[06/03, 13:44] Dr.Rambali Mishra: *होलिका दहन*
[06/03, 13:44] Dr.Rambali Mishra: होलिका दहन
होलिका दहन करो बुरी प्रवृत्ति मार कर।
धर्म का वकील बन अधर्म को नकार कर।।
दर्प मद अहं जले धरा शरीर निर्मला।
कालिमा मिटे सदैव भक्ति भाव उज्ज्वला।।
शोध सत्य पुण्य काम पाप को विनष्ट कर।
साध्य शिव शिवत्व हो कुभाव को नकार कर।।
पूजनीय देव वृत्ति त्याज्य दैत्य दोष हो।
कामना अनंत नाम विष्णु शब्द कोश हो।।
जीव ब्रह्म एकता बनी रहे सदा यहां।
होलिका जला करे मरा करे सदा यहां।।
द्वेषवृत्तिनाशिनी विचारणा अमर रहे।
प्रेम भाव धारणा सदा बनी अजर रहे।।
काम क्रोध मोह भोग का दहन सदा करो।
योग क्षेम धर्म कर्म का वहन सदा करो।।
दर्शनीय मित्रता सुसाधुता बनी रहे।
आत्म रुप शोभनीय मुक्तबोधिनी रहे।।
रोम टेढ़ हो नहीं कभी सुसत्य गेह का।
नाश हो अनिष्ट हो सदैव होलि देह का।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[07/03, 16:54] Dr.Rambali Mishra: सुकून
जब मन करता सब्र है, मिलता बहुत सुकून।
केवल उतना काम हो, जितना चढ़े जुनून।।
बेसब्री बेकार है, इससे होय तनाव।
ताव चढ़े तो काम कर, यह है उत्तम नाव।।
हो सुकून की जिंदगी, यदि आए संतोष।
आपाधापी में सदा , रहता है आक्रोश।।
जिसको सुख की चाह हो, रखे भाव निरपेक्ष।
संघर्षों से जूझता, प्रतिद्वंदी सापेक्ष।।
सहनशीलता से सहज, मिलता सतत सुकून।
आत्मतोष प्रिय पंथ ही, जीवन का कानून।।
अपने में ही मस्त जो, करता सारे काम।
उसका जीवन सुखद हो, पाता नित विश्राम।।
प्यासा जो है भागता, करता अपना अंत।
मिलता नहीं सुकून है, रहता दुखी अनंत।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[08/03, 19:24] Dr.Rambali Mishra: नारी शक्ति
नारि शक्ति को नहीं समझ सका मनुष्य है।
सर्व भाव के समक्ष कब टिका मनुष्य है।।
नारि सर्व शक्तिमान हिम समान दृढ़ अटल।
वीर अंगना सहस्र शैलजा निडर अचल।।
अक्ष वक्ष उच्चता ललाट भाल स्वस्तिका।
शोभती सुभागिनि समेत सुष्ठ मस्तिका।।
ज्ञान युक्त मुक्त दान प्रेम बीज धरिका।
प्यार रूपिणी दयालु ढेर स्नेहकारिका।।
हारती कभी नहीं बढ़ा कदम रुके नहीं।
ठानती जिसे उसे पछाड़ती झुके नहीं।।
आलसी कभी नहीं अदम्य साहसी सदा।
दुर्ग कालिका स्वयं अपार शौर्य सर्वदा।।
बहु मुखी अजेय तेज रूप रंग मोहिनी।
न्यायप्रिय सुधरिका सुनीति विज्ञ बोधिनी।।
भेजती अदृश्य प्रेम पत्र सृष्टि को सकल।
पालती सुपोषती हृदय मधुर अटल अकल।।
स्तुत्य सर्व काल से अनादि अंतहीन हो।
वैष्णवी सुसंपदा कभी नहीं अधीन हो।।
ज्ञानदायिनी समस्त रोग भोग मुक्तिका।
गीत मीत प्रीत नीत रीत दिव्य सूक्तिका।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[09/03, 10:43] Dr.Rambali Mishra: जुनून
चढ़ गया नशा बहुत अधीर आज मन लगा।
प्यार की लगन लगी विचार स्नेह का जगा।।
घूर घूर देखता समस्त सृष्टि सर्जना।
बार बार कर रहा मनुष्य प्रीति अर्चना।।
प्रेम की प्रतीति की सुहागरात खोजता।
वायु में बहा रहा हृदय पराग सोचता।।
लिख रहा सप्रेम पात विश्व को दिखा रहा।
चल रहा सुदूर देश प्रेम गीत गा रहा।।
आस पास हो न हो मनुष्य एक भी यहां।
जंतु आस पास में विचर रहे यहां वहां।।
प्यार बांटते चलो कभी नहीं विलंब कर।
दान में दिया करो समग्र लोक को निडर।।
रोकना जुनून को कभी नहीं उमंग हो।
स्वस्थ मन मगन रहे सवार पीत रंग हो।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[10/03, 15:46] Dr.Rambali Mishra: साफ पाक
साफ पाक हो मनुष्य नेक काम नित करे।
मन लगे सुकर्म में अनीति से सदा डरे।।
निर्मलीकरण करे सदैव उर सरोज का।
सत्य भाव जागता रहे विनीत खोज का।।
शुद्ध भावना खिले अशुद्धता मलीन हो।
सोच देवता समान ध्यान धर्म लीन हो।।
दुख दिमाग से निकाल सुख विधान सोचिए।
शिव विरंचि विष्णु वृत्ति को सदैव खोजिए।।
स्वर मधुर सदा रहे मनोहरी लहर उठे।
शब्द वाक्य लोचदार द्वेष खार मर उठे।।
भेद भाव भूलकर मनुष्यता ग्रहण करो।
दीन हीन चित्त त्याग सभ्यता वरण करो।।
ठान लो कभी नहीं कुपंथ ठीकठाक है।
प्रेम का बजे विगुल यही सुघर सुवाक है।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[11/03, 12:08] Dr.Rambali Mishra: श्वास (सजल)
श्वास बहुत अनमोल प्रिय, ईश्वरीय उपहार।
श्वास बराबर कुछ नहीं, यह जीवन का हार।।
श्वास स्वस्थ यदि है सदा, जीवन है खुशहाल।
श्वास रोग से ग्रस्त तन, लगता अति बेकार।।
श्वासों की संख्या जमा, करते हैं भगवान।
प्रति क्षण घटता यह सतत, यही जीव का सार।।
श्वासों की है श्रृंखला, यह शरीर का मूल।
जिस दिन जाती टूट यह, रोता हर परिवार।
आता जाता श्वास जब, रहता मनुज प्रसन्न।
पुनः नहीं जब लौटता, तन पर मृत्यु सवार।।
जीवन की निश्चित अवधि, पर श्वासों का चाप।
श्वास मुक्त यह जिंदगी, जाय लोक के पार।।
जबतक चलता श्वास है, तबतक मन में आस।
जब यह कभी न लौटता, अंग भंग लाचार।।
जीवन के संग्राम में, है श्वासोँ का खेल।
वही मारता शतक है, जिसे श्वास का प्यार।।
व्यर्थ गंवाता श्वास जो , उसका सब कुछ सून।
इसकी रक्षा जो करे, उसकी नैय्या पार।।
श्वास श्वास में राम प्रिय, श्वासोँ में घनश्याम।
श्वास संग सुर जोड़ कर , देख विष्णु अवतार।।
तन मन उर सब हैं भरे, हरा दीखता लोक।
हरा भरा वातावरण, सुखी आत्म संसार।।
श्वांसों की गति तेज जब, बढ़े श्वास का रोग।
तन मन पीड़ित हो सकल, उपजे उग्र विकार।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[12/03, 07:39] Dr.Rambali Mishra: यादें (सानेट)
गुरुवर ने जो ज्ञान सिखाया।
उनकी याद बहुत आती है।
मन की ललिता गुण गाती है।
गुरुवर ने ही मनुज बनाया।
मात पिता की याद सताती।
पाल पौष कर बड़ा किये वे।
संरक्षण दे खड़ा किये वे।
उनके बिना दुखी दिल छाती।
सगे सहोदर के संस्कारों,
की ऊपज यह मेरा मन धन।
खिला हुआ रहता सारा तन।
आओ मिल लो आज बहारों!
