💐उत्कर्ष💐
डॉ अरुण कुमार शास्त्री 💐एक अबोध बालक 💐अरुण अतृप्त 💐
💐उत्कर्ष💐
नारी हो सबला हो
स्वयं में सम्पूर्णा हो
निश्चय कर जब
कदम उठाओगी
निर्णायक भूमिका
निभाओगी
अब हार कहा मानोगी
रण भेद दुदुंभी बजाई है
तुम अपने जीवन
के अधिकारों के प्रति
सजग हुई हो जब से
राह छोड़ी है पुरुष
ने भी तब से
साथ लगा है निभाने
जो था कभी प्रतिद्वंद्वी
अब हार कहा मानोगी
रण भेद दुदुंभी बजाई है
नारी हो सबला हो
स्वयं में सम्पूर्णा हो
निश्चय कर जब
कदम उठाओगी
निर्णायक भूमिका
निभाओगी