201…. देवी स्तुति (पंचचामर छंद)
201…. देवी स्तुति (पंचचामर छंद)
सदा अकेल श्रृष्टि कर्म लोक धर्म पालिका।
बहुल बनी विवेविका अनेक एक साधिका।
नितांत शांत मौन धाम प्रेम रूप राधिका।
असुरअरी सुसाधु चित्त कंस वंश वाधिका।
समय महान एक तुम सुकाल हो अकाल हो।
कुकृत्य सर्व हारिणी परोपकार चाल हो।
महंत संत सेविका महा मही सुपाल हो।
अनंत देव देवियां समेत यज्ञ माल हो।
निकाय नित्य नायिका नमामि नम्र नर्मदा।
सहानुभूति सभ्य शैव शीत शुद्ध सर्वदा।
अलक्ष्य लक्ष्य लेखिका ललाट लुभ्य लालिता।
कवित्त वित्त पोषिका सुपालिनी स्वपोषिता।
वचन सुखद प्रचारिका महातमा विचारिका।
सरल विनय विनीत विज्ञ विद्य सिंधु धारिका।
प्रचंड ज्ञानदायिनी सरस्वती सुपूजिका।
अधर मधुर करो सदैव मातृ देहि जीविका।
202…. वे यादें (सानेट)
गुरुवर ने जो ज्ञान सिखाया।
उनकी याद बहुत आती है।
मन की ललिता गुण गाती है।
गुरुवर ने ही मनुज बनाया।
मात पिता की याद सताती।
पाल पौष कर बड़ा किये वे।
संरक्षण दे खड़ा किये वे।
उनके बिना दुखी दिल छाती।
सगे सहोदर के संस्कारों,
की ऊपज यह मेरा मन धन।
खिला हुआ रहता सारा तन।
आओ मिल लो आज बहारों!
यह जीवन यादों की धरती।
सहज बुद्धि है इस पर चरती।
203…. पावन इरादा
मिलेगी सदा राह सुंदर सुहानी, अगर शुभ्र पावन इरादा रहेगा।
मिलेगा सहारा सुनिश्चित समझ लो, मिलेगा सुयोगीय वादा रहेगा
सहायक कदम दर कदम पर मिलेंगे, पकड़ हाथ मंजिल दिखाते रहेंगे।
न समझो अकेला बहुत साथ तेरे, तुम्हारे कदम को बढ़ाते रहेंगे।
मिलेगी खुशी बस निकल घर न सोचो, हृदय में रखो एक उत्तम मनोहर।
सहज दीप लेकर चलो जय ध्वजा ले, बने जिंदगी प्रेरणामय धरोहर।
204…. सुशांत देश (पंचचामर छंद)
रचा करो सुशांत प्रांत भ्रांत तर्क छोड़ दो।
सुतर्क बुद्धि साधना विवेक स्वर्ग जोड़ दो।
मरोड़ ग्लानि तोड़ द्वेष दर्प भेद त्याग दो।
अनेक में अनन्त हेतु शून्य अंक भाग दो।
प्रशांत हिंद देश का करो सदैव कामना।
टपक बहे अमी सुधा यही सुबोध याचना।
भरत मिलाप हो सदा जगत बने सहोदरम।
सुनीति प्रीति रीति से बने सुगीति सुंदरम।
कुटिल दनुज अधर्म पाप मोह वासना जरे।
सदा उपासना करे मनुज सुधारणा धरे।
पवित्र मन विचारवान स्नेह विश्व में भरे।
तथा रहे न देहवाद शोषणीयता मरे।
205…. फैसला
किया फैसला प्यार चलता रहेगा।
नहीं यह झुकेगा नहीं यह डरेगा।
गलत कुछ नही है शिकायत नहीं है।
सदा प्यार करना कवायद सही है।
दिया ईश ने है वरक्कत निशानी।
कभी कम न होगा सुरा की रवानी।
हृदय में सदा प्यार बहता रहेगा।
जगत को शुभाशीष देता चलेगा।
रुकेगी नहीं नित्य धारा बहेगी।
सदा भूमि अमृत सलोनी रहेगी।
जरूरत जिसे प्यार की बूंद की है।
मिलेगी उसे राह शिव भौतिकी है।
निराशा हताशा नहीं मानसिक हो।
बढ़ो प्रेम पथ पर समझ इक पथिक हो।
