21वीं सदी और भारतीय युवा
देश का सबसे बड़ा न्योक्ता रेलवे एवं बैंकिंग सेक्टर हुआ करता था । निजीकरण को बढ़ावा देने के कारण दोनों से रोजगार लगभग गायब कर दिए गए । सेना और पुलिस को भी निजीकरण के क्षेत्र में धकेला जा रहा है । रोजगार के अवसर सिमटते जा रहे है । बेरोजगारों की एक फौज खड़ी हो गई है जिसे अपने आजीविका के लिए न्यूनतम वेतन पर काम करने को मजबूर होना पर रहा है । या यूं कहें तो प्राइवेट सेक्टर इसका भरपूर लाभ लेने की कोशिश में । हर तरफ से युवाओं का शोषण पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा है जिसका परिणाम डिप्रेशन के कारण युवाओं में आत्महत्या की घटनाओं में भी इजाफा हुआ है । साथ ही बेरोजगारी के कारण एक पीढ़ी नशाखोरी , ऑनलाइन ठगी जुआ एवं गेम के चपेट में आकर चोरी डकैती जैसी घटनाओं में संलिप्त हो रहा है । हालिया राजनैतिक दलों के क्रियाकलापों ने भी ऐसे लोगों को बढ़ाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ा है । अपने राजनैतिक फायदा के लिए पूरी पीढ़ी को तबाही के चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है ।
बिहार जैसे सीमित संसाधन वाले राज्यों में बेरोजगारी चरम सीमा पर है और पिछले कुछ वर्षों में जिस प्रकार से केंद्र में रोजगार के अवसर कम हुए है और बिहार में शिक्षकों की बहाली का दुष्प्रचार हुआ है एक बड़ा तबका में शिक्षण ट्रेनिंग लेने की होड़ मच गई है । बिहार में रोजगार के अवसर दो ही क्षेत्र में दिखती है अब उसमें भी भीड़ दिखाई पड़ती है वह है शिक्षक और पुलिस ।
कुल मिलाकर यदि केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार मिलकर रोजगार के अवसर को उत्सर्जित कर पाने में विफल रहा तो इसके परिणाम निकट भविष्य में भयावह देखने को मिल सकते है ।