23/217. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
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23/217. छत्तीसगढ़ी पूर्णिका
🌷 कठ्ठल कठ्ठल के हांसत रथे🌷
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कठ्ठल कठ्ठल के हांसत रथे ।
वो हिरदे ला फांसत रथे ।।
बड़ सुघ्घर हवे मनमोहनी।
मौका देखत ताकत रथे ।।
खुल जाथे फजरे नींद हा।
कुकरा जइसन बांसत रथे ।।
संसो न फिकर कुछु बात के।
नचकारिन कस नाचत रथे ।।
अलहन खेदू बस होय झन ।
घेरी बेरी खांसत रथे ।।
………….✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
01-01-2024सोमवार