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11 Jun 2023 · 2 min read

(17) यह शब्दों का अनन्त, असीम महासागर !

यह शब्दों का
अनन्त, असीम महासागर
फेसबुक, गूगल,व्हाट्स ऍप, विकिपीडिया, ट्वीटर
लाखों लिंक, लाखों प्रोफ़ाइल , करोडो पेज,
लाखों ग्रुप, आर्काइव , साइट्स सहस्र शत,
लाखों ज्ञान , विज्ञानं , करोड़ों प्रतिज्ञान ,
लाखों पत्रिकाएं, पुस्तकें, न्यूजपत्र
ये ग्लोबल बाज़ार , राजनीति के युद्धक्षेत्र
ये धर्मों के महामंदिर, एनजीओज के कर्मक्षेत्र
ये करोड़ों वीडियो , ये लाखों महाविद्यालय
ये ज्ञान का महाविस्फोट, ये नए आगम औ’ वेद
ये नए महाकाव्य , ये कोटि यज्ञ वेदियाँ
सोशल मीडिया के ये महा महा महा प्रयास
अनवरत , बिना थके , कर्मनिरत महाबाहु
मानवमात्र का दुःख-बस मिटाने को । ।

किन्तु यह मानव तो भीषण प्रकृति के बीच
अब भी खड़ा है बेबस सा वस्त्रहीन
वेदनाओं के अपार महासागर में
टूटी पतवार लिए , व्याधि-ग्रसित दीन-हीन । ।

मानवमात्र पीड़ित था — ‘ दिमाग के कचरे को
फेंकने को कहीं , कोई मलवाघर मिले ‘ |
मिल गया, —– अब तो सुकून सब ओर है | |
श्रेष्ठ रचनाओं के प्रकाशन को, प्रकाशक की ,
छलना औ ‘ चिरौरी का स्कोप कम हो गया ,
‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ घर बैठे बन गया है ।
छपास की भड़ास को अब रास्ता नया मिला ,
नए -नए सम्बन्ध अब रोज बनने लगे ,
युवा -इच्छाओं का पूर्त्ति-द्वार खुल गया है ।
औपचारिकता तो पग- पग पर यहाँ
किन्तु क्या सहिष्णुता की झलक दिख पाती है ?
‘लाइक’ तो सुबह से रात तक लगातार
किन्तु क्या स्वस्थ समालोचना मिल पाती है ?
हर विचार- शोध , किसी दल से जुड़ जाता है ,
कहाँ अभिव्यक्ति की आजादी मिल पाती है ?
कल-कल – कल बहते है नदी झरने यहां ,
सूँघो तो साँस में बदबू भर जाती है ।|

“शब्द ही ब्रह्म है ” — समझाया गया था कभी
” शब्द की सामर्थ्य से ब्रह्माण्ड हिल जाता है । ”
किन्तु यहॉं शब्दों का अनन्त अति भीषण घोष
आत्मा का फिर भी न पत्ता हिल पाता है ।
कभी मात्र एक वाक्य प्रेमपात्र का पकड़
प्रेमी सब जिंदगी न्यौछावर कर जाता था ,
आज रात- दिन मोबाइल सटा कानों से ]
प्यार एक माह भी न लम्बा खिंच पाता है ।
हजारों सम्बन्धों में न ऐसा एक भी दिखे ,
आत्मा की रगों में जो सहज समा जाता है ।
मौन प्यार- विश्वास कुटुंब में जो स्थिर था ,
“यह दिवस ” ” वह दिवस ” की नाली बह् जाता है ॥

नहीं उपयोगिता से इनकी इंकार कहीं
फिर भी क्या बहुत कुछ खो नहीं बैठे हम ?
कहीं कुछ शोधों नया , कोई संशोधन करो
अमृत जो खो बैठे, फिर उसे पाएं हम ॥

स्वरचित एवं मौलिक
रचयिता : (सत्य ) किशोर निगम

Language: Hindi
181 Views
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