभ्यता ,मधुर प्रणय-अभियान
मधुर प्रणय-अभियान ,प्रेम की दिव्य कहानी
कोमल मृदु आभास ,न इसका कोई सानी
कहते रवि कविराय , बसाता मन में बस्ती
जिसे छुआ वह मस्त , दौड़ती तन में मस्ती
मधुप = भौंरा, भ्रमर, मधु का पान करने वाला
सानी = तुलना ,मुकाबला
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[03/04, 2:34 PM] Ravi Prakash: दुष्ट (कुंडलिया)
??????
मारा जाता सर्वदा , जिसका दुष्ट स्वभाव
डंक हमेशा मारना , डँसने का नित चाव
डँसने का नित चाव ,सभी को दुख पहुंचाता
मिलना ज्यों अभिशाप ,कष्टप्रद जाना जाता
कहते रवि कविराय , मारता है जग सारा
लाठी जूता शस्त्र , सभी ने लेकर मारा
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[04/04, 9:40 AM] Ravi Prakash: जगत यह किसकी रचना (कुंडलिया)
????????
रचना किसकी है जगत ,अस्ति-नास्ति का भाव
इसी प्रश्न पर है सदा ,जग का रहता चाव
जग का रहता चाव , ईश को किसने देखा
निराकार वह ब्रह्म , ज्ञान की अंतिम रेखा
कहते रवि कविराय , विज्ञ कब चाहें बचना
रहते हर दिन खोज ,जगत यह किसकी रचना
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अस्ति = है ,विद्यमानता
नास्ति = नहीं है ,अविद्यमानता
विज्ञ = समझदार और पढ़े लिखे ,विद्वान, जानने वाले
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[05/04, 1:03 PM] Ravi Prakash: नीर (कुंडलिया)
????????
करते प्रियजन जब विदा ,भर-भर आता नीर
संबंधी क्या मित्र क्या , होते सभी अधीर
होते सभी अधीर , फूटकर दिखते रोते
जिनको प्रीति विशेष ,भीतरी सुध-बुध खोते
कहते रवि कविराय ,लोग जाने क्यों मरते
क्यों निर्मम भगवान ,पाश क्यों बांधा करते
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नीर = जल ,पानी
पाश = बंधन ,बांधने का यंत्र
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[05/04, 2:29 PM] Ravi Prakash: अखबार (कुंडलिया)
☘️☘️☘️☘️??
रोजाना आता नई , खबरें ले अखबार
एक खबर अखबार में ,छपी एक ही बार
छपी एक ही बार ,रोज नित नूतन आती
घटनाक्रम हर रोज ,सूचना नव बन जाती
कहते रवि कविराय ,घोर अचरज है माना
भर जाता अखबार , विश्वक्रम से रोजाना
?????????
रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[06/04, 10:51 AM] Ravi Prakash: नारी (कुंडलिया)
☘️?☘️?☘️☘️☘️☘️☘️
छोड़ी घर की देहरी ,छोड़ा घर का द्वार
नई उड़ानें भर चली , नारी अब संसार
नारी अब संसार , न सीमा रही रसोई
नारी होती हीन , न कह पाता अब कोई
कहते रवि कविराय ,श्रेष्ठता नर की तोड़ी
नर को दिया पछाड़ ,पुरुष-निर्भरता छोड़ी
?????????
देहरी = द्वार पर लगी चौखट की जमीन वाली लकड़ी या पत्थर ,दहलीज, घर के मुख्य द्वार का बाहरी भाग
??????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[06/04, 1:56 PM] Ravi Prakash: चिट्ठी का पुराना दौर (कुंडलिया)
????☘️☘️☘️☘️
लिखते थे चिट्ठी कभी , हम भी प्रायः रोज
लिखकर लेटरबॉक्स की ,होती थी फिर खोज
होती थी फिर खोज ,पहुंच में दो दिन लेता
उत्तरदाता पत्र , प्राप्त कर उत्तर देता
कहते रवि कविराय , नहीं मोबाइल दिखते
पोस्टकार्ड थे आम , सभी थे इस पर लिखते
????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[08/04, 9:16 AM] Ravi Prakash: शिखर (कुंडलिया)
????????
पाने से ज्यादा कठिन ,टिकना हुआ कमाल
शिखर नुकीला कह रहा ,रखिए अपना ख्याल
रखिए अपना ख्याल ,रपटते इस पर भारी
बीते जब दिन चार , फिसल जाते नर नारी
कहते रवि कविराय , रोज के आने- जाने
कुछ हैं गिरे धड़ाम , लगे कुछ इसको पाने
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शिखर = सर्वोच्च स्थिति अथवा पद ,
पर्वत की चोटी
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[08/04, 12:07 PM] Ravi Prakash: आभूषण (कुंडलिया)
??????????
पहने टीका नारियाँ , नथनी से श्रंगार
तन पर शोभित हो रहे ,कुंडल चूड़ी हार
कुंडल चूड़ी हार , अँगूठी लगती प्यारी
हाथों में हथफूल , बंद बाजू का भारी
कहते रवि कविराय ,करधनी के क्या कहने
सौ – सौ गुना निखार ,हुआ जब गहने पहने
?????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
?☘️????☘️?
करधनी = कमर पर पहनने वाली तगड़ी अथवा पेटी
टीका = माथे पर पहनने वाला आभूषण
नथनी = नाक में पहनने वाला आभूषण
बाजूबंद = बाँह में पहनने वाला आभूषण
हथफूल = हाथ की कलाई और उंगलियों में पहनने वाला आभूषण
[10/04, 9:37 AM] Ravi Prakash: नश्वर जगत (कुंडलिया)
??????????
रह जाता सब कुछ धरा ,मरने के फिर बाद
किसका कितना रह गया ,रहता किसको याद
रहता किस को याद ,न जाने कितना जोड़ा
धरा कह रही रोज , यहीं पर सब ने छोड़ा
कहते रवि कविराय ,जगत नश्वर कहलाता
तन नर्तन दिन चार , नहीं फिर तन रह जाता
???????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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???????
धरा = पृथ्वी ,जमीन पर रखना
[10/04, 1:13 PM] Ravi Prakash: शत्रु (कुंडलिया)
☘️????☘️
पक्षी को मिलता कहाँ , मनचाहा आकाश
बादल ढकते व्योम को ,रुकता सूर्य-प्रकाश
रुकता सूर्य – प्रकाश , दुष्ट रोड़े अटकाते
षड्यंत्रों के लक्ष्य , लोग भोले हो जाते
कहते रवि कविराय ,मनुज ही कुछ नरभक्षी
पशु का पशु ही भोज , शत्रु पक्षी के पक्षी
????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[12/04, 10:49 AM] Ravi Prakash: माँ ( कुंडलिया )
?????????
मिलता है अन्यत्र कब , माँ का वत्सल-भाव
दुनिया है गहरी नदी , नदिया में माँ नाव
नदिया में माँ नाव , अनूठा लाड़ लड़ाती
खुद बनकर कंगाल , स्वर्ण हमको दे जाती
कहते रवि कविराय ,कमल-मुख उसका खिलता
भाग्यवान वह एक ,जिसे माँ का सँग मिलता
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वत्सल = संतान के प्रति प्रेम या स्नेह
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[13/04, 4:11 PM] Ravi Prakash: गीता का ज्ञान 【कुंडलियाँ】
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( 1 )
गीता सुनकर हो गया , अर्जुन का उद्धार
असमंजस जाता रहा ,दुविधा भरा विचार
दुविधा भरा विचार ,धनुष की डोरी तानी
दुर्योधन की और ,सहन अब कब मनमानी
कहते रवि कविराय ,युद्ध फिर सच ने जीता
धन्य धन्य श्री कृष्ण ,श्रेय सब तुमको गीता
. ( 2 )
गीता सिखलाती हमें , सही कर्म की राह
उसको मिलती राह है ,जिसके मन में चाह
जिसके मन में चाह ,झुका जो मस्तक आता
भरा शिष्य का भाव ,ज्ञान गुरु से फिर पाता
कहते रवि कविराय ,सरस अमृत जो पीता
हो जाता कल्याण ,धैर्य से सुनता गीता
(3)
गीता कहती युद्ध कर ,अर्जुन कर संग्राम
रण से डर कर भागना ,कायरता का काम
कायरता का काम ,मित्रता सच की सीखो
जब भी दीखो बंधु ,पक्ष में सच में दीखो
कहते रवि कविराय , युद्धरत है जो जीता
वही असल में पार्थ ,सुनी बस उसने गीता
(4)
गीता कहती हे मनुज ,तन को नश्वर जान
तन मरता है एक दिन ,जाता है शमशान
जाता है शमशान ,आग में जल-जल जाता
रहती आत्मा शेष , जला कब कोई पाता
कहते रवि कविराय ,रहा तन सच से रीता
आत्म-तत्व की खोज ,लक्ष्य बतलाती गीता
(5)
गीता कहती है सरल ,आत्म – तत्व का ज्ञान
जग में सबसे उच्च है ,प्रतिदिन पावन ध्यान
प्रतिदिन पावन ध्यान ,सरलता से लग जाता
बैठो सरल प्रकार , नेह की दौड़ लगाता
कहते रवि कविराय ,ध्यान-रस जो जन पीता
उसे मिला आनंद , अनोखा कहती गीता
(6)
गीता कहती मत करो ,तन की कुछ परवाह
इसकी निश्चित आयु है ,ज्यादा करो न चाह
ज्यादा करो न चाह ,मूल्य आत्मा का मानो
वस्तु एक अनमोल , ध्यान से यह पहचानो
कहते रवि कविराय ,आत्म में है जो जीता
पाता परमानंद , बताती पावन गीता
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[14/04, 10:43 AM] Ravi Prakash: आभारी (कुंडलिया)
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दाता तुमने जो दिया ,कोटि – कोटि उपकार
यह क्या कम है ढो रहा ,तन अपना खुद भार
तन अपना खुद भार ,धन्य प्रभु नित आभारी
चटनी रोटी दाल , रोज का भोजन जारी
कहते रवि कविराय ,सुखी हों सब प्रिय भ्राता
रखना तन को दूर ,रोग से हर क्षण दाता
??????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[15/04, 11:32 AM] Ravi Prakash: नियति 【कुंडलिया】
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होता है सबसे बड़ा ,सदा नियति का खेल
बड़े – बड़े जाते दिखे , इसके कारण जेल
इसके कारण जेल , सेठ निर्धन हो जाते
बौड़म जाते जीत , जीत मंत्री पद पाते
कहते रवि कविराय ,चतुर किस्मत को रोता
मूरख चलता चाल , माल सब उसका होता
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नियति = भाग्य
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[16/04, 10:49 AM] Ravi Prakash: मधुमास (कुंडलिया)
??????????
गाती वायु सुवास-भर ,आता जब मधुमास
भरती नई उमंग है ,भरती है जब श्वास
भरती है जब श्वास ,वसंती हर अंगड़ाई
चैत और बैसाख ,काम की मित्र कहाई
कहते रवि कविराय ,मधुर मस्ती है छाती
नर्तन करती देह ,मास-द्वय ऋतु जब आती
??????????
काम : कामदेव
मधुमास : चैत और बैसाख के दो माह जो छह ऋतुओं में प्रथम वसंत ऋतु कहलाते हैं
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[18/04, 11:57 AM] Ravi Prakash: गगन (कुंडलिया)
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पक्षी उड़ते हैं गगन , रहते हैं आजाद
देख इन्हें फिर आ गई ,बीते कल की याद
बीते कल की याद ,मुक्त थे आते – जाते
सड़क टहलते रोज ,भीड़ में जा बतियाते
कहते रवि कविराय,फोन पर केवल जुड़ते
रोता मन असहाय , देखकर पक्षी उड़ते
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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गगन = आसमान ,नभ
[19/04, 3:46 PM] Ravi Prakash: सोमरस (कुंडलिया)
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पीता था जो इंद्र रस ,गाथा गाता व्योम
लुप्त सोमवल्ली हुई ,वेदों की वह सोम
वेदों की वह सोम ,जड़ी-बूटी बलशाली
एक लता वह खास ,उमंगे भरने वाली
कहते रवि कविराय ,वर्ष सौ जीवन जीता
मिला दही मधु दुग्ध ,सोमरस था जो पीता
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सोमरस = ऋग्वेद के सातवें ,आठवें और नौवें मंडल के पचासियों मंत्रों में सोमरस की चर्चा है । यह एक वनस्पति /जड़ी- बूटी/ अथवा लता – पौधा होता था जिसे कूटकर तथा छानकर इसमें दूध दही शहद मिलाकर पेय पदार्थ तैयार होता था। इंद्र इसे सशरीर आकर सहर्ष ग्रहण करता था । यह बलवर्धक तथा उत्साहवर्धक होता था । अब सोम वनस्पति लुप्त हो चुकी है तथा सोमरस इतिहास का विषय मात्र है ।
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रचयिता : रविप्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[20/04, 1:45 PM] Ravi Prakash: आभूषण-प्रिय (कुंडलिया)
??????????
धन से कब होता जुड़ा ,खुशियों भरा स्वभाव
आभूषण – प्रिय नारियाँ , सुंदरता का चाव
सुंदरता का चाव , न खातीं हलवा – पूड़ी
फिर भी पहनें हार , नथुनिया बुंदे चूड़ी
कहते रवि कविराय , सजा है टीका तन से
मन से हैं धनवान ,भले ही निर्धन धन से
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
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[20/04, 6:36 PM] Ravi Prakash: चंचल धन (कुंडलिया)
??????????
जानो धन चंचल महा ,सही चंचला नाम
आज यहाँ कल है वहाँ ,चलना इसका काम
चलना इसका काम ,एक क्षण में उड़ जाता
किसके है यह पास ,सात पीढ़ी रह पाता
कहते रवि कविराय , तत्व धन का पहचानो
रहता यह दिन चार ,मुसाफिर इसको जानो
?????☘️☘️☘️☘️☘️
चंचल = जो बराबर गतिशील हो ,
हिलने- डुलने वाला ,अस्थिर
चंचला = लक्ष्मी
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रचयिता : रवि प्रकाश बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[21/04, 3:55 PM] Ravi Prakash: दुर्जेय ( कुंडलिया )
????????
नहीं रुकेगी जिंदगी , प्रण है अब की बार
मरण भले दुर्जेय तुम ,रण फिर भी स्वीकार
रण फिर भी स्वीकार,चलेंगी सब गतिविधियाँ
नर्तन करते मोर , दिखेंगी उड़ती चिड़ियाँ
कहते रवि कविराय ,न डर से सृष्टि झुकेगी
जग की भव्य उड़ान ,चल पड़ी नहीं रुकेगी
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दुर्जेय = जिसे जीतना कठिन हो ,
जो जल्दी न जीता जा सके
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[22/04, 3:25 PM] Ravi Prakash: धावक (कुंडलिया)
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आगे बढ़कर जीतता ,धावक को दे मात
मंजिल उसको ही मिली ,चलता जो दिन-रात
चलता जो दिन-रात ,नहीं आलस है करता
बाधा कर हर पार ,नित्य जग में पग धरता
कहते रवि कविराय ,शशक-कछुआ दो भागे
कथा सर्व-विख्यात ,समर्पित कछुआ आगे
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शशक = खरगोश
धावक = दौड़ लगाने वाला
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[22/04, 3:52 PM] Ravi Prakash: आपदा (कुंडलिया)
??????????
फिर आएगी आपदा , शायद अगले साल
फिर होगा सम्मुख खड़ा ,बैरी जग का काल
बैरी जग का काल , मारने फिर आएगा
फिर यह हाहाकार , जगत में मचवाएगा
कहते रवि कविराय ,धैर्य से टल जाएगी
सजग देखकर लोग ,न शायद फिर आएगी
आपदा = मुसीबत ,परेशानी
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[22/04, 4:03 PM] Ravi Prakash: आत्मज्ञान (कुंडलिया)
?????????
थोड़ा – सा जीवन बचा , लंबा बाकी काम
आत्मा को है जानना , क्या होती अभिराम
क्या होती अभिराम , देह से धोखा खाया
आत्म-तत्व का ज्ञान ,जान कब अब तक पाया
कहते रवि कविराय ,न प्रभु ने खुद से जोड़ा
कब आते हैं रोज , प्यार उनका बस थोड़ा
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[22/04, 4:10 PM] Ravi Prakash: पाया किसने आत्म को ? (कुंडलिया)
??????????
पाया किसने आत्मा को ,भाग्यवान वह कौन ?
