21वीं सदी का इन्सान
गली मे आज
फिर लगी है भीड़
कत्ल हुआ है इन्सानियत का
देखती रह गयी है भीड़
खोफ की पहचान बन गया है हैवान
लूट कर ले गया है किसी का चैन
लाचार बेबस हो गया है इन्सान
भीड़ मे अब अकेला खड़ा है इन्सान
जानवर से भी कायर
नजर आने लगा है इन्सान
बधिर बेजुबान हो चुका है इन्सान
अट्टहास कर रहा है हैवान
बारी बारी से बलि देने का
इंतजार कर रहा है
इक्कीसवीं सदी का इन्सान ।।
राज विग