21वीं सदी की नारी!
महक महक महकती स्वप्नशाला को महकने दो
दहक दहक दहकती चाहज्वाला को दहकने दो।
दिखाओ मुझको न तुम डर लड़की होने के नाम के
जज्बात मेरे भी अंदर अपनी धरती,अपने अवाम के।
हूँ मैं ज्ञान की जननी मुझे अज्ञान कहते हो
इंसान नहीं मुझे क्यों एक सामान कहते हो?
जो न करें सम्मान नारी का,वो मन से हैं रोगी
धर्म के नाम पर धरा बेचते ऐसे पाखंडी जोगी।
जिसने भी नारी की मनुष्यता पर प्रहार किया
न भूलें ऐसे पापी का श्री राम ने संहार किया।
हूँ 21 वीं सदी की नारी
कला के साथ विज्ञान लिया है
क्या सत्य क्या असत्य इसका ज्ञान लिया है।
जिस मिट्टी से जने सब इसे मैं भी जनी हूँ
तिरँगा मुझको भी प्यारा…
मैं भी तीन रंगो से बनी हूँ!
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक