?परित्यक्ता पर एक विचार ?
सबसे मजबूर असहाय अकेली हरेक स्तर से सोचनीय है ये जीवन।तमाम लोगों की तरह वह भी एक -दूसरे के साथ रहना चाहती है पर व्यक्तिगत जिंदगी ना होने के कारण,ना कोई परिवार ना समाज और व्यक्ति में तो वह अकेली है ही इसे दर्द को व्यक्त करना बहुत ही कठिन है। पीड़ा की अभिव्यक्ति करना मात्र शब्द होगी ।जो गुजरते , जीते हैं उन्हें ही पता होता है,जिस शरीर में धाव रहता उसी को वो चुभन,दर्द – बाँध जख्म दुनियाँ ढूंढ़ती , दर्द दिल से
आशियाना ढूंढती।
वर्तमान,वक्त में कैसे करू निर्वाह , सिर्फ राह पथिक बना ढूंढ़ती।
मुझे डर नहीं ढंके दर्द दुनियॉ के चीत्कार का ये जान चुकीं इस
वक्त से।
मेरे ठेस ने किया आगाज (शुरूआत) ये कैसा विश्वास दर्द की घुटियाँ जेहन में स्वीकार I
छोटी, साधारण स्त्री हूँ सीता माँ के बारे में क्या कहना उनका अंजाम दर्द देखकर आज भी भारत में कोई माँ अपनी बेटी का नाम सीता नही रखती है। उनका दुःखी जीवन देखकर।
दर्द भी हिसाब से मिले तो सहन होता है ।
जब अत्यधिक हो वो खुद ही जहर होता है, शरीर,विज्ञान के
हिसाब से और खुद मौत होता है। विवाह विश्व०यापी मान्यता है। इसका ध्वस्त हो ना, लड़के को भी आहत करता है पर एक लड़की,औरत, नारी को कुछ नहीं में परिणत करता है ।या यूं कहें कि बेनाम,अकिंचन,अज्ञ की जिंदगी में शामिल होना पड़ता है, विवशता इतनी हो जाती हैं कि मौत को अंगीकार कर लेंती है इतिहास साक्षी हैं।
वो तो देवी थी, जिंदगी में एक साधारण स्त्री की दुर्दशा जिसे व्यक्त करना आसान नहीं हैं जो आज भी जारी है । सच्चाई है जो बहुत ही खतरनाक खौफनाक हैं।लिख पाती दुखद दुर्दशा अपनी तो सच छूट जाती। त्रस्त है वर्तमान व्यक्ति ,इस मानसिक झेलना जो कुछ जीवन में व्याप्त है , तोड़ती विवशता तैरती उल्लासता ,तरसती जिंदगी सही में दुर्दशा ।
इन औरतों ने किसी का क्या बिगाड़ा है जो इन आदमियों के घरों में खटती है । उन्हें हर तरह सुख देती है, इनके बच्चे पैदा करती है और बेमौत मारी जाती है। इनके तुनक मिजाजी के बजह से प्रायः तलाक वो शब्द जिससे खुदा , भगवान भी आहत होते हैं और खुद से गमगीन माहौल कर पूरी जिंदगी बदल देते हैं।अगर आप ही सहमति से अलग,कुछ गंभीर कारणों की बजह से हो तो भी वह जीवन संगिनी , जीवन साथी को प्रभा वित करता है ये तलाक कोई कहे तीन शब्द कोई तोड़े मन, वचन ,कर्म I
जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं तो नारी टूट जाती है और वो अपने क्षत -विक्षत रूप जो आज भी समाज में है ।
देखती है। जो कहे बच्ची ,लड़की, स्त्री ,औरत ,नारी शुरूआत ( जन्म से) = वह हृदय से पूर्ण व्यक्ति ही होना चाहती है एक
