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20 Feb 2022 · 1 min read

?बदनसीब?

डॉ अरुण कुमार शास्त्री ??एक अबोध बालक-अरुण अतृप्त ??

क़त्ल करके किसी के अरमानों का
कोई सकून ढूंढने निकला ।।
सने पैर कीचड़ में लेकर जैसे कोई
ख़ुदाया वज़ु को निकला ।।
खूबसूरत थी रात चॉन्दनी और तारों
भरी नरगिसी महकती सी ।।
मैं अपनी बदनसीबी के संग अकेला
फटेहाल घूमने निकला ।।
मुकाबला था आँसू भरी आँखों का
खुशनुमा सजे सजाये चेहरों से ।।
के जैसे कोई फ़क़ीर पहने फटी कमीज़
अमीरों से मुलाक़ात को निकला ।।
शहर भर में चर्चा था उस काले तिल वाली
अदाकारा की ग़ज़ल गायिकी का ।।
और मैं चला लेकर नज़्म अपनी पुरानी
फ़क़त उसके मुकाबला को ।।
तैश में था जोश में था और बेहोश भी था
है किस से मुकाबला नही ये होश ही था ।।
पड़ी मुँह की खानी याद आ गई नानी
के चारों खाने चित था ।।
क़त्ल करके किसी के अरमानों का
कोई सकून ढूंढने निकला ।।
सने पैर कीचड़ में लेकर जैसे कोई
ख़ुदाया वज़ु को निकला ।।
खूबसूरत थी रात चॉन्दनी और तारों
भरी नरगिसी महकती सी ।।
मैं अपनी बदनसीबी के संग अकेला
फटेहाल घूमने निकला ।।

Language: Hindi
215 Views
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