? ब्रजरज ?
?? ब्रज के दोहे ??
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ब्रजरज सों कट जात हैं,भव-सागर के फंद।
राधे जू की कृपा सों,मिल जाएं ब्रजचंद।।
ब्रजरज है पावन परम,माथे लीजै धार।
पाप-ताप पल में कटें,है जायगौ उद्धार।।
ब्रज की रज चंदन परम,शीतल करती गात।
सूर्यताप कूं भखि रही,मनहु चांदनी रात।।
मुक्ती – मुक्ति की चाह लिए,लोटत ब्रज की धूर।
भाव सहित रज लोटि कें,नयन भए निज सूर।।
ब्रजरज में खेलत-फिरत,हलधर अरु घनश्याम।
राधे जू की कृपा सों,सहज मिलें सुखधाम।
ब्रजरज चंदन शीश पै,धार करौ ब्रजबास।
राधा-मोहन नाम लै,निकरै हर इक स्वांस।।
पूछि रही घनश्याम सों, मुक्ति कौ मुक्ती उपाय।
नित ब्रजरज धर शीश पै,मुक्तीहु भव तर जाय।
ब्रजरज लोटत चरण गहि,बनौ रसिक हरीभक्त।
जग के सिग बंधन तजौ,है मन-वचनहि विरक्त।।
ब्रज के राजा सांवरे,सखियन के घनश्याम।
मेरौ मन तोसों लग्यौ,बिसर गयौ सब काम।।
रूप तेज बल खान हो,राधा नवल किशोर।
चरण-शरण दै दास कूं, कर किरपा की कोर।।
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? तेज 2/5/17✍