यह जीवन यादों की धरती।
सहज बुद्धि है इस पर चरती।
रचनाकार: डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी
[12/03, 07:39] Dr.Rambali Mishra: पावन इरादा
मिलेगी सदा राह सुंदर सुहानी, अगर शुभ्र पावन इरादा रहेगा।
मिलेगा सहारा सुनिश्चित समझ लो, मिलेगा सुयोगीय वादा रहेगा
सहायक कदम दर कदम पर मिलेंगे, पकड़ हाथ मंजिल दिखाते रहेंगे।
न समझो अकेला बहुत साथ तेरे, तुम्हारे कदम को बढ़ाते रहेंगे।
मिलेगी खुशी बस निकल घर न सोचो, हृदय में रखो एक उत्तम मनोहर।
सहज दीप लेकर चलो जय ध्वजा ले, बने जिंदगी प्रेरणामय धरोहर।
रचनाकार: डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी
[12/03, 17:22] Dr.Rambali Mishra: राजनीति
राजनीति गंदगी बिखेरती अजीब है।
साफ स्वच्छ भावना दिखी बहुत गरीब है।
द्वंद्व फंद की लकीर दीखती असीम है।
झूठ का फकीर मस्त खा लिया अफीम है।
जोड़ तोड़ भेदभाव हिंसकीय वृत्तियां।
राष्ट्रवाद को कुचल रहीं अवैध युक्तियां।
कुर्सियां बुला रहीं सुदूर दीखतीं मगर।
हांफ हांफ खोजता अधीर मन किधर डगर।
मार काट कर रहा नहीं कहीं सुठौर है।
संपदा मिले सहज यही अनित्य दौर है।
कूट नीति दुष्ट नीति चल रही अनीति है।
छल प्रपंच से बनी असभ्य रूप प्रीति है।
मर्ज राजनीति का कुरोग भोग योग है।
अर्थ चक्र चल रहा घसीटता अयोग है।
पावनी कुनीति का बहार आज आ गया।
किंतु योग मोद अंश भारतीय छा गया।
क्रूरता कुचल रहा सुनीति योग मोद है।
नव्य राष्ट्रवाद की बयार में प्रमोद है।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[13/03, 16:09] Dr.Rambali Mishra: मेंहदी
मेंहदी सुहाग राग लाल रंग मोहिनी।
पावनी सुहावनी सुगंध बीज सोहिनी।।
प्रेम नाद शंख नाद जन्म उत्स पर दिखे।
नारि प्रिय बधू प्रिया चमक अखर अमित लिखे।।
वाहिका अमोल रूप नायिका सजा रही।
तेज बुद्धि की प्रबल सुघंटिका बजा रही।।
शुभ सदैव मंगलीय स्थान दिव्य धारती।
सर्व पर्व में सदैव आरती उतारती।।
विश्व प्रिय मनोहरी सगुन विगुल बजा रही।
शोभनीय चांदनी बनी सुगीत गा रही।।
कीमती अमोल निधि सुरम्य स्वागतेय है।
मेंहदी कमाल की विनम्रता अजेय है।।
औषधीय गुण भरा पड़ा सहज रसामृता।
रोग कष्ट नाशिनी विवेक अर्क अमृता।
दर्शनीय रस प्रधान अंग अंग शोभती।
भाग्यदायिनी अनंत आशु छवि यशोमती।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[14/03, 07:52] Dr.Rambali Mishra: kya khoob likha hai kisine
आगे सफर था और पीछे हमसफर था..
रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता..
मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी..
ए दिल तू ही बता,उस वक्त मैं कहाँ जाता…
मुद्दत का सफर भी था और बरसो
का हमसफर भी था
रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते….
यूँ समँझ लो,
प्यास लगी थी गजब की…
मगर पानी मे जहर था…
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते.
बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!
वक़्त ने कहा…..काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा….काश थोड़ा और वक़्त होता!!!
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब…।।
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।
“हुनर” सड़कों पर तमाशा करता है और “किस्मत” महलों में राज करती है!!
“शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता”..
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी!!!!
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया….
अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा. ……
लौट आता हूँ वापस घर की तरफ… हर रोज़ थका-हारा,
आज तक समझ नहीं आया की जीने के लिए काम करता हूँ या काम करने के लिए जीता हूँ।
बचपन में सबसे अधिक बार पूछा गया सवाल –
“बङे हो कर क्या बनना है ?”
जवाब अब मिला है, – “फिर से बच्चा बनना है.
“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे…!!”
दोस्तों से बिछड़ कर यह हकीकत खुली…
बेशक, कमीने थे पर रौनक उन्ही से थी!!
भरी जेब ने ‘ दुनिया ‘ की पहेचान करवाई और खाली जेब ने ‘ अपनो ‘ की.
जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया,
शौक तो मां-बाप के पैसों से पुरे होते थे,
अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती है। …!!!
हंसने की इच्छा ना हो…
तो भी हसना पड़ता है…
.
कोई जब पूछे कैसे हो…??
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है…
.
ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों….
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है.
“माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती…
यहाँ आदमी आदमी से जलता है…!!”
दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट,
ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं,
पर आदमी ये नहीं ढूँढ रहा
कि जीवन में मंगल है या नहीं।
मंदिर में फूल चढ़ा कर आए तो यह एहसास हुआ कि…
पत्थरों को मनाने में ,
फूलों का क़त्ल कर आए हम
गए थे गुनाहों की माफ़ी माँगने ….
वहाँ एक और गुनाह कर आए हम ।।
अगर दिल को छु जाये तो शेयर जरूर करे..