ऐया व्यक्ति ,एक ऐसी स्वतंत्र सत्ता , जिसकी संसार में भविष्य हो। बहुत जगह तो पत्नी की गलती हो या ना हो पति उसे छोड़ देता । बहुत औरत भोग रही है इस जिंदगी को ,परित्यकता आवास इसकी जरूरत ही क्यों पड़ी क्या यह स्वस्थ समाज की निशानी है , वृद्धा आश्रम जो व्यक्ति की हीनता को दर्शाती है जीवन तो अपने आप में अन मोल है ये करोना काल में भी अगर समझ नहीं आया तो हम लोग सच मुच मूढ़ है।
भावनाओं कीमत , संवेदना के स्तर आज जो गिरावट है वो सिर्फ सोचनीय ही नहीं निन्दनीय भी है Iभावनाएं कभी तटस्थ नहीं होती किसी की भी और प्रेम का अभाव कोमल भावनाओं को जगाने के बदले चिढ़ अधैर्य और क्रोध
को ही जन्म देती है।
कहर है , कट्टर पंथ का उन औरतों से, जब वह अपने अधिकार की बात करती या सिर उठाकर चलने की जरूरत करती है तो वह कल्त क र दिए जाती है। और धर्म के ठेके दारों ने उनके (औरतों ) भाग्य मे रोना लिख दिया है।
कहते है कि ऐसा इसलिए कि संस्कृति को सुरक्षित रखा जा सके। क्या औरतों पर अत्याचार करने और हर तरह
से उनकी आवाज घोंटने का नाम ही संस्कृति को बचाना है।
तालिबान के पास कम्युनिकेशन के जो साधन है ,वे सभी पश्चिमी है। गोला ,बारूद, रॉकेट लंच र ,बाईक,
कार, हवाई जहाज , टी. वी. अखबार आदि सभी कुछ तो
पश्चिमी है । जो इस्तेमाल से कोई कट्टर पंथियों को कोई
परहेज नही है, परहेज है तो औरतों के अधिकारों से या
औरत होने से।
जहाँ एक ओर वह ममतामयी मॉ है, भाइयों की कलाई मजबूत करने वाली बहन है, वहीं बेटी,
दूसरी ओर वह जीवन संगिनी भी हैं। तमाम इन सभी रिश्तों की नींव महिलाओं पर ही टिकी है । जो अपनी तमाम इच्छाओं को दबाकर अपने परिवार के लिए हमेशा समर्पित
रहती है।
इसके बावजूद आज महिला अकेली हैं।
शोषित व्यक्ति भी है पर परित्यकता शोषित और पीडि़त है।
आज पुरे विश्व में स्वस्थ मानव – मानवी रिश्तों की शक्त जरूरत है। इसकी आज भारतीय क्या सभी संस्कृति में नारी का सम्मान करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी, निजी जिम्मेदारी है। उन्हें प्रताड़ित करना सभी संस्कृतियों का अपमान है I
एक बोतल दारू में बूढ़ी औरत किसी आदमी के साथ हो
जाती है इससे खतरनाक क्या हो सकती है ,जिस तरह से पश्चिम अपना सब बेच रहा है , हवा ,पानी और खुद को ।कौन सी संस्कृति अछूती है जिस में जिंदगी शोषित ना हो।पर आज विश्व में सबसे ज्यादा अकेली है महिला ,महिलाओं की सुरक्षा, विश्वास आदि।
अपनी श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए पुरूष आज भी शादी करता। आज भी समाज , परिवार द्वारा मिलें जादा
सुविधाओ का इस्तेमाल करता है । अपनी स्त्री को फूहड़ और मूर्ख बनाए रखता है।
आज पारम्परिक वैवाहिक जीवन के नियमों के अवशेषों के बावजूद समाज में स्त्री की स्थिति प्राचीन समाज की अपेक्षा
बुरी है।
क्योंकि उस पर कर्तoय भार तो वहीं है, पर उसे अपने अधिकार, सम्मान और सुविधाओं से वंचित रखा जाता है ।