सुमन खिल उठेगा चमन मुस्कराये।
सुदिन एक दिन साज सज्जा सजाये।
206…. प्यार का रंग (सजल)
नहीं प्यार का रंग फीका पड़ेगा।
गमकता चमन सा सदा यह खिलेगा।
सनातन पुरातन नवल नव्य नूतन।
सदा यह सुहागन हृदय सा दिखेगा।
बड़े भाग्य का फल सदा प्यार होता।
विगत जन्म सत्कर्म का रस मिलेगा।
मिलेगा कभी साथ ऐसे पथिक का।
चलो संग प्यारे निकट आ कहेगा।
पकड़ बांह हरदम सजायेगा डोली।
मिला कर कदम से कदम वह चलेगा।
थिरक कर मचल कर दिखायेगा जलवा।
तुम्हारे हवाले वतन वह करेगा।
अधर को अधर से मिलाये सदा वह।
वदन को वदन से सहज बांध लेगा।
बड़े नम्र आगोश में भर तुझे वह ।
मिलन की सहज रात यौवन भरेगा।
207…. सत्य विचार (पंचचामर छंद)
यही विचार सत्य है कि भाव ही प्रधान है।
धनी वही सुखी वही जिसे यही सुज्ञान है।
धनिक समझ उसे नहीं पिपासु जो अनर्थ का।
गवा रहा स्वयं सदा निजी जमीन व्यर्थ का।
पढ़ो वही सुकल्पना जहां स्वभाव रम्य है।
गढ़ो वही सुशासना जहां प्रभा सुरम्य है।
नढ़ो नवीन बंधना भला करो बुरा नहीं।
चढ़ो अनंत शैल पर अमी बनो सुरा नहीं।
शराब आत्मज्ञान का कुधान्य का पियो नहीं।
अमर्त्य हो असीम हो कुकर्म को जियो नहीं।
सदा रहो सुगर्मजोश दिल दरिंदगी नहीं।
जहां नहीं हृदय प्रफुल्ल है न जिंदगी वहीं।
जहां कहीं कटील राह पंथ को संवार दो।
चलें सभी सुडौल चाल स्नेह नीर धार दो।
कड़क नहीं मधुर वचन सदा बहार बन बहे।
न निंदनीय याचना करे मनुज कभी कहे।
208…. हिंदी दिवस पर कुंडलिया
हिंदी मेरी जानकी, हिंदी मेरे राम।
हिंदी में शंकर सदा, हिंदी में घनश्याम।।
हिंदी में घनश्याम, लिए मुरली वे चलते।
देते हैं उपदेश, मनुज बनने को कहते।।
कहें मिश्र कविराय, चमकती जैसे बिंदी।
उसी तरह से दिव्य, भव्य है देवी हिंदी।।
हिंदी में मधु प्यार अति, हिंदी में अनुराग।
हिंदी में मानव छिपा, हिंदी में है त्याग।।
हिंदी में है त्याग, हिंद हिंदी के नाते।
अति संवेदनशील, मनुज हिंदू कहलाते।।
कहें मिश्र कविराय, यहां शिव जी का नंदी।
तपोभूमि का पृष्ठ, बनाती हरदम हिंदी।।
हिंदी वैश्विक नाम है, लोक भाव वन्धुत्व।
हिंदी में पुरुषार्थ है, आश्रम वर्ण गुरुत्व।।
आश्रम वर्ण गुरुत्व, पूर्ण है हिंदी मानव।
है पावन अनमोल, हिंद का निर्मल मानव।।
कहें मिश्र कविराय, यहां नहिं हरकत गंदी।
सबके प्रति सद्भाव, सिखाती जग को हिंदी।।
209…. मेरी डायरी (दोहे)
मेरी प्यारी डायरी, दिखे भरे बहु रंग।
सभी पृष्ठ हैं बोलते, खूब जमये भंग।।
दिन प्रति दिन लिखता रहा, कुछ कुछ घटना चाल।
प्रेम और संताप से, पूरित यह मतवाल।।
घटनाएं जब प्रेम की, घटती थीं मुस्काय। प्रेमी लेकर डायरी, लिखता खुश हो जाय।।
पाती पढ़ कर प्यार की, चलता लेखन काम।
स्नेह रत्न का रट लगे, पाए हृदय मुकाम।।
संतापों की मार का, भी होता है जिक्र।
