15 अगस्त , स्वतंत्रता का पर्व
बहुत देखी गमगीन गुलामी आजादी के वीरों ने
कतरा कतरा बहा दिया भारत माता के चरणों में
भारत देश हमारा सोने की चिड़िया कहलाता था
देश का परचम खुले गगन में लहर -लहर लहराता था
आजादी का अखण्ड दीप तब नित नवनित होकर जलता था
सतयुग ,त्रेता ,द्धापर युग का संस्कार तब मन में बसता था
राम कृष्ण के पद चिन्हों पर हर मानव अपनी रचना रचता था
आया कलियुग कुटिल नीति का दुश्मन ने पासा खेला
भारत माता के चरणों को अपनी गद्दारी से तोला
हुये आक्रमण बार बार दुःख की काली बदरी छाई
व्यक्तिवाद और राष्ट्रवाद की भयंकर हुई लड़ाई
देशभक्ति और आजादी की तब हमने कसमें खांई
खूब लड़ी मर्दानी तो पद्मावती ने जौहर दिखलाया
छँटा अँधेरा गुमनामी का ,वीरों का बलिदान हुआ
भारत माता की आजादी के लिए भारी एक संग्राम हुआ
हुआ उदित सूर्य 15 अगस्त को ,धूप सुनहरी बिखर गई
धरती से अम्बर तक नभ में प्यारी लाली छाई
वीरों का बलिदान अमर करने की अब अपनी बारी आई
उठा शस्त्र अब प्रेम अहिंसा का लोगों में उन्माद भरो
हो कहीं न अब खून की होली
दीवाली के दीप जलें
आओ अथक प्रयासों से इस देश की नींव भरें
पुनः जगा दें गाँधी सुभाष और तिलक की भावना जन जन में
देश भक्ति का राग निहित हो हर मानस और जन जन में। ।