■ शर्म भी शर्माएगी इस बेशर्मी पर।
सह जाऊँ हर एक परिस्थिति मैं,
इश्क दर्द से हो गई है, वफ़ा की कोशिश जारी है,
जाने क्यूँ उसको सोचकर -"गुप्तरत्न" भावनाओं के समन्दर में एहसास जो दिल को छु जाएँ
*वही निर्धन कहाता है, मनुज जो स्वास्थ्य खोता है (मुक्तक)*
24/245. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
इश्क़ छूने की जरूरत नहीं।
तपाक से लगने वाले गले , अब तो हाथ भी ख़ौफ़ से मिलाते हैं
साहित्य चेतना मंच की मुहीम घर-घर ओमप्रकाश वाल्मीकि
*बूढ़े होने पर भी अपनी बुद्धि को तेज रखना चाहते हैं तो अपनी
न जाने क्या ज़माना चाहता है
सुबह की नींद सबको प्यारी होती है।
ये आरजू फिर से दिल में जागी है
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
जीवन और रंग
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर