तेरी आँखों में अब, काजल नहीं है।
तेरी आँखों में अब, काजल नहीं है।
कहीं पैरों में तो, सांकल नहीं है..??
नकारा है ज़माने भर ने’ जिसको…!
वो’ दीवाना है’ पर…, पागल नहीं है।
सलीक़े से…., छुपाए ऐब…, सबने,
किसी बोतल में’ गंगाजल नहीं है..!
खुशी कैसे मनाऊँ….? बारिशों की,
कहीं भी कूकती…, कोयल नहीं है।
बख़ूबी सब जिये……, किरदार मैंने,
मगर कोई मेरा….., क़ायल नहीं है।
मोहब्बत में नफ़ा-नुक़सान कैसा..?
खरा सोना है’ ये…., पीतल नहीं है।
किया है ज़िंदगी से…, बेदख़ल पर,
नज़र से एक पल ओझल नहीं है..!
कदम हर फूंक के.. रखना “परिंदे”,
ज़मी हर ओर से समतल नहीं है..!
पंकज शर्मा “परिंदा” 🕊