शांत सौम्य अंतर्मुखी , रहता प्रायः मौन
रहता प्रायः मौन , नित्य जो ध्यान लगाता
अहित न जिसकी चाह , बैर को दूर भगाता
कहते रवि कविराय ,राग जिसने मधु गाया
धन्य-धन्य वह जीव ,आत्म को जिसने पाया
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[25/04, 5:26 PM] Ravi Prakash: निर्मल मन के द्वार (कुंडलिया)
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परमात्मा रहता खड़ा , निर्मल मन के द्वार
जहां कपट बिल्कुल नहीं ,जहां न छल-व्यवहार
जहां न छल-व्यवहार , सरलता शोभा पाती
मौन शांत मुस्कान , हमेशा प्रभु को भाती
कहते रवि कविराय , वही है शुद्ध महात्मा
जिसे न कोई बैर , मिले उसको परमात्मा
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निर्मल = शुद्ध ,जिसमें कोई मलिनता न हो
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[25/04, 7:17 PM] Ravi Prakash: वस्तु दो देना दाता (कुंडलिया)
?☘️????☘️?
दाता देना बस हमें , निर्मल मन अविराम
करें – विचारें जो सभी ,हों निश्छल अभिराम
हों निश्छल अभिराम ,लोभ से सदा बचाना
रूखी – सूखी श्रेष्ठ , पराई कठिन पचाना
कहते रवि कविराय ,समझ बस इतना आता
स्वस्थ – देह सद्बुद्धि , वस्तु दो देना दाता
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[27/04, 10:52 AM] Ravi Prakash: कुशलक्षेम का पत्र (कुंडलिया)
??☘️????☘️??
यहाँ कुशलता रेंगती , वहाँ बताएँ मित्र
बूढ़ों – बच्चों के सहित ,घर का खींचें चित्र
घर का खींचें चित्र , बुरी आई बीमारी
दो साँसों की चाह , वेंटिलेटर पर भारी
कहते रवि कविराय ,शांत यदि दिन है ढलता
रोए अगर न भोर , समझिए यहाँ कुशलता
??????????
कुशलक्षेम = राजीखुशी ,कुशलमंगल
??????????
रचयिता :रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[27/04, 2:14 PM] Ravi Prakash: संचित कर्म (कुंडलिया)
?????????
देते फल हैं सर्वदा , जग में संचित कर्म
अच्छा या मिलता बुरा ,उसका यह ही मर्म
उसका यह ही मर्म ,कर्म से कब बच पाता
पीछा करता कर्म , दूर तक दौड़ा आता
कहते रवि कविराय , हमेशा वापस लेते
मिलता वह ही लौट ,प्रकृति को जो हम देते
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
संचित = इकट्ठा या जमा किया हुआ
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[02/05, 7:41 PM] Ravi Prakash: हारे नंदीग्राम (कुंडलिया)
?????????
सेनापति हारा हुआ ,विजित किंतु संग्राम
जीत लिया बंगाल पर , हारे नंदीग्राम
हारे नंदीग्राम , अनोखा युद्ध कहाया
करुण अरे दुर्योग ,किसी ने कहीं न पाया
कहते रवि कविराय ,जीत कर भी अँधियारा
रोता देखो प्रात , कहा सेनापति हारा
??????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[02/05, 10:01 PM] Ravi Prakash: नेपथ्य (कुंडलिया)
??☘️??☘️??☘️?
रहते हैं नेपथ्य में , जिनके सुंदर काम
नींवों के पत्थर सदृश ,उनको कोटि प्रणाम
उनको कोटि प्रणाम ,चेहरा पर कब दीखा
निरभिमानता भाव ,जगत ने उनसे सीखा
कहते रवि कविराय ,सदा गुमनामी सहते
धन्य – धन्य गुणवान , छिपे पर्दे में रहते
???????????
नेपथ्य = रंगमंच पर पर्दे के पीछे का स्थान
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[02/05, 11:05 PM] Ravi Prakash: जीतीं ई वी एम बहन (कुंडलिया)
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जीतीं ईवीएम बहन ,करो जीत स्वीकार
गीत तुम्हारे गा रहा ,अब विपक्ष शत बार
अब विपक्ष शत बार ,मलाई तुमसे पाई
तुम हो सत्ता स्रोत ,परम देवी सुखदाई
कहते रवि कविराय ,अन्यथा तुम विष पीतीं
धन्य तुम्हारा भाग्य ,धन्य दीदी तुम जीतीं
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””‘”
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[04/05, 11:10 AM] Ravi Prakash: पैतृक एलबम (कुंडलिया)
☘️???☘️☘️?☘️
रखता पैतृक एलबम , पावन पुत्र सँभाल
पुरखों की यादें जुड़ीं ,उनके चित्र विशाल
उनके चित्र विशाल ,कहाती स्मृति – मंजूषा
इससे मिलता ओज,खिलखिलाती ज्यों ऊषा
कहते रवि कविराय , दिव्य-रस मानो चखता
यादों को अनमोल , वस्तु के जैसे रखता
?????????
रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पैतृक = पिता दादा परदादा से संबंधित, पुरखों से संबंधित माता पिता ताऊ चाचा आदि से संबंधित
मंजूषा = पिटारी , संदूक
ऊषा = सूरज निकलने से पहले का समय ,प्रभात ,सुबह
[04/05, 1:42 PM] Ravi Prakash: प्रीत (कुंडलिया)
??????????
दो अक्षर का शब्द है , सबसे सुंदर प्रीत
साथी सहयात्री मधुर ,कहलाते हैं मीत
कहलाते हैं मीत , उगा सविता ले आते
अंधकार के दौर , न छू उनको फिर पाते
कहते रवि कविराय ,नहीं क्षय उनके घर का
बसा हुआ है प्रीत ,जहाँ पर दो अक्षर का
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
प्रीत = प्रेम ,प्यार ,दोस्ती ,मोहब्बत
सविता = सूर्य
मीत = मित्र ,दोस्त
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[05/05, 5:23 PM] Ravi Prakash: चला असुर सम्राट (कुंडलिया)
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बदला लेने चल पड़ा ,असुर शक्ति का रूप
बोला केवल पूज्य मैं ,मैं धरती का भूप
मैं धरती का भूप ,बना नर – सुर संहारी
बही रक्त की धार , भयंकर मारामारी
कहते रवि कविराय ,कष्ट सज्जन को देने
चला असुर सम्राट ,खड्ग ले बदला लेने
~~~~~~~~~~~~~~~?
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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?रचना तिथि : 5 मई 2021?
[06/05, 11:04 AM] Ravi Prakash: मिला सुपरिचित शून्य (कुंडलिया)
??????????
आए प्रभु करके कृपा , इतने दिन के बाद
रोज निरंतर कर रहा , तुमको ही था याद
तुमको ही था याद ,धन्य जो तुमको पाया
मिला तुम्हारा प्यार ,ध्यान की अद्भुत माया
कहते रवि कविराय ,अलौकिक सुख फिर पाए
मिला सुपरिचित शून्य ,धन्य प्रभु जी तुम आए
?????☘️☘️???
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रामपुर (उत्तर प्रदेश )
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[07/05, 10:05 PM] Ravi Prakash: उच्छ्रंखलता (कुंडलिया)
?☘️☘️?☘️☘️?☘️☘️
उच्छ्रंखलता बढ़ रही ,बढ़ी हुई तकरार
झगड़ा समझो शीर्ष पर ,केंद्र-राज्य सरकार
केंद्र – राज्य सरकार ,अदालत की मनमानी
सत्ता और विपक्ष , कर रहे खींचातानी
कहते रवि कविराय ,न अंकुश कोई चलता
हुआ अराजक दृश्य , देश में उच्छ्रंखलता
??????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर( उत्तर प्रदेश )
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[09/05, 11:53 AM] Ravi Prakash: घर को लौटे राम (कुंडलिया)
?????☘️???
जीती लंका स्वर्णमय , पर निर्लोभी राम
स्वर्ण लुभाया कब उन्हें ,बोले माँ अभिराम
बोले माँ अभिराम , जन्मभू जननी थाती
धन्य अयोध्या धाम ,गंध ममता की आती
कहते रवि कविराय ,बजा रघुकुल का डंका
घर को लौटे राम , छोड़कर जीती लंका
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~?
थाती = धरोहर ,संचित धन
जननी = माँ , माता
~~~~~~~~~~~~~~~~~~??
रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[09/05, 5:32 PM] Ravi Prakash: हम बालक नादान (कुंडलिया)
?????????
रखिए सबको हे प्रभो ,सदा स्वस्थ सानंद
बरसे मुख पर दिव्यतम ,मधुरिम परमानंद
मधुरिम परमानंद , रोग छू कभी न पाए
साँसों पर प्रतिबंध , न आकर दुष्ट लगाए
कहते रवि कविराय,धैर्य मत अधिक परखिए
हम बालक नादान , गोद में हमको रखिए
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर( उत्तर प्रदेश )
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[10/05, 11:50 AM] Ravi Prakash: कहाँ गए वह लोग (कुंडलिया)
✳️✳️✳️✳️✳️✳️???
