(22) एक आंसू , एक हँसी !
मैं न दूंगा दर्द अपना, लाख खुशियों के लिए
मैं न बहने दूँगा अपने अश्रु अपनी हँसी तक |
हैं मेरी निधियाँ ये दोनों, मैं सहेजूँगा इन्हें
होंठ तक मुस्कान मेरी, एक आँसू पलक तक ।
जरुरी है एक आँसू मन की शुचिता के लिए
जिंदगी के गुप्त भेदों को समझने के लिए ।
तो जरुरी एक स्मित उस ख़ुदा की शान में
और उसके नेक बन्दों की निकटता के लिए ।
एक आँसू चाहिए –टूटे दिलों से जुड़ सकूँ
इक हँसी इस हेतु कि “जिन्दा हूँ”–इतना कह सकूँ ।
मैं हताशा, निराशा, असहायता जीता रहूँ,
इससे बेहतर यह– किसी की लालसा में मर खपूं ।
चाहता हूँ , प्यार की एक भूख मेरी रूह में हो ,
रूह की गहराइयों में एक सुन्दरता बसी हो ।
क्योंकि देखा हैं कि वे होते घिनौने, नीच अक्सर
जिनके शब्दों में सदा संतोष की भाषा लिखी हो ।
लालसा की , चाह की सिस्कारियों को सुन के देखो ,
लगेगा कि मधुरतम संगीत इसमें बह रहा हो ।
सांझ आती और कोमल फूल पंखुड़ियां समेटे
जैसे अपनी चाहतों को अपनी बाहों में समेटे
नींद के आगोश में जाता चला, खिलता सुबह,
जैसे चुम्बन सूर्य का पाने को खोले होंठ हो ।
चाहतों की और उनकी पूर्णता की इक मिसाल ,
जिन्दगी यह फूल की है , एक आँसू , एक हँसी ।
और देखो वाष्प बनकर सिन्धु जल उठता गगन में
सघन होकर, मेघ बनकर तैरता फिरता गगन में
पर्वतों को , घाटियों को पार कर, मिलता पवन से
द्रवित होकर,रुदन करता,बरस पड़ता खेत में ,
मिलके फिर जलधार से ,वह पहुँच जाता निज सदन में
यह बिछड़ना और मिलन ,परिपूर्ण उसकी जिंदगी
जिंदगी यह सिन्धुजल की , एक आँसू , एक हँसी ।”
यही गति इस आत्मा की, महत्तर से पृथक होकर
भौतिकी जग में पहुँच , दुःख-पर्वतों को पार करके
और सुख के समतलों से गुजर, मिलती मृत्यु से ,
अंत में जा पहुंचती , निज सदन में, आती जहां से,
वह सदन जो प्रेम का सौन्दर्य का है महासागर
है जहाँ आनंद बस , कहते हैं जिसको ईश का घर |
जन्म लेना,बिखरना,फिर पहुंचना प्रभु धाम में
चक्र जन्मों का न कुछ , बस एक आंसू ,एक हंसी !!
स्वरचित एवं मौलिक
रचयिता : (सत्य ) किशोर निगम
प्रेरणा /भावानुसरण : ‘खलील जिब्रान’ की रचना “A Tear And A Smile”