💐कलेजा फट क्यूँ नहीँ गया💐
डॉ अरुण कुमार शास्त्री *एक अबोध बालक *अरुण अतृप्त
💐कलेजा फट क्यूँ नहीँ गया💐
एक आदमी की औकात क्या है, एक लोटा राख बस , और बनता कितना है , की पूँछो मत ।
अशोक का भरा पूरा परिवार था सुंदर सुशील कमाऊं
पत्नी शादी के मात्र 2 साल एक पुत्र और स्वयं की 12 एल पी ए की जॉब
मात्र 3 दिन में सब छिन्न भिन्न कोई सोच भी कैसे सकता था कल्पना से परे यही अनहोनी कहलाती है
जिसकी एक्सप्लेनेशन भगवान के बाद किसी के पास नहीं ।
सरला नाश्ता बना कर नाश्ते की मेज पर रखते हुए, अशोक को बोलती है , अशोक बेटे मून को दूध देकर अपनी प्लेट ले कर खाना खाने लगता है । फिर सरला को बॉय कह ऑफिस निकल जाता है शाम को वापिस आता है तो निढाल थका थका । बुखार देखता है तो 101 । चिन्तित हो कर डॉ को बात करता है डॉ आर टी पी सी आर कराने को कहता है होम किट से टेस्ट करते हैं और वो पॉजिटिव निकला । हेल्थ हेल्प लाइन पर काल काफी देर बाद मिलती है उधर से जबाब मिलता है होम क़वारेंटीईन के लिए सलाह और एक लिस्ट ऑफ गाइड लाइन्स ड्रग diet एंड इंस्ट्रक्शनस ।
शाम तक कोई सुधार नहीं होने पर फिर बात करते हैं तो ऑक्सीमीटर से देखने को बोलते हैं चेकिंग करने पर सपा2 लेव 80 नब्ज 60 बताने पर एड्मिट कर लेते है कोई फैमिली मेंबर्स की इजाजत नही ।
ऐसी हालत में सब कुछ सरला को निर्णय लेने हैं
वो करीब के सभी रिलेटिव को इन्फॉर्मेशन दे कर बताती है आफिस फोन कर खबर देती हैं तथा बच्चे को 3 दिन के लिए बहन के साथ छोड़ती है । बाहर रह कर जो भी कर सकती थी करती है।
मगर अंदर तो डॉ के हाथ में था उसका सुहाग। दोनों (अशोक व उसके ) फ़ोन लगातार बजते रहते हैं सबके जबाब देती रहती हैं शांति से । मगर दिल अशांति से भरा । 7 बजे डॉ बताते हैं अशोक की हालत ऑक्सीजन लेवल और कम हो गया उनको वेंटिलेटर पर रखा गया है कुछ कर नही सकती चुपचाप सुनती रहती हैं दुखी मन से अशोक का फ़ोन बंद हो जाता है लो बैटरी के कारण। घर जा कर उसको चार्ज करने के लिए कनेक्ट कर देती है । किसी तरह रात कट जाती है
सो नहो सकी बस रह रह कर प्रार्थना मातारानी बख्श दे असि कोई गलती वी नही कीती माँ।
आंखों में जहां उस समय सपने होने थे आज आँसू।
लेकिन फिर भी । सब संसार सारा संसार दुःखी न जाने कोई उत्तर किसी के पास नही । खाना पीना भुल गई अपनी संतान को भूल गई पति की प्रार्थना अभी तो ठीक से जीवन जिया ही कहाँ । हनीमून मनाने भी नही गए सास की तवियत खराब थी शादी के समय । महीना भर वो बीमारी रही टलता गया सब कुछ । आज कोई नही उसके पास ये बीमारी का सुन सब बगलें झांकने लगते पूरे शहर में पूरे संसार में हाहाकार मचा हुआ है अपने मरीज के पास भी नहीं जा सकता कोई 2 घण्टे पर नर्स आके खबर दे जाती । बस ।
लगभग 1 बजे दोपहर नर्स बेड न , यस कह कर भागती हैं सरला उम्मीद से शायद अब अच्छी खबर मग़र नही अंतिम समय है बात करलो देख लो हम हार गए बॉडी रेस्पॉन्स छोड़ती जा रही हैं कोई भी दबाई काम नहीं कर रही ।
उसको पीपीटी किट के साथ तैयार कर के icu बार्ड में ले जाया जाता कुछ साफ नही लेकिन अपने पति को पहचान ने में कोई चूक नही लाख मशीनो के बीच असहज असहाय अंदर से इजाजत नहीं सिर्फ़ एक हांथ बाहर छूने भर को साँसो को बैचेन आँखे मुहं में वेंटिलेटर उसको देख लौ एक बार फिर लपकी जिंदगी को पकड़ने को । ऐसा लगा उसकी किस्मत की जिंदगी मिली डॉ फ़िर लपके शायद मरीज बच जाए उसको एक साइड कर दिया। 20 मिनट फिर कोशिश जारी ।
सब छलावा था । और दिया बूझ गया ।
सरला को काटो तो खून नही पत्थर हो गई
लोगों ने सहारा देकर बाहर बैठा दिया।
कोरोना वारियर्स अपना काम करने लगे उन्होंने अस्पताल की कोविड नियमित तरीके से बॉडी पैक की , चुपचाप पत्थर की तरह उसने सभी अंतिम कार्यवाही पूरी की बिना चू चपड़ के एक सन्यासिन की तरह । सुबकी भी नही पैक में बस इतने न का मरीज कब एडमिट हुआ डायग्नोसिस एंड डेट ऑफ डेथ सब देखा इतनी ही पहचान थी इस पैक कि उनके लिए , और जिसमे उसका सकल विश्व था ।
एम्बुलेंस से बॉडी शव दहन स्थल पर सीधी भेजी जा रही थी अभी उसने लास्ट पेपर पर साइन किये इतने में 4 अन्य उसी के साथ ।
जैसे कोई मूवी चल रही थी उसी की एम्बुलेंस में सभो को रखा गया और वो उनको लेकर निकल गए इन्हें किसी को भी हांथ तक नहीं लगाने दिया न इजाजत थी ।
बस रो लो जितना मर्जी धरती को छू कर अंतिम प्रणाम ओर प्रारर्थना मात्र उस पल और कुछ नहीं। उसका सर्वस्व लूट चुका था उसका क्या अन्य 4 में एक का पिता एक कि माता जी एक अन्य का पति जिसकी मात्र 2 महीने पहले शादी हुई मेहंदी भी नहीं छूटी और एक का पुत्र । इस से पहले न जाने कितने और इसके बाद न जाने कितने जैसे मात्र यही हकीकत शास्वत सत्य देखने आई थी जो सुना ही था देखा आज बस ।
पुत्र को भूल गई माँ बाप भाई कोई नहीं आये उनके प्रति वैराग्य हो गया अपनी जान का क्या काम अब
पागल सी बैठी दीवार के साथ । आकाश को सूनी आंखों से ताकते शून्य में । न पूजा पाठ काम आए न भजन कीर्तन न सुबह शाम की आरती न पैसा रुपया न रिश्ते नाते न शरीर न गाड़ी न बैंक बैलेंस इन तीन दिनों में सब देख लिया सब जान लिया सब सीख लिया न उमर का कोई अर्थ न धर्म का कोई अर्थ न संस्कृति इंसान के साथ साथ सब स्वाहा जिसके साथ फेरे लिए माता पिता ने दान कर दी उसके साथ जा नहीं सकी अंतिम संस्कार को लावारिस जैसे भेज देना पड़ा कैसा समय आ गया । कलेजा फट कुयूँ नही गया ।