? पारिजात?
डॉ अरुण कुमार शास्त्री ?एक अबोध बालक –अरुण अतृप्त?
पारिजात
निगाहों के पैमाने
बदन परिजमालों के
रिंद खयालों के
मय शरबती नयनों की
और एहसास हम ख़यालों के
ऊर्ज से उचकते
साँसों से हैं महकते
उसके बदन के गोले
अँगारे से हैं दहकते
रह रह के हेंगे देखो
कदम नाज नीना के
नृत्य को थिरकते
संगीत बज रहा है
सुर ताल सुरमई है
तेरी आशिक़ी के चलते
अरमान मेरे जलते
निगाहों के पैमाने
बदन परिजमालों के
रिंद खयालों के
मय शरबती नयनों की
और एहसास हम ख़यालों के