सेवा – भाव उदार था ,विद्यालय का मूल
जनहित की थी कामना ,केवल एक उसूल
केवल एक उसूल ,धन्य विद्यालय खोला
धन्य – धन्य उत्साह , वायुमंडल में डोला
कहते रवि कविराय ,न चाही मिश्री – मेवा
कहाँ गए वह लोग ,लक्ष्य जिनका था सेवा
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[10/05, 3:35 PM] Ravi Prakash: लतिका (कुंडलिया)
☘️??☘️??☘️???
वन में होती है बड़े , पेड़ों की भरमार
बढ़ती है लतिका वहीं ,लिए गात सुकुमार
लिए गात सुकुमार ,गगन तक चढ़ती जाती
अपनी जगह विशेष ,भूमि से नभ तक पाती
कहते रवि कविराय ,पेड़ से बढ़कर मन में
दर्शक कहता वाह ,देखकर लतिका वन में
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लतिका = बेल ,छोटी लता
गात = शरीर
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
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[11/05, 8:28 AM] Ravi Prakash: मर्म (कुंडलिया)
??????????
गाथा जीवन की सदा ,गाता तन का कर्म
रक्खा क्या सिद्धांत में ,यह कब जीवन – मर्म
यह कब जीवन-मर्म ,असल जो जीवन जीता
व्यर्थ मंत्र – उच्चार ,अर्थ बिन सब कुछ रीता
कहते रवि कविराय , गर्वमय वह ही माथा
कथनी के अनुरूप ,उच्च जो जीवन-गाथा
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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मर्म = रहस्य ,भेद ,स्वरूप
[11/05, 9:47 AM] Ravi Prakash: गोधूलि बेला (कुंडलिया)
?????????
बेला है गोधूलि की , सबसे अधिक पवित्र
आती गाएँ लौटकर ,खिंचता अनुपम चित्र
खिंचता अनुपम चित्र ,समय संध्या का छाता
विदा ले रहा सूर्य ,रश्मि स्वर्णिम दे जाता
कहते रवि कविराय ,उपासक चला अकेला
भरे हृदय में मोद ,अहा ! अद्भुत क्या बेला
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गोधूलि बेला = जब गाएँ शाम को जंगल से लौटती हैं तो उनके पैरों से धूल उड़ती है, अतः वह समय गोधूलि बेला कहलाई। विवाह आदि मंगल कार्यों तथा ध्यान के लिए यह सर्वोत्तम समय है।
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रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[13/05, 1:03 PM] Ravi Prakash: शांति की खोज में चार कुंडलियाँ
?☘️☘️???☘️☘️?
1️⃣शांति -प्रार्थना
शांति – प्रदाता हे प्रभो , हो जाओ अब शांत
आदेशित नभ को करो ,छोड़ो मन का क्लांत
छोड़ो मन का क्लांत ,शांत जल-थल को कर दो
पर्वत करो उदार , काल में करुणा भर दो
कहते रवि कविराय , मधुर जोड़ो हर नाता
कृपा कृपा हे नाथ , कृपा हे शांति-प्रदाता
“”””””””””””””””””””””””””””‘”””””””'””””””””
क्लांत = क्षीणकाय ,थका हुआ ,शिथिल
??????????
2️⃣तुम हो अंतिम आस
??????????
गाते मंगल – आरती , कुशल रखो भगवान
दीर्घ आयु सबको मिले ,सबको रोग-निदान
सबको रोग-निदान ,जगत के दुख हर लाओ
अंतरिक्ष हो शुद्ध , विषैली गंध हटाओ
कहते रवि कविराय , प्राण संकट में पाते
तुम हो अंतिम आस ,तुम्हारे गुण बस गाते
??????????
3️⃣त्यागो रौद्र स्वरूप
??????????
मरने वाली आ रही ,खबरों की भरमार
महाकाल ज्यों कर रहा ,दुनिया का संहार
दुनिया का संहार ,चिता शमशान रुलाई
घर-घर हाहाकार , वेदना हर मुख छाई
कहते रवि कविराय ,अवस्था डरने वाली
त्यागो रौद्र स्वरूप ,छटा-छवि मरने वाली
??????????
4️⃣भीड़ को दुश्मन मानो
??????????
मिलने-जुलने से बचो ,करो न रुक कर बात
खा जाएगा शत्रु आ , बैठा लेकर घात
बैठा लेकर घात , समय मारक है जानो
बाहर जाना भूल ,भीड़ को दुश्मन मानो कहते रवि कविराय ,खिड़कियों के खुलने से
आएगी विष – गंध , बचो मिलने – जुलने से
???????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[13/05, 7:04 PM] Ravi Prakash: विपक्ष (कुंडलिया)
☘️?☘️???
अद्भुत कौशल युक्त है ,अपना भारत देश
पहने हुए विपक्ष है , हाहाकारी वेश
हाहाकारी वेश ,रोज कमियों पर रोता
यह इसमें निष्णात ,और इनसे क्या होता
कहते रवि कविराय ,दिखे आरोपों से युत
भाषण देना काम ,अनोखे नेता अद्भुत
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
कौशल = कुशलतापूर्वक किसी काम को
ढंग से करने का गुण
युत = युक्त ,मिला हुआ
निष्णात = पारंगत
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[14/05, 1:38 PM] Ravi Prakash: आत्मा : एक खोज (दो कुंडलियाँ)
??☘️???☘️??
1️⃣प्रश्न शेष मैं कौन (कुंडलिया)
??????????
नश्वर तन में खोजिए , गहरे पानी पैठ
खोजो उस अनमोल को ,ध्यान – मार्ग में बैठ
ध्यान – मार्ग में बैठ , मिलेगी आत्मा प्यारी
आत्म – तत्व अनजान ,मरण-जन्मों से न्यारी
कहते रवि कविराय , देह हो जाती जर्जर
प्रश्न शेष मैं कौन , खोज कब पाता नश्वर
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2️⃣तुम्हें न पाता खोज( कुंडलिया )
????☘️????
बीती जाती आयु है , रोज ढल रही देह
अब तो प्रभु कर दो कृपा ,दे दो अपना नेह
दे दो अपना नेह , आत्म को कब पाऊँगा
कब असीम की प्राप्ति , गहन तल तक जाऊँगा
कहते रवि कविराय , जिंदगी लगती रीती
तुम्हें न पाया खोज , उमरिया सारी बीती
???☘️☘️?☘️???
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[16/05, 12:05 PM] Ravi Prakash: गर्जन (कुंडलिया)
?????????
गर्जन में है क्या धरा ,गर्जन करना व्यर्थ
बरसेंगे जो मेघ तो , उनका है कुछ अर्थ
उनका है कुछ अर्थ ,धरा उनसे सुख पाती
पाकर जल की बूँद ,तृप्ति भीतर से आती
कहते रवि कविराय ,हाथ में रखिए अर्जन
तभी बनेगी बात , व्यर्थ का होता गर्जन
??????????
गर्जन = बादलों की गड़गड़ाहट
अर्जन = कमाई
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999 761 5451
[16/05, 12:17 PM] Ravi Prakash: बरसात (कुंडलिया)
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मुस्काती आती कभी , हौले से बरसात
धीरे – धीरे भीगता ,रुनझुन – रुनझुन गात
रुनझुन – रुनझुन गात ,वेग से कभी डराती
जैसे गिरी कटार , व्योम से ऐसे आती
कहते रवि कविराय ,सभी को सदा सुहाती
अद्भुत है आश्चर्य , रूप वर्षा मुस्काती
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[17/05, 1:16 PM] Ravi Prakash: सरिता (कुंडलिया)
?????????
पर्वत से निकली हुईं ,तुम प्राकृतिक प्रवाह
अभिवादन सरिता तुम्हें ,नमन तुम्हारी राह
नमन तुम्हारी राह , धरा पावन कर जातीं
तट पर बसते गाँव , सभ्यताएँ मुस्कातीं
कहते रवि कविराय ,साधना में तुम ज्यों रत
पर्वत का मृदु रूप , धन्य है तुमसे पर्वत
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सरिता = नदी
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
रचयिता ः रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[22/05, 10:58 AM] Ravi Prakash: यामिनी (कुंडलिया)
??????
दिन से बढ़कर यामिनी ,तारों की बारात
शीतल हँसता चंद्रमा ,रजत दिव्य सौगात
रजत दिव्य सौगात ,रश्मियाँ नभ से आतीं
हुआ प्रफुल्लित गात ,धरा पर रस बरसातीं
कहते रवि कविराय ,करे मन बातें किन से
सबके मुख विकराल ,डराते रहते दिन-से
??????????
