?जिद्दी इंसाँ ?
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
एक अबोध बालक : अरुण अतृप्त
?जिद्दी इंसाँ ?
सदियाँ बीती युग बदला है
जात न बदली मानव की
लूट खसोट के काम न बदले
धोखा देकर काम चलाते
सोच न बदली दानव सी
सदियाँ बीती युग बदला है ।।
प्रभु का पूजन करते करते
प्रभु को ही हर लाते हैं
इंसानों की बात तो छोड़ो
प्रभु को चूना लगाते हैं
सोच न बदली दांनव सी
सदियाँ बीती युग बदला है ।।
हर युग में होता आया है
शिष्ट अशिष्ट के अंतर का
अवलोकन करके तो देखो
कुटिल जीतकर राज करेगा
सोच न बदली दांनव सी
सदियाँ बीती युग बदला है ।।
निर्बल पिटता सबल पीटता
धन दौलत वाले की चलती
भैंस वही ले जाता आखिर
जिसके हाथ मा लाठी होती
सोच न बदली दांनव सी
सदियाँ बीती युग बदला है ।।
हम न कहते तुम न सुनते
चलो छोड़ दो बात न्याय की
बुद्धि के निर्णय को लेकर
करो फैंसले व्यभिचार त्याग कर
सोच न बदली दांनव सी
सदियाँ बीती युग बदला है ।।
कथनी करनी एक जो होती
फिर काहे ये रार ही होती
तेरा मेरा मेरा तेरा भेद न होता
सबके प्रति फिर प्यार ही होता
सोच न बदली दांनव सी
सदियाँ बीती युग बदला है ।।
सृष्टि के रचनात्मक कारज शुद्ध
दिशायें शुद्ध प्रकृति शुद्ध ही फिर
सब सागर होते नदियां होती सीमाओं
पर युद्ध न होते, ललनाओं के फिर
व्यापार न होते बच्चे बूढ़े नर और नारी
इस तरह दर दर न भटकते
राम राज्य की मांग क्यों होती
स्वतः ही मिलता सबको रे सम्मान
सोच न बदली दांनव सी
सदियाँ बीती युग बदला है ।।