मुफ्त राशन के नाम पर गरीबी छिपा रहे
मुझे ‘शराफ़त’ के तराजू पर न तोला जाए
जीवन है बस आँखों की पूँजी
लहरों ने टूटी कश्ती को कमतर समझ लिया
वक्त बर्बाद मत करो किसी के लिए
कितनी अजब गजब हैं ज़माने की हसरतें
अपूर्ण नींद और किसी भी मादक वस्तु का नशा दोनों ही शरीर को अन
मेरे दिल के खूं से, तुमने मांग सजाई है
आखिर तेरे इस हाल का, असल कौन जिम्मेदार है…
If you have someone who genuinely cares about you, respects
मैं पापी प्रभु उर अज्ञानी
साहित्य में बढ़ता व्यवसायीकरण
किसी भी बहाने से उसे बुलाया जाए,
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला,
मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि दुनिया में जितना बदलाव हमा