यामिनी = रात ,रात्रि
रजत = चाँदी
रश्मियाँ = किरणें
नभ = आकाश ,आसमान
धरा = धरती ,पृथ्वी
“”””””””””””””””””””””””””””””””‘”‘”””””
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[23/05, 10:42 PM] Ravi Prakash: मुखिया वाला भाव (कुंडलिया)
?????????
पाए हमने धन्य हम , धीर वीर गंभीर
मोदी जी हमको मिले ,हरने वाले पीर
हरने वाले पीर , संयमित चलते जाते
मुखिया वाला भाव ,कृत्य में इनके पाते
कहते रवि कविराय ,चाल कब ओछी लाए
ऋषियों जैसा तेज ,संत – मति सुंदर पाए
☘️☘️☘️☘️?????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[24/05, 10:39 AM] Ravi Prakash: समय का चक्र (कुंडलिया)
????????
चलता रहता चक्र है ,शीत ऊष्म बरसात
कभी धूप सूरज दिखा ,कभी चाँदनी रात
कभी चाँदनी रात ,नित्य हैं सुख-दुख आते
होते कभी अमीर , कभी निर्धन हो जाते
कहते रवि कविराय ,कभी सुखदाई-खलता
सहो समय का चक्र ,निरंतर जग में चलता
?????????
ऊष्म = गर्मी ,ग्रीष्म ऋतु
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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रचना तिथि : 24 मई 2021
[25/05, 11:01 AM] Ravi Prakash: करतल (कुंडलिया)
??????
करतल पर सबका लिखा ,सब भविष्य या भूत
छिपा हुआ क्या भाग्य में ,मिलना किसे अकूत
मिलना किसे अकूत , अजब रेखाएँ गातीं
सौ वर्षों का चित्र ,खींच कर रख-रख जातीं
कहते रवि कविराय ,लिखा जीवन का हर पल
छोटा – सा यह क्षेत्र , देह का अद्भुत करतल
???????????
करतल = हाथ की हथेली
अकूत = जिसको आँका न जा सके
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[26/05, 4:21 PM] Ravi Prakash: राजशाही चिल्लाती (कुंडलिया)
?????????
होते यदि राजा – महा , होते अगर नवाब
दे पाता तब केंद्र क्या , उनको कड़ा जवाब
उनको कड़ा जवाब , राजशाही चिल्लाती
अपनी ढपली आप , केंद्र से अलग बजाती
कहते रवि कविराय ,पाँच सौ को फिर ढोते
यदि सरदार पटेल , देश में हुए न होते
?????????
रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[29/05, 9:38 AM] Ravi Prakash: उषा (कुंडलिया)
??????????
सजधज कर आती नई , दुल्हन एक समान
मुखड़े पर लाली लिए , देखो उषा महान
देखो उषा महान , गगन कैसे मुस्काता
दिव्य ब्रह्ममय तेज ,लौट वह कभी न आता
कहते रवि कविराय ,समय यह उत्तम हरि भज
यह है काल विशेष , ईशमय लेकर सजधज
??????????
उषा = प्रातः काल
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[29/05, 11:09 AM] Ravi Prakash: चंचल-मन (कुंडलिया)
??????
चंचल – मन पाता कहाँ , परम-ब्रह्म का बोध
ठहरे जिसके दो कदम , करता वह ही शोध
करता वह ही शोध , गहन भीतर तक जाता
महासिंधु से खोज , कीमती मोती लाता
कहते रवि कविराय ,अमोलक पावन प्रभु-धन
लेता जन्म अनेक , नहीं पाता चंचल – मन
??????????
रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[29/05, 8:05 PM] Ravi Prakash: योग दिवस (कुंडलिया)
??????????
मनता सारे विश्व में , दिवस योग त्यौहार
मोदी जी की जय कहो , रामदेव आभार
रामदेव आभार , योग घर – घर फैलाया
भारत का विज्ञान , घूम कर जग में आया
कहते रवि कविराय ,सबल तन-मन है बनता
ऋषियों का आशीष ,हर्ष से भर-भर मनता
?????????
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस भारत के प्रधानमंत्री
श्री नरेंद्र मोदी की पहल पर 2015 से प्रतिवर्ष
21 जून को सारे विश्व में मनाया जाता है ।
?????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[30/05, 10:01 AM] Ravi Prakash: सत्य (कुंडलिया)
??????????
जिसमें सच का बल भरा ,कहाँ सताती आँच
हीरे की कीमत अलग ,अलग मूल्य का काँच
अलग मूल्य का काँच ,सत्य निर्भीक विचरता
सम्मुख चाहे काल , नहीं किंचित भी डरता
कहते रवि कविराय , भला हिम्मत है किसमें
ललकारे जो सत्य , लबालब शुचिता जिसमें
?????????
लबालब = पूर्णतः भरा हुआ
आँच = आग की लपट ,गर्मी ,ताप
शुचिता = शुद्धता ,स्वच्छता ,पवित्रता
?????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[31/05, 10:56 AM] Ravi Prakash: परिवर्तन (कुंडलिया)
?????????
निर्धनता ऐश्वर्य क्या , जैसे हैं दिन – रात
यह बदली ऋतुएँ कहो ,ग्रीष्म शीत बरसात
ग्रीष्म शीत बरसात ,बालपन यौवन आता
होती बूढ़ी देह , देह का बल घट जाता
कहते रवि कविराय , रंक राजा है बनता
राजा बनता रंक , कभी धन है निर्धनता
✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️
निर्धनता = गरीबी
ऐश्वर्य = धन ,वैभव
रंक = गरीब
?????????
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[01/06, 4:40 PM] Ravi Prakash: मोर (कुंडलिया)
?????????
सबसे अच्छा मानिए , जंगल में बस मोर
अपनी धुन में नाचता ,मस्ती में चहुँ ओर
मस्ती में चहुँ ओर ,शहर से रखा न नाता
लेता खुलकर साँस ,गंध मधुरिम है पाता
कहते रवि कविराय ,नाचता जाने कब से
जाना शहर न बँधु ,नम्र हो कहता सब से
?????????
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[05/06, 12:43 PM] Ravi Prakash: पर्यावरण दिवस 【5 जून】पर विशेष
☘️?☘️?☘️??☘️?
नगपति {कुंडलिया}
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वर दो नगपति देवता ,अचल सिंधु का प्यार
पेड़ हरे पौधे मधुर , मिले स्वास्थ्य उपहार
मिले स्वास्थ्य उपहार ,धरा पावन कर जाओ
नदियाँ हों निर्दोष , वायु नित स्वच्छ बहाओ
कहते रवि कविराय ,हरित सुषमा सब कर दो
खुल कर लें सब साँस ,देवता यह शुभ वर दो
???☘️??☘️??☘️
नगपति = भगवान शिव ,हिमालय पर्वत
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[08/06, 11:26 AM] Ravi Prakash: रवि (कुंडलिया)
?????????
आओ ढूँढें क्या हुए , रवि के सुंदर नाम
सूर्य दिवाकर भानु ने , किए एक ही काम
किए एक ही काम ,प्रभाकर भास्कर सविता
अर्क तरणि आदित्य ,नमन दिनकर की कविता
कहते रवि कविराय , अंशुमाली में पाओ
कवि दिनेश मार्तंड , ढूँढ कर ले – ले आओ
??????????
रवि के पर्यायवाची = सूर्य ,दिवाकर ,भानु
,प्रभाकर ,भास्कर ,सविता ,अर्क ,तरणि
,आदित्य ,दिनकर ,अंशुमाली ,दिनेश ,मार्तंड
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[08/06, 1:03 PM] Ravi Prakash: लेखनी (कुंडलिया)
??????
चलती जग में लेखनी , करती रही कमाल
जिसने जो कुछ लिख दिया ,जिंदा सौ-सौ साल
जिंदा सौ – सौ साल , नहीं अक्षर हैं मरते
कागज कलम किताब ,क्रांति दुनिया में करते
कहते रवि कविराय ,अग्नि ज्वाला ज्यों जलती
ईंधन समझो भाव , लेखनी लेकर चलती
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[09/06, 12:38 PM] Ravi Prakash: मृदुल (कुंडलिया)
??????????
