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23 May 2024 · 1 min read

10 अस्तित्व

जब जब ढूंढा अपना अस्तित्व,
तुम्हारा अस्तित्व स्मरण हो आया।
काल सर्प उभरे जब भी प्रश्न बन ,
उत्तर में तुम्हारा अस्तित्व नज़र आया ।
अस्सहाय सी लड़खड़ाने लगती हूं जब,
स्मृति के सागर में गोते खाती हूं।
प्रयास ऊपर उठने का करती हूं जब,
नाव बनकर तुम्हारा अस्तित्व उभरता है तब ॥ ढूंढती हूं अपने अस्तित्व के खो जाने का कारण, खोखली, अधटूटी, अधजली, जर्जर दीवारों _
के मलबे तले अकारण दबा पाती हूं,
नहीं दफ़नाया होगा इसे तुमने या उसने ,
स्वयं, अपने ही अस्तित्व से दबा पाती हूं।।
स्वयं, अपने ही अस्तित्व से दबा पाती हूं।। ———————*******———————

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