? कौन जाने ?
डॉ अरुण कुमार शास्त्री ?एक अबोध बालक?अरुण अतृप्त
जिंदगी को जिंदगी
जीना सिखा रही ।।
मैं मुस्कुरा रहा हूँ साथ साथ
वो मुस्कुरा रही ।।
आइना बन के खड़ा है
ये जमाना भी सामने
हर किसी सूरत अब
साफ साफ नज़र है आ रही ।।
मुक़द्दर अल्ल्लाह ने
जो भी जिसको दिया है
बस उसी से है
ये दुनियां काम चला रही ।।
तुम मासूम से लगते हो
तो मासूम ही बनो
अब बेजा हरकतें जो हैं
सब की सब मूँ बना रही ।।
ग़फ़लत को कह दो
कही और तलाशें घर
मुझको तो मेरे मुल्क़ से ही
ख़ुशबू सी आ रही ।।
तन्हाई ने भी अब
मूँ मोड़ लिया एय दोस्तो
जब से मिला है साथ आपका
बेचारगी शर्मा रही ।।
शिकवा है न अब कोई
शिकायत ही रह गई
दिल से दूं दुआएं मैं
औऱ मेरी रूह खिलखिला रही।।
मैं था अनाड़ी अबोध
अबोधिता में पला बढ़ा
दुनियां थी मुझको अपने
पैंतरे सिखा रही ।।