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25 Jan 2022 · 1 min read

? मन के मनके ?

डॉ अरुण कुमार शास्त्री
?एक अबोध बालक ? अरुण अतृप्त ?

एक अबोध बालक?

किसी के मन को
समझने के लिए
उसके मन के
भावों को
पढ़ना होता है
किसी के भावों को
पढ़ने के लिए
उसके कृतित्व को
बखूबी परखना होता है
जीवन सारा तो
चिंताओं की व्यंजनाओं
में निकल जाया करता है
कोई विरला पल ही
अपने लिए होता है ।।
उसी पल को प्यार से
संजोना होता है
उसी पल को
प्यार से संजोना
होता है
कभी टूटना होता है
कभी टूटे टूटे ही रह कर
दूसरों को जुड़ने का
मंत्र देना होता है
कभी मन को ऐसे ही
बहने देना होता है
किसी के बंधन में
न चाहते हुए भी
बिखर जाना होता है
इच्छायें न जाने
कहाँ कहाँ ले कर चलने को
बरगलाया करती है
कभी कभी
लेकिन मन इसकी इजाजत
कहाँ देता है
मैने अपने मन को
अब संयम के अदृश्य धागे से
साध लिया है
जो पल जी चुका
उन्ही को अपना प्रारब्ध
मान लिया
इच्छायें न जाने
कहाँ कहाँ ले कर चलने को
बरगलाया करती है
किसी के मन को
समझने के लिए
उसके मन के
भावों को
पढ़ना होता है
तब भी कहाँ उस व्यक्ति का
व्यक्तित्व समझ आता है
किसी के मन को
समझने के लिए
उसके मन के
भावों को
पढ़ना होता है जीवन भर
यही क्रिया प्रक्रिया में तो
मन उलझा रहता है ……..??

Language: Hindi
1 Like · 204 Views
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