▄▄
(●_●)
╚═►
[14/03, 17:13] Dr.Rambali Mishra: अचेतन मन
नहीं सचेत मन जहां वहीं अचेत रूप है।
अचेत मन बहुत गहन अनंत सिंधु कूप है।।
सजग जिसे नकारता वही जमा अचेत में।
सकारता जिसे वही भरा हुआ सचेत में।।
अनेक तथ्य से भरा पटा अचेत भाव है।
कभी नहीं पता चले मनुष्य का स्वभाव है।।
त्रयी स्वरूप मन मनुज अचेतना विकार है।
गहर समुद्र सा खड़ा सचेत का शिकार है।।
अचेतना अवांछनीय तथ्य की गुहार है।
अतृप्त भाव वास का यही खुला दुआर है।।
समाज मान्य जो नहीं वही यहां मचल रहा।
परंपरा जिसे नकारती वही यहां टहल रहा।।
[14/03, 17:48] Dr.Rambali Mishra: दरिद्रता दरिंदगी छिपे हुए अचेत में।
असावधान मन हुआ दिखे तथा सचेत में।।
अचेतनीय तथ्य भी खिले कभी कभार हैं।
निडर असत्य निंद्य पर मिले सहज सवार हैं।।
विचारवान सत्यनिष्ठ ही सचेत मान है।
अचेत मन कुतथ्य कूप द्रोह क्रोधवान है।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[14/03, 17:49] Dr.Rambali Mishra: अचेतन मन
नहीं सचेत मन जहां वहीं अचेत रूप है।
अचेत मन बहुत गहन अनंत सिंधु कूप है।।
सजग जिसे नकारता वही जमा अचेत में।
सकारता जिसे वही भरा हुआ सचेत में।।
अनेक तथ्य से भरा पटा अचेत भाव है।
कभी नहीं पता चले मनुष्य का स्वभाव है।।
त्रयी स्वरूप मन मनुज अचेतना विकार है।
गहर समुद्र सा खड़ा सचेत का शिकार है।।
अचेतना अवांछनीय तथ्य की गुहार है।
अतृप्त भाव वास का यही खुला दुआर है।।
समाज मान्य जो नहीं वही यहां मचल रहा।
परंपरा जिसे नकारती वही यहां टहल रहा।।
दरिद्रता दरिंदगी छिपे हुए अचेत में।
असावधान मन हुआ दिखे तथा सचेत में।।
अचेतनीय तथ्य भी खिले कभी कभार हैं।
निडर असत्य निंद्य पर मिले सहज सवार हैं।।
विचारवान सत्यनिष्ठ ही सचेत मान है।
अचेत मन कुतथ्य कूप द्रोह क्रोधवान है।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[15/03, 16:43] Dr.Rambali Mishra: फिज़ा
अदा फिज़ा बिखेरती सुरम्य दृश्य भावना।
सदा विरंग रंगदार शानदार कामना।।
मजा सभी सप्रेम लूटते हुए सहर्ष हैं।
समग्र भूधरा हरी सभी जगह अकर्ष हैं।।
मनोविनोद हो रहा समस्त मन प्रसन्न हैं।
फिज़ा सुगंध मारती महक रहे सुअन्न हैं।।
पवित्र ध्यान मग्नता सुनिष्ठ स्नेह साधना।
गृहे गृहे मचल रही अनंत बार आंगना।।
मनोहरी छटा फिज़ा सदेह है बिखेरती।
अनंग नृत्य कर रहा रती स्वयं उकेरती।।
थिरक थिरक अचल सचल सतत मयूर नाचते।
अदूर दूर के पथिक निकट पहुंच सुवासते।।
अतर तरो सुताजगी कदंब डाल श्याम हैं।
नयन मिलाय गोपियां रचे व्रजेंद्र धाम हैं।।
न व्यर्थ गांव नाचता न द्वेष भाव जागता।
अधर्म छोड़ बस्तियां सुदूर मूर्ख भागता।।
कमालदार है फिज़ा यहां न कष्ट है कभी।
स्वधर्म प्रेम योग साहचर्य में लगें सभी।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[16/03, 17:04] Dr.Rambali Mishra: भगवान राम
भेदभाव मुक्त राम कष्ट को भगा रहे।
प्रेम पूर्ण बात चीत चेतना जगा रहे।।
साफ स्वच्छ लोक प्यार भावना भरी हुई।
निर्विकार मोक्ष धाम वासना जरी हुई।।
दैत्य दानवीयता उखाड़ फेंकते रहे।
मानवीय वेदना समस्त झेलते रहे।।
वज्र वक्ष उर विशाल काम क्रोध मुक्त थे।
शांति प्रिय दयालु मन समूद्र क्षीर युक्त थे।।
रत्न देव ब्रह्म देव वेद वाक्य धार थे।
स्नेहवाद धर्मनाद कृत्य कीर्तिकार थे।।
दानशील प्रिय सुशील रोम में समत्व था।