परित्यकता को तो दोहरी मार पड़ती है हमेशा Iअब- तक ता औरत की दुनियाँ में प्रेम केवल अभिशाप की तरह मंत्रता रहा है,उसको पंगु बनाता है।और शादी का टूटना जो जहॉ पुरूष को आहत करता है। वही स्त्री को भी ‘कुछ नहीं, में परिणत कर देता है।उसे यह भी याद नहीं रहता कि शादी से पहले वह
अकेली कैसे रहती थीं। वह तो अपना अतीत राख कर चुकी होती उसके पुराने सारे मूल्य ध्वस्त हो चुके होते । मायके में भाभी आ जाती है मां-बाँप खुद बूढ़े हो जाते हैं। वह पाती है अपने को एक रेगिस्तान में,।सिर पर आकाश की छत और तय करने को मीलों लम्बा रास्ता l वह कैसे एक नई जिंदगी
शुरू करें ? प्रेम , सेवा के अलावा उसने अब – तक और कुछ तो सीखा ही नहीं ।वह बार बार अपने से पूछती हैं, ” अब मैं क्या करूँ ? वह नहीं जानती कि समर्पण ही उसे खा गया।
बहुत ही कम स्त्री प्रेम के , शादी टूटने पर खत्म न होकर अपना एक नया और स्वतंत्र अस्तित्व प्र स्थापित करती हैं उनमें आत्माभिमान होता है और टूटी जिंदगी को किनारे लगाने का हौसला भी।
बिल्कुल स्वतंत्र रहना बहुत कम स्त्रियो को पसंद करती है ।
अधिकांश स्त्रियों को किसी पुरुष के प्रति समर्पित हो जाना अधिक आकर्षक लगता है। पुरूष कि दृष्टि में महत्व प्राप्त करना ही स्त्री अपने जीवन की सार्थकता समझती है।
यदि स्त्री द्वारा चुना गया व्यक्ति असीम प्रेम के योग्य है, तब भी यह मानना पड़ेगा कि वह इसी संसार का है। और सांसारिक है, किंतु स्त्री जिसके सामने घुटने टेक कर बैठती है, वह जिसे वह महान् एंव उच्च समझती हे,वह भी एक साधारण व्यक्ति ही होता है ,स्त्री वास्तव में अपनी आत्मा द्वारा ही चली जाती है।वह देखने की इच्छुक नहीं
होती कि उस व्यक्ति कि मान्यताएँ भी संसारिक है।
उसकी योजनाए और उद्देश्य वैसे ही नाजुक और शिथिल है,जैसी कि वह स्वयं ।
॥परित्यकता समझ के साथ सक्षम हो। सदियों से होती आती है हम ,झूठे, द र्द सहन किए अब और नहीं | मैं कुछ दिन में एक बेबसाइट नहीं तो एक यूटियूभ पर कार्य करेंगे। कृपया जुड़ने की कोशिश कीजिएगा आपकी तरह आपकी बहन । ॥
मेरे भूमि पर सबसे महान बड़ी परित्यक्ता रही सीता माँ Iआज भी रामायण पाठ करते- करते आँखों से आँसू और दिल में कम्पन के साथ बेजोड़ प्रेम जगता है। पुरे रामायण में वर्णित है श्रीराम का अनूठा प्रेम और सीता माँ का समर्पण । प्यार ,क्षमा धरती में समाते हुए भी एक ऐसी क्षमा – देती हूँ दान मानवता के हिसाब में, रचा तो दुःख जी ने के क्रम में,तमन्ना हुई थी जिंदगी ,वक्त के दौर , ठौर में, हसरतें काफूर हो गई,
अपने साथ में, कैसी प्राप्ति है ,लक्ष्य मंजिल जान जाते हैं।सब अपने उलझन जिंदगी के हिसाब में,ना माँगी होती उम्मीद मन,ना सँजता ये मानव का आँगन ,खामोश लव भेदती उल्लासता बँया करती हैं ,क्षमा शीलता ।
– कृपया जरूर बतायें मैं सही लेख लिख पाई हूँ ।_ डॉ. सीमा कुमारी, बिहार ( भागलपुर )ये आज बहुत ही मुश्किल से टाइप की हूं और खुद से लिखी है। ३/१/०२२ को कृपया त्रुटि
पर ध्यान दिलवायिए गा ।