? श्री गुरु चालीसा ?
? चराचर जगत के गुरुतत्व को समर्पित ?
? श्री गुरु चालीसा ?
दोहा-
गणपति प्रथम मनाय कें, धर शारद कौ ध्यान।
वन्दहुँ पद पंकज सरस, सहज करौ कल्यान।
अविवेकी अति मूढ़ मति, ज्ञान-गुनन ते हीन।
कृपा करौ गुरुवर सदा, तुम हो परम् -प्रवीन।
चौपाई
जय जय जय गुरुदेव गुणेश्वर।
हो पित-मात सहित परमेश्वर।
पंचभूत मम अधम शरीरा।
भू जल पावक गगन समीरा।
विद्यावान गुनी भगवन्ता।
चरण शरण दे तारौ कंता।
अगणित ज्ञान सफल विज्ञानी।
मो सम मूढ़ नहीं अभिमानी।
आप गुणों की खान कहाते।
जग जीवन का ज्ञान कराते।
ज्यों गुरुज्ञान दियौ रघुराई।
त्यों मोपै करिहौं प्रभुताई।
दूर करौ मम उर अँधियारा।
भवसागर का दूर किनारा।
वन्दहु गुरु पद नित-प्रति जाई।
क्षमा करौ गुरु मोर ढिठाई।
कृपा करौ हे करुणासागर!
दयादृष्टि दे दान दयाकर!
गुरु गुणगान गवाऊं गाउँ।
सदा सर्वदा सकल सुनाऊँ।
वेद-पुराण रचे गुरु व्यासा।
गीता ज्ञान सरस जिज्ञासा।
नारद से गुरु पा रत्नाकर।
रामायण राची रुचिकारक।
रघुकुल रामाराम रिझाये।
पढ़ि-पढ़ि पुण्य-प्रतापहि पाये।
परशुराम गुरु ब्रह्म स्वरूपा।
यथानाम गुन तथ अनुरूपा।
भीष्म द्रोण अरु कर्ण सिखाये।
छत्रि-विहीन धरा करि आये।
कौरव-पांडव के गुरु द्रोना।
सिखा रहे तब तीर पिरोना।
विश्वामित्र मुनी अति ज्ञानी।
रघुकुल-राज रची रजधानी।
रामलखन बहु आयुध दीन्हा।
लंक संहार जगत यश लीन्हा।
निकट नगर उज्जैन सुनामा।
सांदीपनि आश्रम गुरुधामा।
शिक्षा हलधर सह हरि पाई।
चौंसठ कला प्रखर ठकुराई।
चौंसठ दिवस सीख सब विद्या।
विश्वगुरु तनु त्याग अविद्या।
देवगुरु बृहस्पति संतोषी।
रक्षारत सदैव अजपोषी।
दैत्यगुरु अति निष्ठ आचारी।
शुक्राचार्य सजीवनि धारी।
गुरु वशिष्ठ कुलगुरु रघुधामा।
वेद-वेदांग गहे श्रीरामा।
चिरंजीवी कृप भारत जाना।
राज्ञ परिक्षित गुन-बल खाना।
शिव अवतार आद्य पीठेश्वर।
शंकराचार्य गुरु विश्वेशर।
ब्रह्मा-विष्नू आप महेशा।
दूर करौ मम घोर कलेशा।
हरिहर आप हरौ भवबाधा।
क्षमा नाथ मोरे अपराधा।
अपरम्पार तिहारी माया।
नाथ कृपा बिन पार न पाया।
तत्वज्ञान यह दिया अमोला।
अन्तस् का अन्तर्पट खोला।
ब्रह्मतत्व का दरश कराया ।
मदमति मान मकार मिटाया।
माया में था फसा पतंगा।
उर में भरी ज्ञान की गंगा।
जीवन ज्योति जरा जुग जोरे।
नाथ हरौ भव बन्धन मोरे।
गुरु बिन ज्ञान नहीं उद्धारा।
गुरु भवसागर तारणहारा।
परम् प्रदायक प्रखर प्रणेता।
पद पंकजरज जो नित लेता।
तमहर-पावक गुरु की वाणी।
जीव-जगत जन-जन कल्याणी।
गु मनू माया मोह मकारा।
रु जनु ‘तेज’ तरा संसारा।
मन बच करम गुरु जिहिं साधा।
अति अनूप आशीष अगाधा।
सोम सुधाकर गुरुहि अनंता।
मनुज रूप जन्मे भगवंता।
विधि-विधान कछु मोहि न आवै।
दास तेज चरनन कूं ध्यावै।
दोहा
चरण शरण में दास है, नाथ विनय कर जोर।
देहु ‘तेज’ आशीष शुभ, पीर हरौ प्रभु मोर।
? अथ श्री गुरु चालीसा स्त्रोतम् ?