??गरीबी का श्रृंगार??
माँ ने दिया जन्म,
इन सीढ़ियों में,
माँ की ये मजबूरी थी।
गरीबी ने घेरा,
इस कदर,
तकदीर से ही दूरी थी।।
पर सपने,
माता पिता के,
अब नही गरीब है।
दो मुखड़े,
चाँद से प्यारे,
अब उनके करीब है।।
लाख लाख का,
हर सपना,
माता पिता के पास है।
अब बहन हम ही है,
जो उत्थान के लिए,
उनके खास है।।
आ साज में, तेरी,
माँ के सपनों का,
उपहार भर दूँ।
माँ की ममता,
भाई का प्यार,
पिता के संस्कार भर दूँ।।
उलझी हुई लटों को,
सुलझाकर,
बेनी मैं तैयार कर दूँ।
अभिमानित हो,
देखकर मन मेरा,
ऐसा आज तेरा श्रृंगार कर दूँ।।
संतोष बरमैया “जय”
कुरई, सिवनी, म.प्र.