?कर्ता ने करम से ?
डा ० अरुण कुमार शास्त्री –
एक अबोध बालक -अरुण अतृप्त
?कर्ता ने करम से ?
तेरे नयनों में जीवन बहता है
गुपचुप गुपचुप ये
कुछ कुछ कहता रहता है
भोर भई अब उठ जा
ईश्वर के चरणों में जा ध्यान लगा
मानव जन्म मिला है
उसको जीवंत बना ले
कर्म किये से अपने परलोक सजा ले
दिन पर दिन निकले जाते हैं
इनको हे मानुष तू
बिल्कुल न व्यर्थ गवा रे
किस क्षण आवाज लगेगी
ओर तुझको होगा जाना
उस पल में फिर न होगा कोई बहाना
तेरे नयनों में जीवन बहता है
गुपचुप गुपचुप ये
कुछ कुछ कहता रहता है
नित नए अवसरों से प्रभु
देते प्रतिदिन आभास
कुछ करने को हे मानव
मिलता तुझको एहसास
हाँ रहते ये सब कोमल
संकेत सभी ईशारे
लेकिन उनके होतें है
अर्थ बड़े ही प्यारे
तेरे नयनों में जीवन बहता है
गुपचुप गुपचुप ये
कुछ कुछ कहता रहता है
मैंने अब के जीवन से
जो समझा सीखा है
ईश कृपा के ही
सब कारज होते हैं
निश्चय करके जो मानव
संसाधन बन जाते हैं
आगे चलकर वे संसाधन
उपलब्धि के फिर
सोपान हुआ करते हैं
तेरे नयनों में जीवन बहता है
गुपचुप गुपचुप ये
कुछ कुछ कहता रहता है
आशाओं को अपनी
रूप नया तू देदे
सब संगी साथी तुझसे हैं
आस लगाए बैठे
कर्ता के सब कारकों का
अब कृतित्व तुझे बनना है
प्रस्तर के शिलाखंड पर
इतिहास नया लिखना है
उद्यम करने से ही तो
प्रवण प्रवाह चलेगा
जो हार गया जीवन से
उसको फिर क्या कोई याद करेगा
तेरे नयनों में जीवन बहता है
गुपचुप गुपचुप ये
कुछ कहता रहता है