लोक प्रिय सुधा समान भाव में ममत्व था।।
विष्णु रूप विश्व भूप यज्ञ कूप प्रिय स्वरा।
माननीय ज्ञाननीय वंदनीय ईश्वरा।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[17/03, 10:28] Dr.Rambali Mishra: शून्य
शून्य गोल बोल मोल अर्चनीय सिद्धि है।
नाचता मयूर बन जहां वहीं प्रसिद्धि है।।
अंतहीन अंक वृद्धि अग्र व्यग्र भागता।
संपदा बना सदैव जागता विराजता।।
नायकत्व गायकत्व सार प्यार द्वार है।
पूजनीय है सदा शुभांक धारदार है।
शून्य सून है नहीं सजा धजा मनोहरा।
दीखता जगत सदैव शून्य से हरा भरा।।
शून्य साथ दे अगर मनुष्य भाग्यमान है।
शून्य अंक वृद्धि से मनुष्य ज्ञानवान है।।
शून्य आदि अंत है अनादि अंतहीन है।
मौन व्रत हिमालया सुदर्श अक्ष मीन है।।
हारता कभी नहीं सुजीत स्वाभिमान है।
जीतता समग्र लोक वीर धीरमान है।।
रूप रंग सुष्ठु पुष्ट गोल गोल गाल है।
पा लिया इसे वही बना सुप्रिय गुलाल है।।
शून्य शब्द ब्रह्म भाव आत्म धूप छांव है।
शीत की सुगंध है अमर्त्य लोक गांव है।।
लोग जानते नहीं अचेत सा पड़े हुए।
शून्य को निरर्थ जान जड़ बने खड़े हुए।।
शून्य रत्न अंकमान ज्ञानवान अर्थ है।
शून्य की प्रधानता बिना मनुष्य व्यर्थ है।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[18/03, 14:55] Dr.Rambali Mishra: वंदनीय शारदा सरस्वती सदा शिवा
पुस्तिका करस्थ ज्ञान अस्मिता प्रभा शिवा।
वंदनीय शारदा सरस्वती सदा शिवा।।
पूजनीय अर्चनीय अर्जनीय ज्ञानदा।
सत्व ब्रह्म रूपिणी अतुल्य स्नेह मानदा।।
[18/03, 15:36] Dr.Rambali Mishra: हंस पर विराजती अतुल्य भाव भंगिमा।
अंग अंग वेद मंत्र गौर वर्ण प्रीतिमा।।
नीर क्षीर सद्विवेक बोध धर्म रक्षिका।
भक्त प्रिय संवारिका महेश विष्णु शिक्षिका।।
सभ्यता स्वयं बनी सहज स्वभाव स्वामिनी।
उत्तरोत्तरी प्रगति अनंत व्योम गामिनी।।
सुंदरी अनूपमा सुमंत्र सिद्धिदायिनी।
रस प्रधान प्रेम रस सुशांत गीत गायिनी।।
सात्विकीय रूपसी सहस्र वीण धारिणी।
ओम नाम अंतहीन सोच शुभ्र कारिणी।।
हीन भावना हरो उदारवाद वृत्ति दो।
मातृ शारदे नमन दया करो सुवृत्ति दो।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[18/03, 15:37] Dr.Rambali Mishra: वंदनीय शारदा सरस्वती सदा शिवा
पुस्तिका करस्थ ज्ञान अस्मिता प्रभा शिवा।
वंदनीय शारदा सरस्वती सदा शिवा।।
पूजनीय अर्चनीय अर्जनीय ज्ञानदा।
सत्व ब्रह्म रूपिणी अतुल्य स्नेह मानदा।।
हंस पर विराजती अतुल्य भाव भंगिमा।
अंग अंग वेद मंत्र गौर वर्ण प्रीतिमा।।
नीर क्षीर सद्विवेक बोध धर्म रक्षिका।
भक्त प्रिय संवारिका महेश विष्णु शिक्षिका।।
सभ्यता स्वयं बनी सहज स्वभाव स्वामिनी।
उत्तरोत्तरी प्रगति अनंत व्योम गामिनी।।
सुंदरी अनूपमा सुमंत्र सिद्धिदायिनी।
रस प्रधान प्रेम रस सुशांत गीत गायिनी।।
सात्विकीय रूपसी सहस्र वीण धारिणी।
ओम नाम अंतहीन सोच शुभ्र कारिणी।।
हीन भावना हरो उदारवाद वृत्ति दो।
मातृ शारदे नमन दया करो सुवृत्ति दो।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[19/03, 19:17] Dr.Rambali Mishra: गाँव
बदले बदले गांव है, बदले बदले लोग।
सभी बदलते दीख जीते, यह कैसा संयोग।।
यह कैसा संयोग, हवा बहती अब दूषित।
अन्तस जलता आज, हृदय हो रहा कुपोषित।।
कहें मिश्र कविराय , भले सब अगले बगले।
