? बुद्ध पूर्णिमा की अनंत शुभकामनाएं ?
महात्मा बुद्ध
धर्म नीति न्याय प्रीति के अनौखे सार को।
लुंबिनी पावन हुई पाकर परम् अवतार को।
जन्म माया ने दिया माँ गौतमी ने प्यार भी।
जनक शुद्धोधन ने किये इच्छित प्रेम दुलार भी।
पर न था सिद्धार्थ का मन देह के रंग-रास में।
पुत्र राहुल और यशोधर के सरस मधुहास में।
सत्य जिज्ञासा हुई सद्सत्य को सब त्यागकर।
खोज में सद्सत्य की निकले छिपे से भागकर।
“क्यों जरा आती,मरण होता,दुःखों का हेतु क्या?
खोज थी सन्मार्ग की सद्ज्ञान का है सेतु क्या?”
रात-दिन बन-बाग भटके पर मिला नहीं दिव्य-ज्ञान
खोज में चातक बने से फिर रहे गौतम महान
हो गई जब आत्म की इच्छा अनंत परमात्म में।
साधना पूरी सकल सद्ज्ञान प्राप्ति एकात्म में।
आत्मा परमात्म होकर के प्रकाशित हो गई।
बोधिवृक्ष साक्षी बना बुद्धि-बुद्ध शासित हो गई।
भाव करुणा का हृदय में बढ़ दयासागर हुआ।
सत्य विद्वानों की वाणी, धम्म का गागर हुआ।
मानवी सब गुण हुए परिमार्ज काया शुद्ध के।
धम्म करुणा अरु अहिंसा मार्ग मध्यम बुद्ध के।
ज्ञान सम्यक् प्राप्त कर सद्धम्म् का हो आचरण।
सूत्र था बहुजन हिताय सद्चरित-सद् आवरण।
विष्णु के अवतार ने संदेश सद्वृत्ति का दिया।
आचरित अष्टांग योगी शांतिमग में ला दिया।
“सत्य का है तेज जग में,मोक्ष कर्मों का प्रभाव।
धन बड़ा संतोष-धन है,त्याग संयम सद् स्वभाव।”
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?तेज 10/05/2017