रखना सबको चाहिए , सुंदर मृदुल विचार
सरस सुकोमल से सदा , हो मन का श्रंगार
हो मन का श्रंगार , नेह की धार बहाओ
सब में जानो ब्रह्म ,ऐक्यता गुण उपजाओ
कहते रवि कविराय ,भेद का भाव न चखना
कहो जगत सब मित्र ,प्रेम जन-जन से रखना
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मृदुल = कोमल
ऐक्यता = एकता
भेद का भाव = भेदभाव ,बांटने वाली दृष्टि
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[10/06, 11:54 AM] Ravi Prakash: धृति (कुंडलिया)
??????????
धृति से बढ़कर कुछ नहीं ,धृति जीवन का प्राण
मन की अविचलता यही ,दवा राम का बाण
दवा राम का बाण , धैर्य यह ही कहलाया
दृढ़ता धीरज धीर , हुई धृति ही की काया
कहते रवि कविराय ,जगत चलता संसृति से
मिलता है निर्वाण ,एक बस पावन धृति से
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धृति = मन की दृढ़ता ,चित्त की अविचलता,
धीरता ,धीरज,धैर्य
संसृति = बार-बार जन्म ,प्रवाह ,आवागमन
निर्वाण = मृत्यु ,मुक्ति ,मुक्त मन ,पुनर्जन्म से
मुक्ति ,मोक्ष ,कर्म बंधन से मुक्ति ,जीव के
सांसारिक अस्तित्व की समाप्ति
??●●●●●●●●●●●●●●●
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
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[11/06, 10:22 AM] Ravi Prakash: मूसलाधार (हास्य कुंडलिया)
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नाई से ज्यों ही कटे , पप्पू के सब केश
घुटा हुआ सिर हो गया ,मन में भारी क्लेश
मन में भारी क्लेश ,तभी बारिश ने मारा
बूँद मूसलाधार , कर रही घात करारा
कहते रवि कविराय ,समझ पप्पू को आई
बोला वर्षा बीच , पास मत जाना नाई
??????????
मूसलाधार = मूसल के समान मोटी धार,
मुसल के द्वारा ओखली में रखी हुई वस्तु को
जोर-जोर से कूटा जाता है । इसी कारण से
तेज बारिश को मूसलाधार कहा जाने लगा
घात = चोट
क्लेश = दुख ,तकलीफ
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रचना तिथि : 11 जून 2021
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[11/06, 4:17 PM] Ravi Prakash: प्राइवेट ससुराल में टीका (हास्य कुंडलिया)
?????????
लगवाने टीका गए , प्राइवेट ससुराल
वहाँ बताया यह गया , पैसे से है माल
पैसे से है माल , मुफ्त में टीका कैसा
रुपए दें दामाद ,सास को दें कुछ पैसा
कहते रवि कविराय ,गए वह नियम पुराने
लाओ सँग अब नोट ,अगर आओ लगवाने
??????????
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रचना तिथि : 11 जून 2021
[12/06, 11:42 AM] Ravi Prakash: आते बारिश के मजे (कुंडलिया)
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आते बारिश के मजे ,गरम पकौड़ी संग
अदरक वाली चाय से ,फड़कें सारे अंग
फड़कें सारे अंग ,मधुर मस्ती छा जाती
नभ से चली फुहार ,फुरफुरी-सी है लाती
कहते रवि कविराय ,वृक्ष वर्षा ऋतु गाते
जब आती बरसात ,भीग भीतर से जाते
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
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रचना तिथि : 12 जून 2021
[12/06, 4:51 PM] Ravi Prakash: खंडन मंत्री (हास्य कुंडलिया)
????????
फैली इतनी गप्प है , जैसे फैली आग
अब शासन में चाहिए ,खंडन एक विभाग
खंडन एक विभाग ,एक दफ्तर छह चाकर
खंडन – मंत्री रोज ,करें खंडन आ-आकर
कहते रवि कविराय ,मीडिया सोशल मैली
इस कारण अफवाह ,बिना पैरों के फैली
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[13/06, 12:18 PM] Ravi Prakash: कड़वा बोल न बोलिए 【कुंडलिया】
??????????
कड़वा बोल न बोलिए ,कड़वी कहें न बात
किसे पता कब दिन ढले ,कब हो जाए रात
कब हो जाए रात ,मित्र सब जगत बनाओ
रखो हृदय में प्रेम , भावना मधुमय लाओ
कहते रवि कविराय ,प्रथम दिन जैसे पड़वा
करो सुखद शुरुआत ,थूक दो मन का कड़वा
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पड़वा = हिंदी महीने के पक्ष अर्थात
पखवाड़े का पहला दिन
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[13/06, 4:20 PM] Ravi Prakash: आज का मानव (कुंडलिया)
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वैसे तो मानव हुआ ,श्रीयुत द्विपद विराट
लेकिन अब भी खा रहा ,निरपराध पशु काट
निरपराध पशु काट ,स्वादमय जीवन जीता
करता मदिरापान , लहू श्रमिकों का पीता
कहते रवि कविराय , तराजू पर बस पैसे
पाते हैं कब न्याय , रंक जन ऐसे – वैसे
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श्रीयुत = शोभा से युक्त
युत = मिला हुआ ,जुड़ा हुआ ,सम्मिलित
द्विपद = दो पैरों वाला ,मनुष्य
रंक = गरीब
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[14/06, 8:46 AM] Ravi Prakash: तीजा हो या ब्याह (कुंडलिया)
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अपने – अपने कब रहे ,अपने अब सब दूर
बीमारी ने कर दिया , सबको ही मजबूर
सबको ही मजबूर ,कौन अब किससे मिलता
जाने का लो नाम ,होंठ हर कोई सिलता
कहते रवि कविराय ,दृश्य मिलने के सपने
तीजा हो या ब्याह ,चार जुड़ते कब अपने
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
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[14/06, 8:59 AM] Ravi Prakash: वर दो देवी शारदा (कुंडलिया)
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वर दो देवी शारदा , हों निर्भीक विचार
हमको बुद्धि विवेक दो ,दो निर्मल व्यवहार
दो निर्मल व्यवहार ,लोभ से हमें बचाना
अगर मिले पद उच्च ,सहज हो उसे पचाना
कहते रवि कविराय ,मित्रता सबसे कर दो
रहे न कोई शत्रु , दयानिधि देवी वर दो
??????????
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[14/06, 10:27 AM] Ravi Prakash: नानाजी देशमुख (कुंडलिया)
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श्री नानाजी देशमुख ,भारत रत्न महान
कर्मठता इनमें भरी ,राजनीति का ज्ञान
राजनीति का ज्ञान ,लोभ मंत्री-पद छोड़ा
रचनात्मकता ध्येय ,साठ में जीवन मोड़ा
कहते रवि कविराय ,सभी नेता हों राजी
लें पद से अवकाश ,बनें सब श्री नानाजी
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
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नानाजी देशमुख : जनसंघ के कुशल संगठनकर्ता के रूप में आपने साठ वर्ष की आयु तक कार्य किया । संगठन पर आप की पकड़ बेजोड़ थी । 1977 में जनता पार्टी की सरकार में केंद्रीय मंत्री बनने के प्रस्ताव को आप ने अस्वीकार कर दिया तथा यह कहकर राजनीति में हलचल पैदा कर दी कि नेताओं को साठ वर्ष की आयु के बाद राजनीति से रिटायर हो जाना चाहिए। आपका कथन केवल विचार नहीं था । आपने उसे आचरण में उतारा। साठ वर्ष की आयु के बाद राजनीति से जुड़े प्रश्नों पर आपने हस्तक्षेप करना तो दूर की बात रही, विचार करना भी बंद कर दिया । रचनात्मक कार्यों के लिए स्वयं को अर्पित किया। मरणोपरांत आपको भारत रत्न प्रदान किया गया। इन पंक्तियों के लेखक का सौभाग्य है कि उसने 1977 में दीनदयाल शोध संस्थान, दिल्ली में निकट से आपके दर्शन किए तथा कार्यप्रणाली को देखा।
[14/06, 12:18 PM] Ravi Prakash: हुई जमानत जब्त (हास्य कुंडलिया)
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गर्वीला नेता बना , मंत्री उच्च महान
जनता से कहने लगा , देखो मेरी शान
देखो मेरी शान ,अदब से शीश झुकाओ
जनता बोली धूर्त ,इसे अब सबक सिखाओ
कहते रवि कविराय ,पड़ा तब नेता पीला
हुई जमानत जब्त , झुका मुखड़ा गर्वीला
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गर्वीला = गर्व करने वाला ,अभिमान से भरा
अदब = सम्मान ,इज्जत
धूर्त = मन में कपट रखने वाला
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[14/06, 12:59 PM] Ravi Prakash: अभागे पति पछताए (हास्य कुंडलिया)
?????????
