05-है यह उपवन सूना सूना ।
है यह उपवन सुना सुना,जा खिल बिहंसकर रे सुमन।
देखूं हरियाली को चहुंदिश ,फिर भी नहीं लगता है मन।
तरुवर की पांतों पर पाती,हरस सरस् कर झूम रही है ।
पर तेरे बृन्दों की अँखियाँ, बन्द पड़ी मन मूंद रही हैं।
सिंचता ह्रदय तल दृगधारा से , बीत रहा है अपनापन ।
पर तू नहीं खिल पाया ,ओ बगिया के नवनीत सुमन।
है यह उपवन———————————————-।1।
चाहत है एक पल मेरी यह,क़ि हंसता तुझे निहारूँ में।
भरूँ अंक में दिन भर महकूँ, ले शत चुम्बन मनहारुं में।
झूम उठूँ पाकर रस तेरा ,अनुपम मधु परागण का ।
मिट जाए अंधियारा चिंतन,तम के उस तारागण का ।
छिपे कहाँ हो ,हे दिनमान, डालो मेरी झोली यह धन ।
है यह उपवन ———————————————।२।
महकूँ मैं गन्धो का सत ले, व्याकुल मन पाये-मृदु चैन ।
अंकित हो ह्रदय पट सूरत , गांउँ लोरी मैं दिन रैन।
देखता हूँ स्वप्न में भी ,उठ उठ कर हमेंशा तुझे ।
पर दिखता नहीं ‘सार्थक’ कहीँ,ओ मेरे प्रिय धन मुझे ।
आ बत्सलता का रस पिला दे,भव के भावी अबलम्बन।
है यह उपवन———————————————-।3।