लिख लिख भरती डायरी, मन होता बेफिक्र।।
रंग बिरंगे लोक का, गजब डायरी देख।
विविध रूप के आचरण, का यह नित अभिलेख।।
शोधपरक है डायरी, करती बहुत कमाल।
पा कर अंतर्वस्तु को, शोधछात्र खुशहाल।।
मौलिक तथ्यों से भरा, पड़ा हुआ है लेख।
अंकित सच्ची जिंदगी, की इसमें विधि रेख।।
लिखना पढ़ना डायरी, है बौद्धिक संवाद।
जिसको प्रिय है डायरी, वह रहता निर्वाद।।
प्यारी प्यारी डायरी, लेखन एक विधान।
कागजात यह उर्वरक, देता मौलिक ज्ञान।।
210…. समर्पण (सानेट.. स्वर्णमुखी छंद)
बिना समर्पण नहीं सफलता।
मनोयोग का यह दर्शन है।
सतत क्रिया के प्रति नित स्पर्शन।
भाव समर्पित दिव्य गमकता।
कर्म लक्ष्य जब नित्य दीखता।
कर्त्ता प्रति क्षण आगे भागे।
शुभ आयोजन के प्रति जागे।
कर्मनिष्ठ मन सहज सीखता।
त्यागयुक्त मानव बड़ भागी।
अपने को वह अर्पित करता।
श्रद्धास्पद हो सजग चमकता।
शिव कर्मों के प्रति अनुरागी।
जहां समर्पण भाव विचरता।
सब कुछ संभव वहीं थिरकता।।
211…. मकर संक्रांति (दोहे)
मकर राशि में सूर्य का, होता प्रेम प्रवेश।
रहने को उत्सुक सहज, भास्कर उत्तर देश।।
यह अति पावन काल है, जगती का त्योहार।
प्रिय शुभ का सूचक यही, महा पर्व साकार।।
दान पुण्य का समय यह, गंगा जी में स्नान।
करते सब श्रद्धालु हैं, मिले मुमुक्षी ज्ञान।।
खिचड़ी चावल दाल की, खाते हैं सब लोग।
दे गरीब को अन्न भी, होते दिव्य निरोग।।
घी खिचड़ी में डाल कर, सभी लगाते भोग।
हिंदू सारे विश्व में, करते जन सहयोग।।
परम विराट परंपरा, प्रेमिल स्नेहिल भाव।
मृदुल स्नेह की स्थापना, सबके प्रति सद्भाव।।
मकर राशि है प्रेमिका, प्रेमी सूरज देव।
इस अनुपम मधु मिलन के, प्रति मोहित सब देव।।
दिन प्रति दिन इस पर्व पर, बढ़ता दिखता गर्व।
सब धर्मों के लोक का, यह संक्रांति सुसर्व।।
212…. छोटा कौन बड़ा मानव है?
छोटा मानव है वही, जिसका तुच्छ विचार।
खुद को कहता है बड़ा, करता निंदाचार।।
बड़ा वही धनवान है, जिसमें शिष्टाचार।
अपने को छोटा कहे, करे सभ्य व्यवहार।।
छोटे की पहचान यह, करता मिथ्याचार।
अभिमानी कलुषित हृदय, दुर्जन मन व्यभिचार।।
बड़ा हुआ इंसान वह, जिसमें सच्चा स्नेह।
आत्म भाव भरपूर वह, रहता बना विदेह।।
मानवता से प्रेम ही, बड़ मानुष का भाव।
सहज समर्पण वृत्ति प्रिय, प्रेमिल संत स्वभाव।।
वह मानव इस जगत में, निंदनीय अति छोट।
पहुंचता इंसान को, अनायास है चोट।।
बड़ा अगर बनना तुझे, छोटा बनना सीख।
दर्परहित रहना सदा, परहितवादी दीख।।
अनायास जो दे रहा, सच्चे को उपदेश।
लुच्चा छोटा वह दनुज, कपटयुक्त है वेश।।
बड़ा कभी कहता नही, खुद को बड़ इंसान।
पूजन करता लोक का, जिमि समग्र भगवान।।
अहित किया करता सदा, नित छोटा इंसान।
बड़े मनुज के हृदय में, स्वाभिमान का ज्ञान।।