आए बादल तो कहा ,पति ने मौसम जान
गरम पकौड़ी इस समय ,भारी पुण्य-प्रधान
भारी पुण्य – प्रधान ,तुरत पत्नी यह बोली
पुण्य कमाएँ आप , हमारी भर दें झोली
कहते रवि कविराय ,अभागे पति पछताए
तली पकौड़ी गर्म , प्लेट में लेकर आए
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[14/06, 10:19 PM] Ravi Prakash: लीची (कुंडलिया)
??????????
लीची के रस की कहां ,तुलना किससे और
लाल वस्त्र पहने हुए , करिए इस पर गौर
करिए इस पर गौर , रसीली मीठी काया
गूदा है भरपूर , मध्य गुठली की माया
कहते रवि कविराय ,अन्य की हालत नीची
बाकी फल सब गौण ,उच्च होती है लीची
गौण = दूसरे दर्जे का ,जिस का महत्व नहीं हो
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[15/06, 11:17 AM] Ravi Prakash: सिर्फ सत्ता से मतलब (कुंडलिया)
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मतलब सर्वोपरि हुआ ,स्वार्थसिद्धि बस काम
चचा भतीजे कर रहे , रिश्तों को बदनाम
रिश्तों को बदनाम , बुआ जी देतीं पटकी
माँ के कारण साँस ,पुत्र की अक्सर अटकी
कहते रवि कविराय ,कुटिल चौतरफा करतब
भाई चलता दाँव , सिर्फ सत्ता से मतलब
■■■■■■■■■■■■■■■■■
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[15/06, 12:29 PM] Ravi Prakash: लक्ष्मण-रेखा (कुंडलिया)
??????????
लक्ष्मण-रेखा है खिंची ,भीतर सिया अबोध
बाहर है पसरा पड़ा , लोभी लेकर क्रोध
लोभी लेकर क्रोध ,दशानन जाल बिछाए
चाह रहा है दुष्ट , जानकी को ले जाए
कहते रवि कविराय ,सत्य कटु यह ही देखा
होता है नुक्सान , तोड़कर लक्ष्मण-रेखा
?????????
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[15/06, 12:56 PM] Ravi Prakash: डॉ. अर्चना गुप्ता, मुरादाबाद(कुंडलिया)
?????????
लिखने में है इन दिनों , सबसे ऊँचा नाम
कुंडलिया हो या गजल,लिखीं सभी अभिराम
लिखीं सभी अभिराम ,गीत सस्वर मधु गातीं
सदा मंद मुस्कान , नेह सब पर बरसातीं
कहते रवि कविराय ,सरल छवि है दिखने में
नमन अर्चना गुप्त , मगन रहतीं लिखने में
?????????
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जन्म दिवस पर विशेष
रचना तिथि 15 जून 2021
[15/06, 1:13 PM] Ravi Prakash: दृष्टा-भाव (कुंडलिया)
?????????
रखना जीवन में सदा , सुंदर दृष्टा – भाव
देखो सब जो हो रहा ,लेकिन नहीं फँसाव
लेकिन नहीं फँसाव ,नहीं मैं जग या काया
मैं हूँ परमानंद , सृष्टि यह केवल माया
कहते रवि कविराय ,दिव्य रस हर क्षण चखना
पर यह ही है शर्त , भाव दृष्टा ही रखना
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दृष्टा = देखने वाला ,दर्शक
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[15/06, 7:18 PM] Ravi Prakash: अरहर की दाल (कुंडलिया)
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दालों में सबसे मधुर ,अरहर वाली दाल
दो भागों में यह बँटी ,सचमुच एक कमाल
सचमुच एक कमाल ,डालकर नींबू-चीनी
बढ़ जाता है स्वाद ,गंध फिर भीनी-भीनी
कहते रवि कविराय ,न गोरों में कालों में
पीली अरहर दाल ,श्रेष्ठतम सब दालों में
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[16/06, 1:40 PM] Ravi Prakash: श्री कृष्ण (कुंडलिया)
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भादो श्री कृष्णाष्टमी ,उदय कृष्ण अवतार
बचपन लीला से भरा ,बंसी से अति प्यार
बंसी से अति प्यार , गाय हर रोज चराई
यमुना में था नाग , विदाई उसे कराई
कहते रवि कविराय ,कर्म का फल मत लादो
बनो शुभ्र दृढ़प्रज्ञ , कह रहा पावन भादो
??????????
भादो = विक्रम संवत के 12 महीनों में से एक महीना
कृष्णाष्टमी =कृष्ण पक्ष की अष्टमी
नाग = यमुना में स्थित कालिया नाग जिसके
कारण कृष्ण के समय यमुना विषैली थी
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[16/06, 4:49 PM] Ravi Prakash: हिमपात (कुंडलिया)
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भाता है सब को सदा ,पर्वत का हिमपात
नभ से गिरता हिम लगे ,जैसे हो बरसात
जैसे हो बरसात , अजूबा जादू लगता
देखा पहली बार ,दृश्य हो जैसे ठगता
कहते रवि कविराय ,भाग्य से ही दिख पाता
जब होता हिमपात ,हृदय को सबके भाता
हिम= बर्फ
हिमपात = पहाड़ों पर आसमान से बर्फ का
गिरना
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[18/06, 1:33 PM] Ravi Prakash: कमल (कुंडलिया)
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बोलो तुम को क्या कहें ,नीरज नलिन सरोज
पद्म कंज पुष्कर जलज , या पंकज की खोज
या पंकज की खोज ,नाम राजीव सराहो
पुंडरीक है श्रेष्ठ , कमल अद्भुत को चाहो
कहते रवि कविराय ,तुला पर गुण को तोलो
जल से रहा अलिप्त ,कीच में ऋषि ज्यों बोलो
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कमल = नीरज ,नलिन ,सरोज ,पद्म ,कंज
, पुष्कर ,जलज ,पंकज ,राजीव ,पुंडरीक
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[18/06, 3:14 PM] Ravi Prakash: वर्षा (कुंडलिया)
⛱️⛱️⛱️⛱️??☘️☘️☘️
जाओ ले संदेश शुभ ,प्रियतम पास कपोत
उनसे कहना प्रेम का , वर्षा मधुरिम स्रोत
वर्षा मधुरिम स्रोत , व्योम में बादल छाते
घिरती दिन में रात ,मस्त सब मन हो जाते
कहते रवि कविराय ,प्रिये अब तुम भी आओ
झूलें हम – तुम साथ ,नहीं फिर आकर जाओ
??????????
कपोत = कबूतर
व्योम = आसमान
【【【【【【【【【【【【【【【【【【【【【
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[19/06, 9:59 AM] Ravi Prakash: लो कर में नवनीत (हास्य कुंडलिया)
????????☘️☘️
आगे बढ़ना है अगर ,लो कर में नवनीत
समझो खुद को बॉस का ,सेवक जैसे क्रीत
सेवक जैसे क्रीत ,बॉस का तलवा मलना
दिखे जहां भी पैर ,शीश पर धर कर चलना
कहते रवि कविराय ,दिखो बस दौड़े-भागे
मलने में नवनीत , बॉस के रहना आगे
_______________________________
नवनीत = मक्खन
क्रीत = खरीदा हुआ
बॉस = अफसर ,उच्च अधिकारी
कर =हाथ
__________________________
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[19/06, 7:39 PM] Ravi Prakash: पावन पिता महान (कुंडलिया)
???☘️☘️???
पुण्य कमाए तब मिले , पावन पिता महान
जन्म दिव्य शुचि घर हुआ ,उत्तम शुभ श्रीमान
उत्तम शुभ श्रीमान , मिला परिवेश सहारा
टूटा था जो सूत्र , योग का जोड़ा सारा
कहते रवि कविराय , पिता मंगलमय पाए
विधि का धन्य विधान ,मिला फल पुण्य कमाए
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[20/06, 8:23 AM] Ravi Prakash: पर्वत से दृढ़ तुम पिता (कुंडलिया)
?????????
सागर से गंभीर तुम , नभ जैसा विस्तार
पर्वत से दृढ़ तुम पिता ,वंदन है शत बार
वंदन है शत बार , सदा देते ही पाया
घर को शुभ आकार ,मिली तुमसे ही काया
कहते रवि कविराय ,स्वयं सिमटे गागर-से
चाह रहे संतान , बने बढ़कर सागर से
?????????
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[20/06, 1:32 PM] Ravi Prakash: व्यापारी (कुंडलिया)
?????????
