? वसलियह ?
डॉ अरुण कुमार शास्त्री?एक अबोध बालक?अरुण अतृप्त
?वसलियह?
किसी को भाव छूते हैं
किसी को शब्द छूतें हैं
किसी को बेबसी की
ज़िंदगी के ताव छूतें है ।।
तिरी फितरत मेरी अदावत
मेरी मयकशी तेरी इबादत
तुझमें इश्क़ की है गरमी
मुझमें रौशनी ख़ुदा की ।।
तू बिला वजह ख़फ़ा है
जिंदगी से अपनी
थोड़ा इन्तज़ार करले
ख़ुदा बस दे ही तो रहा है।।
इश्क़ मुश्किल नहीं होता
आशिक़ी के हुनर सीखिए
माशूक़ भी तो चाहिए मौला
खुदाई फ़ज़ा है सब्र सीखिए
मैं भी था मुतमईन बग़ैर उसके
और वो भी थी ख़फा मुझसे
फिर हादसा हुआ मानों
ख़जाना खुला मानो ।।