(18) छलों का पाठ्यक्रम इक नया चलाओ !
छलों का पाठ्यक्रम इक नया चलाओ !
कोई उलझा कोई सुलझा ,
जो सुलझा , वह ज्यादा उलझा !
कोई सच्चा , कोई झूंठा ,
जो सच्चा वह ज्यादा टूटा।
कोई दयामय, कोई निष्ठुर,
जो निष्ठुर है, वही सफल अब।
आदर्शों से प्रेरित है जो
विपदाओं से वही ग्रसित अब।
झूँठ सिद्ध होती कहावतें
फिर भी दोहराई जाती हैं।
ढोंगी की हैं अस्त्र शस्त्र सब ,
सच्चे को ही धर लेती हैं।|
यह कैसी दुनिया हो बैठी ?
क्या ये सदा से ही ऐसी थी ?
या विकास कर बैठी दुनिया
पहले भैस झील बैठी थी ?
कर्म-फल-सिद्धांत के लिए,
“पूर्वजन्म” की तुम्हें जरुरत ।
सज्जन की विपत्ति की व्याख्या
हेतु “भाग्य” की तुम्हें जरुरत।
“ईश्वर फल देगा ” कह कर
छले गए को दिया दिलासा
उसे मिला यह काहे का फल ?
नहि उत्तर की कोई आशा।
” कर्म करो निष्काम भाव से ”
क्यों कृष्णा अर्जुन से बोले ?
कहाँ ऊर्जा, कहाँ जोश यदि,
कर्म किये सब निरुद्देश्य से ?
“भाग्य” किसी का किसको मालुम ?
फिर ये कैसे अंश तर्क का ?
सदा सफलता ही सराह्य है
क्या मन से इंकार किसी का ?
एक निकलता बस विकल्प है,
सरल नहीं , असरल हो जाओ।
छल से बचने हेतु छलों का
पाठ्यक्रम इक नया चलाओ ।
सी बी आई की ट्रेनिंग अब
हर बच्चे के कोर्स में कर दो
मनुस्मृति को हटा, कोर्स में
चाणक्या की नीति पढ़ाओ।
कह सकते हो उन्हें अनैतिक ?
वो इतिहास पुरुष हैं मानित।
मनु तो केवल एक मिथक हैं ,
वेद पुराणों में हैं वर्णित। |
जिनके अर्थों को कोई भी
सिद्ध नहीं कर पाया अब तक।
चन्द्रगुप्त-साम्राज्य, विदेशी
भी करते रहते हैं स्वीकृत।|
नहीं कर रहा मैं मजाक, या
व्यग्य न समझो इसको भाई।
मैंने तो प्रायोगिक जग को
देख यही हल पाया भाई।|
बहुत अधिक संभव है इससे
बच्चे झूंठे बन जाएंगे।
तो क्या ?— इस झूंठे जग में वे ,
सच की एक राह पाएंगे।
यह प्रतिस्पर्द्धा का युग है,
औ ‘ यही रहेगा — यह लगता है
सरल यहां पर सदा पिसेगा,
चतुर हुआ जो वह जीतेगा।।
सरल यहां पर सदा पिसेगा,
चतुर हुआ जो वह जीतेगा।।
स्वरचित एवं मौलिक ( फेसबुक प्रोफाइल Kishore Nigam से )
रचयिता : (सत्य ) किशोर निगम