👍 कुमुदिनी चाल 👍
डॉ अरुण कुमार शास्त्री 💐एक अबोध बालक💐अरुण अतृप्त
💐 कुमुदिनी 💐
नार हूँ नवेली कुमुदिनी हूँ अलवेली
नयन नक़्श से त्रिवेणी हूँ तिर्यक पहेली।।
मति जोड़ो नैना उलझन की हूँ सहेली
नार हूँ नवेली कुमुदिनी हूँ अलवेली ।।
तर्क से मुझे तो जीतना है मुश्किल बड़ा
विवाद को तुम रहने दो मत करना खड़ा ।।
पापा की लाड़ली हूँ मैं , माँ की हूँ मैं परी
भैय्या की प्यारी बहना, दीदी की हूँ सखी ।।
नार हूँ नवेली कुमुदिनी हूँ अलवेली
नयन नक़्श से त्रिवेणी हूँ तिर्यक पहेली।।
कॉलेज की अनुराधा हूँ क्लॉस की राधा हूँ
छंदों में वरिणित हो जऊं ऐसी अभिलाषा हूँ ।।
भजन मेरे सुन कर मन बजती हैं कानों में घण्टियाँ
गीत मैं गाती नहीँ इस डर से कोई भूले न बस्तियाँ ।।
नार हूँ नवेली कुमुदिनी हूँ अलवेली
नयन नक़्श से त्रिवेणी हूँ तिर्यक पहेली।।
कोशिश में सब लगें है दिल जीतने को मेरा
मेरे करीब आये वो शख्स तो होगा कोई चितेरा।।
वैसे कहुँ गी सच सच गर सुनने का हो जो मादा
पापा जिसे चुनेंगे मैं तो उसी की बनुँगी राधा ।।
नार हूँ नवेली कुमुदिनी हूँ अलवेली
नयन नक़्श से त्रिवेणी हूँ तिर्यक पहेली।।