(15) ” वित्तं शरणं ” भज ले भैया !
मत उलझो, मत सोचो भैया
तुमसे न हो पाएगा भैया
तुम्हरे ढिंग “वित्तं” है भैया ?
जो जनता को मोह ले भैया ?
पल्टीमारी सीखी भैया ?
पेट समुन्दर तुम्हरो भैया ?
सुवर बाल का आँख में भैया ?
सांठ गाँठ के हुनर है भैया?
नस नस झूंठ भरी है भैया ?
लम्बा तिलक , मधूरी बानी
तुम्हारे पास न दिखती भैया
छोडो, कछु न सोचो भैया
तुम्हरे पास न “वित्तं” भैया
तुमसे न हो पइहै भैया ||
“ऊँचो वंश” कहाबो चाहो
टेंट में राखो “वित्तं ” भैया
पंडित ज्ञानी बनबो चाहो
टेंट में राखो “वित्तं ” भैया
गुनी पारखी बनबो चाहो
टेंट में राखो “वित्तं ” भैया
भाषण कला सीखिबो चाहो
टेंट में राखो “वित्तं ” भैया
सिलेब्रिटी जो बनबो चाहो
टेंट में राखो “वित्तं ” भैया
कनक कामिनी रखिबो चाहो
टेंट में राखो “वित्तं ” भैया
दुनिया में जितने भी गुन हैं
जितने भी आनंद है भैया
मनी मनी से सब मिल जाएँ
कछू न दुर्लभ होवें भैया
मगर बिना वित्तं के कउनो
मनी नाहि मिल पावे भैया
ये वित्तं तो दैव ही देवें
जन्मजात ये गुन है भैया
रूखी सूखी प्रेम से खाके
ठंडा पानी पी लो भैया
हमरे तुम्हारे के बस नाही
ओढ़ के चादर सो जा भैया
तऊ न मन को दुःख जावे तो
मन्त्र महामणि जप ले भैया
“वित्तं शरणं , वित्तं शरणं
वित्तं शरणं ” भज ले भैया ||
स्वरचित एवं मौलिक
रचयिता : (सत्य ) किशोर निगम
प्रेरणा / भावानुवाद : —
“यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः
स पण्डित: स श्रुतवान् गुणज्ञः ।
स एव वक्ता स च दर्शनीयः
सर्वे गुणाः कांचनमाश्रययन्ति ॥”