??नशीब अपना-अपना??
देखा हमने आज़माके नशीब को।
मिला वही जो मंज़ूर था साहिब को।।
1.??
चाहा जिसे वो मिला नहीं कभी।
मिला वो जिसे चाहा नहीं कभी।
हैं सोचते हम लड़ाके तरक़ीब को।
मिला वही……………।
2.??
ज़िंदगी में चले लिए इरादा।
टूटा वही जो भी किया वादा।
भटके सदैव ही भुलाके हबीब को।
मिला वही…………….।
3.??
लक्ष्य था सही पर तरीक़ा नहीं।
सुना कि जीने का सलीख़ा नहीं।
तोहमत लगी ये जलाके ग़रीब को।
मिला वही……………।
4.??
डुबोया ज़िंदगी ने साहिल पर।
बचाया कभी हमको साहिल पर।
सहा हमने सब मिलाके तहज़ीब को।
मिला वही……………..।
5.??
किसी को मिलते ऐशो-आराम।
हमारा जीना भी हुआ निलाम।
कौन समझे यहाँ इस खेल अज़ीब को।
मिला वही………………।
मात्राएँ……..
मुखड़ा…21-21
अंतरा…18-18-21
….राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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