💐 निगोड़ी बिजली 💐
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
एक अबोध बालक 💐💐 अरुण अतृप्त
💐 निगोड़ी बिजली 💐
आँखों में कटी मेरी रात
के बिजली आती रही
और जाती रही
बैरन हो गई निदिया रानी
मुझको सताती रही
आँखों में कटी मेरी रात
गर्मी से बेहाल जिया था
उसपर मच्छर काट रहे थे
रह रह , अजी रह रह
सुई लगा रहे थे
चली न एक भी चाल
के मेरी चली नही कोई चाल
आँखों में कटी मेरी रात
के बिजली आती रही
और जाती रही
हांथ का पंखा हमने खोया
आधुनिकता से नाता जोड़ा
मटका छोड़ा सुराही छोड़ी
फ्रिज से अपना नाता जोड़ा
गले में लग रही फांस
आँखों में कटी मेरी रात
के बिजली आती रही
और जाती रही
करवट बदलूँ बायें दाएं
सीधा मुझसे लेटा न जाये
दुखे मोरी पोरी पोरी
बिरहा जैसी गति थी मोरी
मन में भरे थे सवाल
आँखों में कटी मेरी रात
के बिजली आती रही
और जाती रही