?कलयुगी मानव
चल पड़ा
कलयुगी मानव
नए डगर पर ,
नए सफर की ओर ।
रिश्तों की उधेड़बुन में
तैरता डूबता,
लहरों सा तीव्र
कभी रौद्र विकराल
लिये आँधी सी चाल
कभी सौम्य ,शांत
जैसे बुद्ध सा भाल
कस्तूरी मृग सा
बेकल-बेहाल
भटकता दूर-सुदूर
नग, नदियाँ,वन,ताल
सत्य से परे
अदृश्य को खोजता
लक्ष्य विहीन मानव
अंतर द्वंद में
बनकर…….
स्वयं ही मछली,स्वयं ही जाल ।
#साहिल?
✍sk. soni 3/2/18