2122 1212 22/112
2122 1212 22/112
तू नज़र से जुदा ही रहता है
आशिक़ो की कहां ही सुनता है
जुल्फ़े लहराके बलखाके अपनी
तू जवानी पे अपनी मरता है
रोज़ आके तु ख्वाबो मैं मेरी
नींद भी चैन भी चुराता है
लफ्ज़ दो की कहानी सुन ने को
चाहता दिल है कबसे मेरा है
तू बतादे “जु़बैर” को मिलकर
इश्क़ का जां कसूर एसा है
लेखक – ज़ुबैर खांन………..✍🏻