1222: 1222: 122, तलाश आया हूँ
तुफानों का गजब मंजर नहीं है
इसीलिए खौफ में ये शहर नहीं है
तलाश आया हूँ मंजिलो के ठिकाने
कहीं मील का अजी पत्थर नहीं है
कई जादूगरी होती यहाँ थी
कहें क्या हाथ बाकी हुनर नहीं है
गनीमत हर मरीज यहाँ सलामत
अभी बीमार चारागर नहीं है
दुआ मागने की रस्म अदायगी में
तुझे भूला कभी ये खबर नही है
रहजनों से घिरा होता जो रस्ता
यकीनन राह वो पुरखतर नहीं है
खुशबुओं की इबादत में लगा रह
हवा झोका न सोच इधर नहीं है
जमीन से वो दिखे है चाँद माफिक
मेरी सठियाई सी तो उमर नहीं है
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग छत्तीसगढ़