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21 Jul 2022 · 1 min read

💐💐सेवा अर्थात् विलक्षणं सुखं💐💐

क्षुधायां च भोजने च पिपाशायां च जले च एकता।क्षुधा विना भोजने रस: न प्राप्त: भवति।क्षुधा भोजनस्य सत्तां पिपाशां जलस्य सत्तां सिद्ध: करोति।भोजनं न स्यात् तु क्षुधायाः अनुभवः न भविष्यति।जल: न स्यात् तु पिपाशायाः अनुभवः न भविष्यति।क्षुधायाः पूर्ति: क्षुधया अभावस्य पूर्ति: अभावेन किं भविष्यति?’सत्’इत्यस्य इच्छा ‘असत्’इत्येन किं पूर्णं भविष्यति।

संसारः अभावरूपं अर्थात् एषः भावरूपं परमात्मनः क्षुधा।भावरूपेन अर्थात् सत्तारुपेण एक: परमात्मा एव-‘नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः’अस्माकं अन्तः परमात्मनः क्षुधा।’है’रूपं परमात्मनि स्थित: भवने पूर्ति: भवति।सर्व: अभावः नश्यति।

विचित्रवार्ता एषा यत् अस्माकं वास्तविक: क्षुधा भोजनेन न नक्ष्यति।प्रत्युत् भोजनस्य दानेन अर्थात् सेवा करणेन नक्ष्यति।अन्यान् सुखं प्रदानं करिष्यति तु विलक्षणं सुखं मिलति।

©®अभिषेक:पाराशर

Language: Sanskrit
1 Like · 1 Comment · 215 Views

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