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मुझे जब भी तुम प्यार से देखती हो
लगे तुम किसी फूल की पंखुड़ी हो
नजाने मैं क्या हूँ तुम्हारे लिए पर
मेरे वास्ते तुम वजह आख़िरी हो
ज़हन मेरा है तीरगी का मुसाफ़िर
महकती हुई तुम शब-ए-चाँदिनी हो
ज़माना यक़ीनन है झूठा फ़रेबी
ख़रा सोना हो तुम हाँ सौ-फ़ीसदी हो
कहूँ और क्या ही तुम्हारे लिए मैं
अमावस में भी रात तारों-भरी हो
-जॉनी अहमद क़ैस