20 मात्राओं के छंद
20 मात्राओं के 6 छंद
योग, 12/8 यति अंत यगण आदि गुरू।
योगी छंद 10/10 पर यति
मापनी मुक्त मात्रिक
सभी समकल
शास्त्र,12/8 यति।अंतगुरू
लघु
हंसगति11/9 यति अंत भगण
मंजुतिलका 12/8अंतजगण
अरुण 5/5/10 यति
अंत में गुरू लघु गुरू
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योग छंद
12/8अंत यगण आदि गुरू
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मोहन की यादों में ,साल बिताये।
भूल श्याम कर वादा,लौट न आये ।
प्राण तजूँ विष खाकर , मरूँ सखी री ।
किंचित ना अब देरी ,करूँ सखी री।
योगी छंद
मोहन की वंशी सबके मन भाती।
तबतो उसकी सुधि, सबको नित आती।
हम सबको भूलें,कैसे उसको भूलें।
मन चाहे खग बन, उड़कर जा छूलें।
शास्त्र छंद
मापनी युक्त मात्रिक
12/8 अंत गुरू लघु
1222,1222,1221
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अभी से आस तजके, छोड़ मत प्राण।
कभी भी वे पधारें, करें कल्याण।
छिपाये से छिपे ना, प्रेम का रोग ।
पता चलते बिरज में,हँसे सब लोग।
हंसगति
मापनी मुक्त
11/9 दोहे का सम चरण हंस गति का पहला चरण होता है । अंत 211 या 112
या 22 सभी मत हैं ।
यति के पूर्व व पश्चात त्रिकल(21 यति 12 उत्तम )
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जल बिन जैसे मीन, भईं सब सखियाँ।
नैनन आँसू बहे, बहीं ज्यों नदियाँ।
कैसे बरनें हाल, दुखी सब मनमें।
नाम मात्र ही प्राण, बचे हैं तनमें
ऊधो की यह बात, सुनी मुस्काने।
प्रेम पंथ की रीत, सखा अब जाने।
आती ब्रज की याद,इसी से भारी।
करते मुझसे नेह, सभी नर नारी।
प्रेम ज्ञान से खूब, बड़ा है भैया।
सकता कैसे भूल,यशोदा मैया।
प्रेम सदा अनमोल, तुले ना तौले ।
प्रेम रूप भगवान, उजागर बोले ।
मंजुतिलका छंद
12/8 पर यति
अंत में लघु गुरू लघु
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जिनके हिय सदा करें, रामजु निवास।
पास आत संकट सब, होवें उदास ।
प्रेम प्रभू चरणों में, जिनका प्रगाढ़।
उसका यह दुनियाँ क्या सकती बिगाड़।
इस कारण काम छोड़, भजिये जरूर।
तन धन का जो भी है, तजिये गुरूर।
मुश्किल से मिला हमें, यह नर शरीर।
जग के लाखों तन में,तुम हो अमीर।
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अरुण छंद 20 मात्राएँ
5/5/10पर यति
अंत में गुरू लघु गुरू
राजस्थानी धरा
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नर लडे, जंग की, खेलकर पारियाँ ।
तो कहाँ , कम रहीं देश की नारियाँ।
फूल सी, देह को, आग में राख की ।
प्राण दे,आन रख वीर कुल, शाख की।
दुष्ट से, दुष्ट भी,सामने आ डरा।
शौर्य से है भरी राजपूती धरा।
धन्य है धन्य है खास इतिहास को।
जो किया,है सदा, पुष्ट विश्वास को।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
4/7/23