#दोहे
इतनी भी मत चोट दो , भूलें हम अहसास।
खेलें हों जो मौत से , होते नहीं उदास।।
गूँगे बहरे लोग हैं , भाषण देना व्यर्थ।
बिन जिह्वा के स्वाद का , नहीं मिलेगा अर्थ।।
एक यत्न तू और कर , होना नहीं निराश।
शायद अंतिम गाँठ हो , तेरी जिसे तलाश।।
स्वप्न अँगारें हैं लिए , मत बन तू कमजोर।
एक सफलता जो मिली , होगा तेरा शोर।।
सफ़र अकेले कर सदा , ख़ुद से रख उम्मीद।
आँखें खोलोगे तभी , सुंदरता का दीद।।
रोकर कुछ कहना नहीं , हिम्मत से कर बात।
आँसू बनते हास जग , करे कला सुख ज्ञात।।
डर का कचरा फैंक दो , ओज-सूर्य लो हाथ।
आँख उजाला हो तभी , राहें देंगी साथ।।
#आर.एस.’प्रीतम’
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