किंतु नहीं है प्रेम, घृणा दिखती है बदले।।
मानव को क्या हो गया, रहते अपने गांव।
किंतु नहीं मतलब इन्हे, अपनेपन की छांव।।
अपनेपन की छांव, लुप्त होती दिखती है।
बेगाने की दृष्टि, शब्द काला लिखती है।।
कहे मिश्र कविराय, पंक्ति में खड़े अमानव।
नैतिकता की बात, नहीं करता है मानव।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[20/03, 06:25] Dr.Rambali Mishra: गाँव
बदले बदले गांव है, बदले बदले लोग।
सभी बदलते दीखते, यह कैसा संयोग।।
यह कैसा संयोग, हवा बहती अब दूषित।
अन्तस जलता आज, हृदय हो रहा कुपोषित।।
कहें मिश्र कविराय , भले सब अगले बगले।
किंतु नहीं है प्रेम, घृणा दिखती है बदले।।
मानव को क्या हो गया, रहते अपने गांव।
किंतु नहीं मतलब इन्हे, अपनेपन की छांव।।
अपनेपन की छांव, लुप्त होती दिखती है।
बेगाने की दृष्टि, शब्द काला लिखती है।।
कहे मिश्र कविराय, पंक्ति में खड़े अमानव।
नैतिकता की बात, नहीं करता है मानव।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[20/03, 08:01] Dr.Rambali Mishra: मन के भाव
न हानि है न लाभ है सभी मनो प्रवृत्ति हैं।
शरीर मन स्वभाव में अजीब चित्तवृत्ति है।।
जियन मरण लगा हुआ इसे नहीं नकारना।।
सहर्ष राह धर चलो बनो सदा गजानना।।
न हार है न जीत है मनुष्य सर्व एक हैं।
जवान वृद्ध बाल सर्व पर्व गर्व नेक हैं।।
न भेदभाव हो कभी सदा उसे उखाड़ दो।
न मृत्यु से डरो कभी निडर बने पछाड़ दो।।
समत्व योग साधना चला करे बढ़ा करे।
अमर्त्य भाव अर्चना अनंत पथ गढ़ा करे।।
न शोक मोह हो कभी न मानसिक तनाव हो।
परार्थ दिव्य भाव का सतत सुखद स्वभाव हो।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[21/03, 17:27] Dr.Rambali Mishra: भावना
भावना जगा रही अकल्पनीय कामना।
सिंधु सम अनंत रूप चित्र श्वेत आनना।।
हारती कभी नहीं बढ़ी चढ़ी दिखी सदा।
रंग में अनेक सृष्टि सर्जना रची सदा।।
मूल रूप श्वेत श्याम भांति भांति अंगिनी।
चित्त संग जागती सदेहमान संगिनी।।
दृश्य एक एक से दिखा रही बना रही।
दीपिका जला रही सुहोलिका मना रही।।
अंग अंग रंग जंग नृत्य नायकत्व है।
रस प्रधान मोहनीय प्रीति वीर तत्व है।।
भाव द्वंद्व चल रहा यहां वहां विचार बन।
शंख नाद गर्जना ध्वनित श्रवित समस्त जन।।
भावना बनी रहे सदा सुहाग रात सी।
प्रेमपूर्ण मित्रता सुप्रीति स्नेह बात सी।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[22/03, 18:07] Dr.Rambali Mishra: सुहाग रात (पचचामर छंद)
सुहाग रात जिंदगी दिखे अमर बसंत हो।
मिले समस्त रिद्धि सिद्धि काम रति अनंत हो।।
शहद समान मन बने हृदय पराग सा खिले।
नहीं रहे वियोग भ्रम अनंत एक में मिले।।
सदा सुहाग रात चांदनी चमक बिखेर दे।
महक उठे शरीर सौम्य साधना उकेर दे।।
उमंग की छटा दिखे लिखे सुखांत अंबुजा।
बहे बयार मंद मंद सावनी घटा भुजा।।
पहाड़ दृश्य शोभनीय लोभनीय काम्य हो।
उठे तरंग प्रीति ज्वार रात्रि गीत साम्य हो।।
बहुत अधिक प्रसन्नता सराहनीय प्यार हो।
लिखित हृदय बसे सदा अतुल्य देवदार हो।।
अजर असर रहे अमर सुहाग रात कथ्य हो।
बने समग्र जीवनी खुशी सुखी सुपथ्य हो।।
सशक्त प्रेम याचना चला करे बनी रहे।
मयूर नृत्यिका दिखे सुलोचनी धनी रहे।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[23/03, 13:39] Dr.Rambali Mishra: अनोखी मां (विधाता छंद)