जिसके दिल में पाप है, उसको छोटा जान।
बड़ा कभी करता नहीं, अपने पर अभिमान।।
213…. जिंदगी इक पहेली है ।
मापनी 212 212 22
जिंदगी इक पहेली है, जान पाना बहुत मुश्किल।
जान लेता इसे बौद्धिक, आत्म ज्ञानी सहज मौलिक।
जान पाये इसे गौतम, बुद्ध रामा सदा कृष्णा।
सब सहे रात दिन झेले, मारते हर समय तृष्णा।
कौन पढ़ता चरित वृंदा, कौन आदर्श को जाने।
सब यहां दीखते जाते, हर समय नित्य मयखाने।
मायका ही सुघर लागे, घर ससुर काटता दौड़े।
धन बहुत की यहां चाहत, पाप की नाव नद पौड़े।
जिंदगी की समझ टेढ़ी, सत्य की खोज है जारी।
आस्तिकी भावना गायब, नास्तिकी सिंधु की बारी।
मोह माया अधोगामी, है भयानक घटा काली।
शान झूठे दिखाता है, आज का मन गिरा नाली।
प्यार के नाम पर धोखा, कायराना लहर चलती।
जेल में सड़ रहा कातिल, जिंदगी हाथ है मलती।
214…. राष्ट्रमान (पंचचामर छंद)
अभिन्न राष्ट्रमान हो यही प्रसिद्ध गान है।
रहे सदैव राष्ट्रध्यान ज्ञान राष्ट्र शान है।
विहार राष्ट्र गेह में करे सदैव चेतना ।
रहे समूल राष्ट्र में सदेह मन जड़ी तना।
समझ स्वराष्ट्र को सदा यही अमोल धान्य है।
करो सदैव प्रेम पाठ राष्ट्र भाव काम्य है।
रहे न हिंसकीय भाव राष्ट्र संपदा बड़ी।
इसे न फूंकना कभी, जले नहीं कभी खड़ी।
यही महान संपदा करो नितांत रक्षणम।
सदा सहायता करो कभी करो न भक्षणम।
समान राष्ट्रवाद के नहीं यहां विभूति है।
मरा जिया स्वराष्ट्र प्रति वही महा विभूति है।
215…. मनसिंधु
नमन करो समुद्र मन मनन करो सचेत हो।
गमन करो विचार कर सदा प्रयोग नेत हो।
तरह तरह सजीव जंतु भांति भांति लोक है।
विचर रहे अनेक रूप राज नग्न शोक है।
विभिन्नता विशिष्टता सहिष्णुता सुशिष्टता।
कठोरता परायता अभद्रता अशिष्टता।
सगुण अगुण निगुण विगुण निरूप रूप रश्मियां।
असीम राशियां यहां अचेत चेत अस्थियां।
सुयोग योग रोग भोग रत्न माल मालिनी।
विराट सृष्टि प्राकृतिक मनोज सिंधु शालनी।
विवेक बुद्धि ज्ञान से करो सदैव मंत्रणा।
चुनो सदा बुनो वही बने सहाय रक्षणा।
पहन सहर्ष मालिका सुरत्निका सुपालिका।
वरण करो सुपात्रता सुशोभनीय न्यायिका।
216…. लकीरें
लकीरें मिटाना लकीरें बनाना,
बनी जो लकीरें उन्हें लांघ जाना,
बहुत श्रम सघन मांगती हैं लकीरें,
लकीरें दिखातीं नवल नव निशाना।
सभी की लकीरें अलग सी अलग हैं,
किसी की लकीरें अकल की नकल हैं,
चला जो अकेला बनाता कहानी,
उसी की लकीरें अचल सी अटल हैं।
उकेरा स्वयं को बढ़ाया कदम को,
दिखाया जगत को स्वयं आप दम को,
उसी की लकीरें दिखाती सुहाना,
सफर को; बतातीं सिखाती सुश्रम को।
बनो वे लकीरें जिन्हें छू न पाया,
जमाना उन्हें देख कर सोच पाया,
बहुत है कठिन पंथ ठोकर बड़े हैं,
लकीरें बनायां वही नाम पाया।
217…. नदियां (दुर्मिल सवैया)
नदियां बहती चलती रहतीं बढ़ती कहतीं रमणीक बनो।
