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13 May 2022 · 1 min read

💐’मैं साधक हूँ’इत्यस्य अर्थः💐

सर्वप्रथम एषः भाव: स्यात् यत् “अहं साधक: अस्मि”-एतस्मिन् ‘हूँ’इत्यस्य भागस्य मुख्यता च ‘मैं’इत्यस्य भागस्य गौणता।”अहं संसारी अस्मि”एतस्मिन् ‘मैं’भागस्य मुख्यता च ‘हूँ’इत्यस्य भागस्य गौणता।
कर्मयोगी सेवाया: माध्यमेन परहितस्य कृते त्याग: करोति, एषः सुगम: भवति।ज्ञानयोगी विचारस्य माध्यमेन त्यागः करोति, एषः कठिनं भवति।
वैराग्यवान् मनुष्यं ‘सुख-सुविधा’इत्यां आरामः न प्राप्त: भवति।तं स्वाभाविक: एव वस्तु श्रेष्ठ: न रोचते।ज्ञानयोगे त्वरितस्य वैराग्ये सति सिद्धि: भवति।त्वरितस्य वैराग्य: न स्यात् तु शिक्षणं भवति, अनुभवः भवति।
वृत्तीनाम पर्यन्त न ध्यात्वा वृत्तिवतः पर्यन्त ध्यानं दद्यु:।
‘अनुकूलता-प्रतिकूलता’इत्यया प्रसन्नताया: तथा क्रोधस्य भाव: जागरणं त्रुटि:।’अनुकूलता-प्रतिकूलता’इति अस्थिरस्य कृते न उपस्थित: भवति।प्रत्युत् अचलभावनाया: निर्माणस्य कृते उपस्थित: भवति।’अनुकूलता-प्रतिकूलता’इत्यया विचलित: भवति-यत्र पाप:।गीताया: उपदेश: समतायाः उपदेशः।युद्ध-सदृशः परिस्थित्यां समतापूर्वक: धैर्येण परिचय: गीताया: योगः।यः ‘क्रोधी-प्रसन्न’ भवति सः साधु न स्वादु अस्ति।

©अभिषेक: पाराशरः

Language: Sanskrit
Tag: Quotation
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