2) इक तेरे न आने से…
इक तेरे न आने से
शाम भी न आई हो,
ऐसा भी नहीं…
हाँ, आई थी शाम,
मगर रंगीन नहीं थी वह।
शाम तो थी मगर,
वो चाय की प्याली नहीं थी,
न ही थी वो प्यार भरी गुफ्तगू।
हाथ नहीं था हाथों में,
आँखें नहीं थीं आँखों में,
नहीं था वह बात बात पर रूठना,
वो मनाना इक दूजे का नहीं था।
नहीं था वो मज़ाक, वो दिल्लगी,
वो सताना एक दूजे का नहीं था।
नहीं था वो एक दूजे में खो जाना,
बेजान लम्हों में ज़िंदगी भर देना नहीं था।
हाँ, नहीं था यह सब…
वरना शाम तो आई थी।
हाँ,
तेरे न आने से शाम न आई हो,
ऐसा भी नहीं।
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नेहा शर्मा ‘नेह’