सबका उपकार किया करना रहना जग में प्रिय नीक बनो।
सब सींच धरा खुशहाल करो हरियाल करो सगरी जगती।
रुकना न कहीं चलते रहना अति पावन वृत्ति जगे हंसती।
सब वृक्ष उगें अति हर्षीत हों सबमें मधु पल्लव पुष्पन हो।
सब आवत धाम नदी तट पे सबमें मधु बौर सुगुम्फन हो।
फलदार बनें सब दें जग को फल मीठ अलौकिक है सुखदा।
बन छांव सदा हरते दुःख क्लेश सहायक ग्रीषम में वरदा।
सरयू नदिया मनभावन है वह राम चरण नित धोवत है।
नित गंग नदी शिव शंकर जी कर स्नान शिवा घर सोहत हैं।
यमुना अति निर्मल नीर लिये प्रभु कृष्णन पांव पखारत है।
नदिया प्रिय पावन शारद रूप सदा शिव ब्रह्म बुलावत है।
नदियां सब कोमल ज्ञान भरें अति शुभ्र सनेह लगावत हैं।
हर जीव सुखी नदियां जल पी सब हर्षक गीत सुनावत हैं।
पुरुषार्थ चयुष्ठय दान दिया करती नदियां हर जीवन को।
सबसे मिलती सबको मिलती करतीं वरुणा करुणा मन को।
218…. मां सरस्वती जी की वन्दना
सदा रहे प्रसन्न मात शारदा सरस्वती।
विवेक हंसवाहिनी शुभांगना यशोमती।
सदैव ज्ञानरूपिणी प्रियम्वदा सदा सुखी।
सुयोग योगधारणी अनंतरा बहिर्मुखी।
सदा सुखांतकारिणी दयानिधान दिव्यदा।
हरें सकल कुदृष्टि भाव बुद्धिदात्रि शारदा।
बनें सहस्र लेखनी लिखा करें घनाक्षरी।
सुगीत गायनादिका रचें सदा महेश्वरी।
सुपुस्तिका बनी खिलें चमक बिखेरती रहें।
सुबोधगम्य भारती सरस सलिल बनी बहें।
तुम्हीं सुप्रीति गीतिका मधुर ऋचा बसंतिका।
उदार चेतना समग्र माधुरी अनंतिका।
विराट ब्रह्मरूपिणी सुसांस्कृतिक धरोहरा।
सनातनी सुधर्मिणी सुनामिनी मनोहरा।
अजेय देव देविपुंज देवघर दयालिनी।
अनंत नेत्र आनना सुडौल रूप मालिनी।
पराक्रमी महान वीर भूमि युद्ध पावनी।
मधुर वचन सुभाषिणी अनूप भाव सावनी।
सुपाणिनी सुग्रंथिका सुवीणपाणि शारदा।
अमोल अमृता बनो सुगंध ज्ञान दानदा।
सुधा समुद्र रूप खान हो अजर अमर तुम्हीं।
रहे स्वतंत्रता सदा निहारती रहे मही।
स्वतंत्र देश भारतीयता बनी रहे यहां।
बसंत ऋतु स्वराज राग काम्य पुष्प हो यहां।
219…. मुहब्बत
ग़ज़ल लिख रहा हूं सजल लिख रहा हूं।
मुहब्बत सुरीली तरल लिख रहा हूं।
बहुत कुछ यहां किंतु मिलते कहां हैं।
मुहब्बत रसीली सरल लिख रहा हूं।
सदा खोजता मन खिलौना सुहाना।
मुहब्बत रवानी अमल लिख रहा हूं।
बहुत याद आते चहेते सुनहरे।
रुपहली मुहब्बत कमल लिख रहा हूं।
सजा मन थिरकता इधर से उधर तक।
चहकती मुहब्बत अटल लिख रहा हूं।
अकेले अकेले नजर दौड़ती है।
समायी मुहब्बत अचल लिख रहा हूं।
परेशान मन ढूढता है ठिकाना।
मुहब्बत सुघर को मचल लिख रहा हूं।
मिलेगी मुहब्बत जरूरी नहीं है।
लगा कर अकल मधु सकल लिख रहा हूं।
नहीं निर्दयी है मुहब्बत कुमारी।
कलम चूम लेगी सफल लिख रहा हूं।
220…. संयम (मालती सवैया)
संयम योग विधान महान सदा सुखदायक भाव जगावे।