अनोखी मां निराली है किया करती सतत पालन।
नहीं रखती कभी ईर्ष्या सदा करती सहज लालन।।
अदा करती सकल जिम्मा निभाती भूमिका सारी।
नहीं बढ़ कर हुआ कोई जहां में मां बहुत प्यारी।।
जिसे है मात से नफरत वही है पूत नालायक।
किया जो प्रेम माता से वही होता सरल नायक।।
नहीं मां से कभी होता जगत में मुक्त कोई भी।
मिला आशीष मांश्री का बना सम्राट कोई भी।।
प्रगति की भूख जिसको हो करे सम्मान माता का।
महा साध्वी रचयिता है त्रिदेवी रूप माता का।।
जिधर देखो वहीं माता हमेशा ख्याल रखती है।
सदा शिशु के लिए जीती हृदय से स्नेह करती हैं।।
बसा है प्राण माता का सदा शिशु में यही सच है।
बिना शिशु के सहज सूनी सदा गोदी यही सच है।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[24/03, 17:18] Dr.Rambali Mishra: धर्म
धर्म एक मर्म है सुधारता सुकर्म है।
आसुरी प्रवृत्तियां मरोड़ता सुधर्म है।।
धर्म हानि सह नहीं सका कभी सुधर्म है।
संत हेतु आगमन किया सदैव धर्म है।।
सत्व कर्म विष्णु रूप सत्य ब्रह्म भावना।
शिव स्वरूप सिंह नाद मारता कुकामना।।
भार भूमि का हरे पतित समाज मार कर।
धर्म वीरता लिखे सुसत्य को संवार कर।।
दुर्ग शक्ति शैल पुत्रि ब्रह्मचारिणी भजो।
राग द्वेष दंभ दर्प मैल को सदा तजो।।
मातृ शक्ति नौ प्रकार एक एक मर्म है।
अंतहीन साधु संत रक्षिका सुनर्म है।।
अंग भंग पाप का अधर्म नाशवान हो।
धर्म की विजय सदैव आन बान शान हो।।
दैत्य छोड़ते दिखें समग्र भूमि लोक को।
शांत चित्त मेटता रहे समस्त शोक को।।
धर्म ध्यान ज्ञानवान स्वार्थ मुक्त कामना।
मातृ पुष्प शक्ति भक्ति दृश्यमान भावना।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[25/03, 15:56] Dr.Rambali Mishra: सैनिक
सैनिक सहज बहादुर लड़ते सदा निडर हो।
रुकते न पांव उनके बढ़ते कदम उधर हो।।
वैरी हि लक्ष्य उनका बन पार्थ वेधते हैं।
निः स्वार्थ राष्ट्र रक्षक परमार्थ झेलते हैं।।
उत्साह के सिपाही अद्वैत साधना है।
भावानुभूति निर्मल अरिहंत कामना है।।
वीरांग बन मचलते नैतिक बहादुरी है।
’हरिहरपुरी’ थिरकते सीमा स्वरगपुरी है।।
न्योता सकारते हैं आंखें चमक रही हैं।
ज्वालामुखी बने हैं बाहें फड़क रही हैं।।
होना शहीद इनको स्वीकार है सहज में।
पीछे कभी न मुड़ते अंगार सा गरज में।।
इनको संभाल रखना मुश्किल बहुत सघन है।
योद्धा कुशाग्र पावक सेना सदन मगन है।।
सैनिक गगन गमन कर आजाद देश करते।
हिम्मत कभी न हारे मदमस्त हो दमकते।।
नमनीय सैनिकों की टोली रहे सलामत।
जय हिंद बोलिए नित करना ’किरात’ स्वागत।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[25/03, 17:05] Dr.Rambali Mishra: स्वप्न
स्वप्न में तुम दिखे मस्त हो कर मगन।
चेहरा खिला रूप यौवन सुगन।।
प्यार करते मिले चांदनी सी सरस।
शांत स्नेहिल मुलाकात मोहक परस।।
तुम बहुत चूमते चाटते रह गए।
स्वप्न टूटा नहीं द्वय फिसलते गए।।
काम ज्वाला धधकती रही स्वप्न भर।
दिल मिला पर न छूटा कभी भी शहर।।
खोजता मन सदा ढूंढता है तुझे।
पास रहने को व्याकुल निरखता तुझे।।
पास रहना सदा स्वप्न में ही सही।
स्वप्न सच्चा सुधारस से कम है नहीं।।
बांह में नित्य रहना बरसना सखे।
याद में नित्य बहना प्रिये हे सखे।।
जिंदगी में तुम्हीं एक साथी मिले।
झोपड़ी भी सुखद प्रेम पागल खिले।।
मोहिनी रूप पागल बनाता सदा।
