142. बहुत खाया है धोखा
यारों मैंने इश्क में,
बहुत खाया है धोखा ।
प्रेम करने से मुझे आजतक,
किसी ने नहीं रोका ।।
इसी भुलभुलैया में उसपे,
प्यार मेरा बढता गया ।
मुझे लगा वो भी, प्रेम करती है मुझसे,
इसलिये, प्रेम का नशा चढ़ता गया ।।
क्या पता मुझको कल,
परिणय सूत्र में बँधकर भी,
मिलेगा उससे धोखा ।
एक झटके में, दिल तोड़ दी उसने,
जैसे आँधी का झोंका ।।
दिल टूटा तो धैर्य बाँधकर,
मैं अंदर अंदर बहुत रोया ।
किसी को कुछ नहीं बताया,
मैंने क्या पाया क्या खोया ।।
सुनने वाला कोई नहीं था,
किसे सुनाता दर्द ।
सुनकर भी क्या करता कोई,
वो बन जाता हमदर्द ।।
कवि – मनमोहन कृष्ण
तारीख – 20/04/2020
समय – 02 : 23 ( रात्रि )