मानस को अति शुद्ध करे हर भांति कुरोग असत्य भगावे।
सुंदर हार्दिक रूप गढ़े प्रिय मानव भाव सुशील बनावे।
मूल प्रवृत्ति अपावन को यह उत्तम मोहक राह बतावे।
यंत्र महान निरोध करे मन को अति शीतल शांत करावे।
तारक संकटमोचन संयम दिव्य स्वभाव अभाव भगावे।
संत सभी उपयोग करें मुख से सब शोधित बात सुनावें।
हंस बने विचरें जग में सबको मधु रूपक मंत्र सिखावें।
कानन मंगल गायन हो सबमें रसराज बसंत दिखेंगे।
मोहन कृष्ण बने मुरलीधर योग सुसंयम नित्य लिखेंगे।
221…. ओस की बूंद
ओस की बूंद का हाल पूछो नहीं, औषधी से भरी यह अमी रस विमल।
रात की वायु हो नम बनी नीर कण अति सुनहरी सलोनी निखरती सजल।
देख इसको लगे शुभ्र मोती महल यह प्रकृति की रुहानी अदा है धवल।
तृप्त होता नहीं मन कभी ओस से पेट भरता नहीं है कभी भी चपल।
मूल्य इसका समझना बहुत है कठिन जीवनी लिख रही यह बहुत काल से।
जिन्दगी बन मचलती सदा स्वस्थ कर मुक्ति देती सभी को महा काल से।
घास पर बैठ हंसती सदा गीत गा स्वर्ण युग को दिखाती धरा पर सदा।
देख इसको पथिक मुग्ध हो कर खड़े आंख की रोशनी को बढ़ाते सदा।
भेंट अक्षुण्ण निरोगी करे जीव को ओस संघर्ष का फल मनोहर सदा।
प्राकृतिक साधना से दमकती यही ओस निर्मल सुघर सुंदरी है सदा।
222…. सहानुभूति (पंचचामर छंद)
दुखी मनुष्य देख कर दुखानुभूति जो करे।
महा विभूति लोक में वही मनुष्य शिव हरे।
यही अमर विवेक है परार्थ चाव भाव हो।
दिखे मनुष्य की व्यथा यही परम स्वभाव हो।
जिया स्वयं समूल स्वार्थयुक्त है मनुष्य क्या?
नहीं किया परोपकार है कभी मनुष्य क्या?
जिसे न ज्ञान और का पिशाच जान है वही।
मिटा रहा निजत्व को मशान पर पड़ा वही।
अशोभनीय स्वार्थ मन नहीं उदार वृत्ति है।
क्षमा नहीं दया नहीं कठोर चित्तवृत्ति है।
सहानुभूति भावना कभी न लेश मात्र है।
परानुभूतिबुद्धिशून्य भग्न नग्न पात्र है।
करुण जहां कहीं नहीं भयंकरा निशाचरा।
सुबुद्धि निर्मला अनंत दिव्य प्रेम दायरा।
223….. कली (पंचचामर छंद)
कली चली अनादि से अनंत सैर के लिए।
रुकी नहीं कभी कदा सुखांत खैर के लिए।
पथिक बनी शुभांगना सुकोमली सुदर्शिनी।
उदीयमान दिव्यमान भव्यमान शालिनी।
लिये उदर सुपुष्प मालिका सदा सुहागिनी।
फली कली अली बुला रही सहर्ष रागिनी। किया करे प्रदक्षिणा बढ़े चढ़े सुदेव को।
बनी सुगंधिता सजे ललाट विश्वदेव को।
कली भली कुलीन तंत्रिका सदैव कामिनी।
दयालु भाव देख लख प्रसन्नचित्त यामिनी।
गगन निहारता सदा अमी चमन विलोकता।
मधुर मधुर महक रही कली कुमारि लोचता।
224…. तेरी चूड़ियां
चूड़ियां खनक रहीं मचल रही सुहागिनी।
चूड़ियां चमक रहीं बजा रही सुकामिनी।
देख देख रूप रंग विश्व सर्व मुग्ध है।
चूड़ियां थिरक रहीं सुगोल गोल गामिनी।
दर्शनीय वंदनीय शोभनीय चूड़ियां।
