23-निकला जो काम फेंक दिया ख़ार की तरह
अपनी ग़रज़ पे लोग मिले यार की तरह
निकला जो काम फेंक दिया ख़ार की तरह
दाने की जुस्तुजू में परिंदे चले गए
तन्हा शजर खड़ा रहा लाचार की तरह
जीने का शौक़ है मुझे अपने उसूल पर
जीता हूँ ज़ीस्त रोज़ मैं त्योहार की तरह
चाहा जिन्हें था मैंने दिल-ओ-जान से अधिक
वो सामने से गुज़रे हैं अग़्यार की तरह
मुस्कान आपकी ये क़यामत से कम नहीं
इससे करो न वार सितम-गार की तरह
बाज़ार-ए-आरज़ू में गुज़रती रही ये उम्र
मुझको मिला न कोई ख़रीदार की तरह
आशिक़ हूँ आपका कोई लोफ़र नहीं सनम
मुझको सज़ा न दीजै ख़तावार की तरह
तुम दूर जब से हो गए रौनक चली गई
कहते हैं लोग लगते हो बीमार की तरह
~अजय कुमार ‘विमल’