😊तेरी मिरी चिड़ी पीड़ि😊
डॉ अरूण कुमार शास्त्री 💐 एक अबोध बालक💐 अरुण अतृप्त
अदाएँ भी उनकी खताएँ भी उनकी
अब सनम से क्या बलाएँ भी उनकी
नही कोई शिकवा न कोई शिकायत
ये अहले कदम हैं फ़िज़ाएं भी उनकी
नहीँ कोई रहबर नहीं कोई सानी
ये फितना से हम है ये मेरी कहानी
नही ज़ोर चलता न होगी मेहरबानी
चलो चाहे घुटनों या रगड़ लो पेशानी
मुकद्दर की बातें मुकद्दस से होंती
मुकद्दर मिरा की सब है बातें पुरानी
तुझे प्यार करना पड़ा मुझको भारी
अम्मू न अब्बा न नानू की मानी
हुये घर से रुसबा शहर में जनाज़ा
मुहल्ला है दुश्मन अब तो सुनो मेरे आका
फटी मेरी फतुनीं , फटी है रजाई
हैं सर्दी की रातें उस पर तेरी जुदाई
अदाएँ भी उनकी खताएँ भी उनकी
अब सनम से क्या बलाएँ भी उनकी
नही कोई शिकवा न कोई शिकायत
ये अहले कदम हैं फ़िज़ाएं भी उनकी
नहीँ कोई रहबर नहीं कोई सानी
ये फितना से हम है ये मेरी कहानी