लाल लाल पीत पीत नीक नीक चूड़ियां।
नेत्र सुख सदा अनूप प्रेम दृष्टिदायिनी।
मस्त मस्त चाल ढाल गोपि नृत्य चूड़ियां।
झांक झूंक आदमी विलोकनीय चूड़ियां।
रास रास रंग भूमि नाटकीय चूड़ियां।
खोय खोय होश को अमूर्त देह आदमी।
पूड़ियां खिला रही सदा बहार चूड़ियां।
225…. रिश्तेदार (दोहे)
रिश्ते नाते स्रोत से, बहे सुगंध बयार।
सहज महकते हैं सतत, मोहक रिश्तेदार।।
रिश्तेदारी से बड़ा, नहीं और सम्बंध।
मिलने पर आती सदा, अनुपम स्वर्गिक गंध।।
सुख की चाहत है अगर ,खोजो रिश्तेदार।
कठिन घड़ी में ये स्वयं, करते नैय्या पार।।
अच्छे रिश्तेदार प्रिय, लगते हैं भगवान।
दिल से करते मदद हैं, तन मन धन का दान।।
खुशियां मिलती हृदय को, मानस होय प्रसन्न।
रिश्तेदारों के मिलन, से घर सुख संपन्न।।
रिश्ते जितने मधुर हों, उतना ही आनंद।
उत्तम रिश्तेदार हैं, इस जीवन में चंद।।
शुभ भाग्यों के उदय से, मिलते रिश्तेदार।
मानवीय सत्कृत्य से, है रिश्तों का तार।।
226…. प्रियतम (दोहे)
प्रियतम को समझो सदा, वे हैं अमृतभोग।
रहना उनके संग नित, काटेंगे सब रोग।।
जो प्रियतम को मानता, करता है विश्वास।
रहता सतत प्रसन्न अति, होता नहीं उदार।।
प्रियतम से ही बात हो, कभी न छोड़ो संग।
मस्ती में जीवन चले, मस्त मस्त हर अंग।।
प्रियतम ईश्वर रूप है, मधुर दिव्यअनमोल।
आजीवन सुनते रहो, मीठे मधुरिम बोल।।
रख प्रियतम को हृदय में, रहे उन्हीं पर ध्यान।
राधा कान्हा प्रेम का, यह अति सुखद विधान।।
प्रियतम को जो चूमता, डाल बांह में बांह।
वह शीतल मधु लोक का, पाता हरदम छांह।।
227…. कन्या लक्ष्मी रूप है ।
कन्या के सम्मान से, यश वैभव की वृद्धि।
बढ़ता घर परिवार है, होती धन की सिद्धि।।
कन्या धन सर्वोच्च का, हो अनुदिन सम्मान।
रक्षा करना हर समय, हो उस पर ही ध्यान।।
मन में हो कटिवड्ढता, हो दहेज काफूर।
वैदिक पद्धति से सहज, हो विवाह भरपूर।।
वर के अभिभावक करें, उत्तम शिष्टाचार।
हो दहेज के नाम पर, कभी न अत्याचार।।
संवेदन को मार कर, मानव करता लोभ।
गला घोटता हृदय का, किंतु न होता क्षोभ।।
ले दहेज की राशि को, कौन बना धनवान?
करो भरोसा कर्म पर, बनो विनीत महान।।
कन्या के सम्मान से, होता घर खुशहाल।
जो दहेज के लालची, वे दरिद्र वाचाल।।
मानवता का पाठ पढ़, कभी न मांगो भीख।
मत दहेज याचक बनो, ठग विद्या मत सीख।।
जो दहेज को मांगता, वह दरिद्र इंसान।
इस अधमाधम वृत्ति से, कौन हुआ धनवान??
ईश्वर के आशीष से, मनुज होय धनवान।
जो दहेज से दूर है, वह मोहक इंसान।।
जो दहेज के नाम पर, करता है व्यापार। अत्याचारी नीच का, मत करना सत्कार।।
मत दहेज लेकर कभी, बन पूंजी का बाप।
करो अनवरत रात दिन,आत्मतोष का जाप।।
कन्या खुद में मूल्य है, प्रिय लक्ष्मी की मूर्ति।
कन्या को ही पूज कर, हो इच्छा की पूर्ति।।