(19) तुझे समझ लूँ राजहंस यदि—-
तुझे समझ लूँ राजहंस यदि क्षीर नीर से अलग करे
तुझे समझ लूँ चातक यदि स्वाति जल की पहचान करे
तुझे समझ लूँ अमृत यदि निष्प्राण देह में प्राण भरे
तुझे समझ लूँ ख़ास ख़ास को अगर ख़ास तू समझ सके |
क्या है ख़ास अगर स्पर्धा में मानवता तज बैठे ?
अगर स्वार्थ के पैरों नीचे न्याय भाव को कुचल उठे ?
अगर शब्द की चतुराई से मासूमों के दिल रौदे
अगर छलों के चक्रव्यूह में अभिमन्यु के सर रौदे
नहीं ख़ास यदि ताकत के बल पर निर्बल को रौंद दिया
नहीं ख़ास यदि धन बल से निर्बल चरित्र को उठा दिया
नहीं खास यदि सम्मोहन से अपनी मनमानी कर ली
नहीं ख़ास यदि बल के आगे आँखें , गर्दन नीचे कीं
तुझे समझ लूँ देव अगर तू भाव अभावों में भर दे
तुझे समझ लूँ ईश अगर करुणा को एक अश्रु जल दे
तुझे समझ लूँ ब्रह्मा यदि मानव मन में अमृत भर दे
और विश्वकर्मा यदि दुःख की सहनशक्ति उन्नत कर दे
तब भी समझूँ ख़ास तुझे यदि साधारण जीवन जी ले
तब भी समझू ख़ास अगर मन को अपने सच्चा रख ले
तब भी ख़ास किसी कौशल को अगर नयी ऊंचाई दे
तब भी ख़ास अगर नैसर्गिक भावों को जीवित रख ले
तुझे समझ लूँ ख़ास ख़ास को अगर ख़ास तू समझ सके |
स्वरचित एवं मौलिक
रचयिता : (सत्य ) किशोर निगम