व्यापारी में है बसा ,बुद्धि और श्रम योग
पूंजी का चातुर्य से , करता है उपभोग
करता है उपभोग ,कमाकर चार खिलाता
खुद पर निर्भर आप ,देश का आय-प्रदाता
कहते रवि कविराय ,ग्रीष्म हिम वर्षा हारी
सतत कर्म का सार ,धन्य तुम हे व्यापारी
?????????
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[20/06, 1:37 PM] Ravi Prakash: दीनानाथ दिनेश जी (कुंडलिया)
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श्री हरि गीता के अमर , पावन रचनाकार
दीनानाथ दिनेश जी , नमन करो स्वीकार
नमन करो स्वीकार ,ज्ञान की ज्योति जलाई
घूमे भारतवर्ष , कथा गीता की गाई
कहते रवि कविराय ,मधुर स्वर-रस जो पीता
भूला कभी न कंठ ,न भूला श्री हरि गीता
?????☘️☘️???
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[20/06, 6:29 PM] Ravi Prakash: आई गंगा स्वर्ग से (कुंडलिया)
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आई गंगा स्वर्ग से ,उतर हिमालय धाम
लिया जटाओं में इसे ,शंकर जी ने थाम
शंकर जी ने थाम ,चली भागीरथ – धारा
पावन इसकी बूँद ,छू गया जो वह तारा
कहते रवि कविराय ,अलकनंदा वरदाई
वंदन भारतवर्ष ,जहाँ सुरसरिता आई
?????????
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गंगा दशहरा : हिंदी संवत के बारह महीनों में से एक जेठ शुक्ल दशमी को धरती पर गंगा का अवतरण माना जाता है। यह दिन गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है ।
गंगाजल किसी नदी का कोई साधारण जल नहीं है । इसे राजा भागीरथ बड़ी तपस्या के बाद स्वर्ग से धरती पर लाए थे। किंतु गंगा का वेग धरती सहन नहीं कर सकती थी । भगवान शंकर की तपस्या करके भागीरथ ने उन्हें इस बात के लिए तैयार किया कि वह अपनी अलकों अर्थात जटाओं में गंगा को थाम लें। शिव जी ने ऐसा ही किया । इस तरह गंगा का एक नाम अलकनंदा पड़ गया । एक जटा में गंगा की धारा शिव जी ने खोल दी और वह पहाड़ों से होती हुई हरिद्वार से निकलकर मैदानों में आ गई ।
गंगा मोक्षदायिनी है । इसके जल के स्पर्श से राजा भागीरथ के पूर्वजों को अंतिम संस्कार के बाद उनकी राख गंगा में प्रवाहित करने से मुक्ति प्राप्त हुई थी। गंगा कोई साधारण नदी नहीं है । यह स्वर्ग से आई है। अतः इसे सुरसरिता कहते हैं । हजारों वर्षों तक यह गंगा के जल की विशेषता रही कि लोग इसे नदी से गंगाजली में भरकर लाते थे और वर्षों तक घर पर रखने के बाद भी यह खराब नहीं होता था । गंगा में नहाना, गंगा के दर्शन करना तथा गंगाजल का पान करना तन और मन दोनों को पवित्र करता रहा है । गंगा भारत की बहुमूल्य और अलौकिक विरासत है । इसकी रक्षा करना हमारा धर्म है । (लेखक : रवि प्रकाश )
[21/06, 9:29 AM] Ravi Prakash: निर्मल पावन योग (कुंडलिया)
?????????
मिलवाता प्रभु से हमें ,निर्मल पावन योग
तन को जो जीता रहा ,जीवन केवल भोग
जीवन केवल भोग ,योग-फल दिव्य निराला
साँसो का व्यायाम , ध्यान शुभ देने वाला
कहते रवि कविराय ,विश्व-गुरु योग-प्रदाता
भारत सारा विश्व , योग से है मिलवाता
?????????
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[21/06, 9:34 AM] Ravi Prakash: मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम (कुंडलिया)
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मर्यादा में थे बँधे , पुरुषोत्तम श्री राम
प्रेरक है जीवन-चरित ,उज्ज्वल सारे काम
उज्ज्वल सारे काम ,सहज ही वन अपनाया
रावण-वध के बाद ,सिया को मुक्त कराया
कहते रवि कविराय ,मर्म यह सीधा – सादा
रखो सदा आदर्श , जिंदगी में मर्यादा
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451
[21/06, 11:10 AM] Ravi Prakash: पुनर्जन्म (कुंडलिया)
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मरता लेता जन्म है , प्राणी बारंबार
पुनर्जन्म से इस तरह , चलता है संसार
चलता है संसार , भाग्य के फल सब पाते
जैसे जिसके कर्म , पिता-माता मिल जाते
कहते रवि कविराय ,जटिल रचना प्रभु करता
तय सब अगला जन्म , मनुज जैसे ही मरता
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
पुनर्जन्म एक जटिल संरचना है । मनुष्य को उच्च से उच्चतर धरातल पर ले जाने के लिए प्रकृति माता-पिता ,परिवार और परिवेश उपलब्ध कराती है । व्यक्ति अनेक कर्म-बंधनों से छूटता है । प्रगति करता है । अनेक बार नए कर्म-बंधनों में बँध जाता है । फिर मृत्यु होती है ,फिर जन्म होता है । मुक्ति असाधारण अवस्था है। ( लेखक: रवि प्रकाश)
[21/06, 1:53 PM] Ravi Prakash: चिर यौवन पहचान (कुंडलिया)
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किसकी चिर काया रही ,चिर यौवन पहचान
रोग-रहित किसको मिली ,काया स्वर्ण-समान
काया स्वर्ण – समान ,मृत्यु से कब बच पाया
सौ वर्षों के बाद , काल ने सबको खाया
कहते रवि कविराय ,धरा हर क्षण-क्षण सिसकी
मर्त्य-लोक में साँस ,अनश्वर बोलो किसकी
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चिर = सदा रहने वाला ,हमेशा रहने वाला
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[21/06, 2:26 PM] Ravi Prakash: जनसंख्या विकराल {कुंडलिया}
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खाने को रोटी नहीं , फुटपाथी हालात
बच्चे फिर भी कर रहे ,पूरे गिनकर सात
पूरे गिनकर सात ,कौन अब इन्हें खिलाए
देश उठाता बोझ , कचूमर निकला जाए
कहते रवि कविराय ,उठो सब रुकवाने को
जनसंख्या विकराल , काटती है खाने को
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
[22/06, 11:12 AM] Ravi Prakash: अस्तेय (कुंडलिया)
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चोरी की आदत बुरी , अपनाओ अस्तेय
ललचाओ मत मन कभी ,जानो चोरी हेय
जानो चोरी हेय , बुरा है वस्तु हड़पना
जो हड़पेगा वस्तु , पड़ेगा उसे तड़पना
कहते रवि कविराय ,रखो निज गागर कोरी
भरो न इसमें मैल , कभी मत करना चोरी
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अस्तेय = चोरी न करना ,दूसरे की वस्तु
को चुराने या कब्जा करने की चेष्टा न
करना ,योग का एक अभिन्न अंग
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर( उत्तर प्रदेश )
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[22/06, 11:34 AM] Ravi Prakash: डूबे जिसके ध्यान में (कुंडलिया)
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डूबे जिसके ध्यान में ,क्या उसका आकार
कैसे खाता बोलता , कैसा है व्यवहार
कैसा है व्यवहार ,बड़ा है या वह छोटा
पतला है तृण-मात्र ,कहें या उसको मोटा
कहते रवि कविराय ,सृष्टि में कई अजूबे
किंतु गुह्यतम एक ,वही जिसमें हम डूबे
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ध्यान = योग साधना का उच्च धरातल
गुह्यतम = अत्याधिक रहस्यमय ,
अत्यधिक गुप्त
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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[22/06, 12:07 PM] Ravi Prakash: डंका बजता चार दिन (कुंडलिया)
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डंका बजता चार दिन , चुप्पी उसके बाद
तीजा दसवाँ जब हुआ ,किसको किसकी याद
किसको किसकी याद , सूरमा लोग भुलाए
गढ़ा जिन्होंने लोक , नाम सब धुँधले पाए
कहते रवि कविराय , रखो मत मन में शंका
जीवन में जयघोष , बाद में किसका डंका
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डंका = यह एक प्रकार का बाजा होता है जो तांबे या लोहे के बर्तन पर चमड़ा मँढ़कर तैयार किया जाता है। प्राचीन काल में राजा-महाराजाओं की सवारी के आगे-आगे जिसे बजाया जाता था। डंका बजाने का अभिप्राय प्रसिद्धि ,शोहरत ,शासन करना अथवा दूर-दूर तक अपना आधिपत्य कायम करने की भावना से है।
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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