ख्वाब में स्नेह वारिद सा दिख सर्वदा।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[26/03, 17:03] Dr.Rambali Mishra: प्रीति (अमृत ध्वनि छंद)
प्रीति सदा बरसे यहां , बन कर वारिद नीर।
छाया सी हरती रहे , बनकर मोहक पीर।।
स्नेह रसायन, प्रेमिल गायन , सब दुख हरता।
अति सुखकारी, प्रिय अविकारी, मन खुश करता।।
जिसको प्रीति मिली वही, बना दिव्य घनश्याम।
अमृत ध्वनि को याद कर, पहुंचे राधा धाम।।
प्रेम मनोहर, सत्य धरोहर, ज्ञान दिलाता।
रसिक बनाता, शीश झुकाता, उर छा जाता।।
दर्शनीय प्रिय प्रीति है, स्पर्शनीय हर अंग।
अंग अंग रंगीन है, स्वयं बनी मधु रंग।।
प्रीति जहां है , कृष्ण वहां हैं, वाधा भगती।
प्यार सुसज्जित , दंभी लज्जित, तृष्णा मरती।।
चलो प्यार को खोजने, बहुत सुलभ यह छांव।
सात्विक भावों में बहो, मिले प्रीति का गांव।।
जब खोजोगे, तब पाओगे, पास खड़ी है।
शुद्ध वृत्ति हो, शिष्ट चित्ति हो, प्रीति जड़ी है।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[27/03, 11:02] Dr.Rambali Mishra: सिंदूर
सिंदूर मोहक सुहाना सजा है,
रंगीन लालित्य लाली रजा है,
प्यारा दुलारा स्वयं मस्त मौला ,
मस्तक सजाये लगे शिव ध्वजा है।
लक्ष्मी सदा पास रहतीं यहां पर,
धन धान्य संपन्नता है वहां पर,
गहरा चमकदार मादक सनातन,
रश्मिल मनोहर सितारा जहां पर।
भाग्योदयी प्रेम रंजक खजाना,
हिंदू मुसलमान सबका तराना,
मधुरिम चटकदार हनुमान लेपन,
सीता सुहागिन असरदार बाना।
तरुवर दुआरे जरूरी लगाना,
रोगी न भोगी बनेगा जमाना,
सात्विक शुभागी सुहागी सभी हों,
सिंदूर से गेह हरदम सजाना।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[28/03, 17:02] Dr.Rambali Mishra: पाप का घड़ा फूटता है (दोहे)
आगे पीछे सोचता, कभी नहीं अपराध।
राजनीति के संग से, करे कुकृत्य अगाध।।
गुर्गे अपना पालता, करता तांडव नृत्य।
धरे भयानक वेश वह, करे घिनौना कृत्य।।
नहिं समाज का भय उसे, खौफजदा इंसान।
बाहुबली बन घूमता, नित निष्ठुर हैवान।।
खूनी पंजा मारता, लूटे परसंपत्ति।
भयाक्रांत समुदाय मन, आते देख विपत्ति।।
बड़े बड़े अधिकार का , उड़ जाता है होश।
देख क्रूर जल्लाद को, हो जाते बेहोश।।
मद में रहता चूर वह, तथाकथित अय्यास।
दयारहित दानव दनुज, दैत्य प्रेत सहवास।।
घड़ा पाप का जब भरे, होता चकनाचूर।
बाहुबली भी एक दिन, हो जाता काफूर ।।
न्याय कभी मरता नहीं, समय समय का फेर।
विजय सत्य की हो सदा, अन्यायी हो ढेर।।
सदा सत्य का आचरण, जो करता बिंदास।
वही सुखी इस लोक में, जैसे रवि रविदास।।
तुलसीदास बनो सदा, बनना दास कबीर।
कवि बन कर कविता लिखो, चमको जैसे हीर।।
मानव बनना सीख लो, कर सबका उद्धार।
सेवा में ही मन लगे, यही शिष्ट सत्कार।।
कभी उपद्रव मत करो, ऐ प्यारे इंसान।
आये हो संसार में, करने कर्म महान।।
सत्व काम का फल सुखद, यही सनातन धर्म।
सुनता आया अद्यतन, जान कर्म का मर्म।।
पाप भोग को त्याग कर, सुन परहित की बात।
सुंदर शुभमय सोच में , डूब सदा दिन रात।।
गंदी राहें छोड़ कर, पकड़ो पावन पंथ।
जीवन जीना इस तरह, बनो स्वयं प्रिय ग्रंथ।।
रामचरितमानस बनो, बन कर उत्तम राम।
श्रीमद्भगवद्गीत बन, हो कर प्रिय घनश्याम।।
उत्तम मोहक लोक का, करते रह निर्माण।
इसी भावना भूमि में, हो अंतिम निर्वाण।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।